प्रदूषण

प्रदूषण के चलते बदल रही है बच्चों के मस्तिष्क की संरचना

Lalit Maurya

वाहनों से होने वाला प्रदूषण बच्चों की दिमागी संरचना को बदल रहा है। एक नए अध्ययन के अनुसार कम उम्र में  प्रदूषण के संपर्क में आने का असर बच्चों में 12 वर्ष की आयु के बाद असर डालता है। यह अध्ययन अमेरिका के ओहियो स्थित सिनसिनाटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर द्वारा किया गया है। जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुआ है। जिसके अनुसार जो बच्चे जन्म के समय अधिक प्रदूषित इलाकों में रहते हैं, उनके दिमाग में ग्रे मैटर और कॉर्टिकल की मोटाई सामान्य बच्चों से कम होती है।

गौरतलब है कि मस्तिष्क की बाहरी परत जिसे ग्रे मैटर कहते हैं, वो याददाश्त, ध्यान, जागरुकता, विचार, भाषा और चेतना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वहीं दूसरी ओर कॉर्टिकल बच्चों की बुद्धिमता से जुड़ा होता है। जिसकी मोटाई में कमी आने से बच्चों की समझने ओर निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। सिनसिनाटी चिल्ड्रन के रिसर्च फेलो और इस अध्ययन के प्रमुख ट्रैविस बेकविथ ने बताया कि, "अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से किस तरह मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ता है।" हालांकि उनका मानना है कि डीजेनेरेटिव डिजीज की तुलना में यह नुकसान बहुत कम होता है। लेकिन इसके बावजूद यह अनेक शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं के विकास को प्रभावित करने के लिए काफी होता है। " उनका मानना है कि यदि जीवन के शुरुआती दिनों में प्रदूषण मस्तिष्क को प्रभावित करता है तो इसका असर बाद के वर्षों में भी कायम रहता है। जो समय के साथ नहीं बदलता ।

बच्चों के दिमाग को कमजोर बना रहा है प्रदूषण

प्रदूषण के प्रभाव को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने बच्चों के दिमाग कि छवियों को प्राप्त किया है। जिसके लिए उन्होंने मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग तकनीक का उपयोग किया है। यह बच्चे सिनसिनाटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल में एलर्जी और वायु प्रदूषण सम्बन्धी अध्ययन का हिस्सा हैं। जोकि वाहनों से निकले धुंए और प्रदूषकों का बच्चों के दिमाग पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए किया गया है। जिसके लिए इन बच्चों का छह मास कि आयु से अध्ययन किया गया है।

इस अध्ययन का हिस्सा रहे बच्चे अपनी आयु के शुरुआती एक वर्ष तक या तो उच्च अथवा निम्न स्तर के प्रदूषण का शिकार हुए थे। शोधकर्ताओं ने इसे जानने के लिए सिनसिनाटी क्षेत्र की 27 साइटों में एयर सैंपलिंग नेटवर्क का उपयोग किया है। जिसके परिणामों के आधार पर प्रदूषण के प्रभाव का अनुमान लगाया है। इन आंकड़ों को अलग-अलग मौसमों में एक साथ चार या पांच साइटों से लिया गया है। साथ ही इन बच्चों के दिमाग की 1, 2, 3, 4, 7 और 12 वर्ष की उम्र में जांच की गयी है। वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर पहले भी कई अध्ययन किया गए हैं। जिनके अनुसार यह प्रदूषण न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों और न्यूरोडेवलपमेंट सम्बन्धी विकारों को जन्म देता है। जबकि इस अध्ययन के अनुसार प्रदूषण के चलते बच्चों की दिमागी संरचना में बदलाव देखने को मिला है। जोकि उनके विकास के लिए एक बड़ा खतरा है।