शासन और प्रशासन की अनदेखी की वजह से ही सांस संबंधी बीमारियां बच्चों के स्वास्थ्य की सबसे बड़ी दुश्मन बन रही हैं। सिर्फ अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि स्कूल जाने वाले 14 वर्ष तक के बच्चों में अस्थमा की समस्या भी काफी तेजी से फैली है। बच्चों के स्वास्थ्य सुधार पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था द इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर ऑगुमेंटेटिव एंड अल्ट्रानेटिव कम्युनिकेशन (आईएसएएसी) की ओर से 30 अक्तूबर 2015 में बच्चों में अस्थमा प्रसार को लेकर एक शोध प्रकाशित किया गया था।
इसकी प्रमुख शोधकर्ता और जयपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रेस्पिरेटरी डजीज में डिपार्टमेंट ऑफ पल्मॉनरी मेडिसिन की शीतू सिंह ने डाउन टू अर्थ से बताया कि भारत के कई हिस्सों में खासतौर से स्कूल जाने वाले बच्चों में अस्थमा प्रसार को लेकर एक सर्वे किया गया था। विद्यालय चुने गए और बच्चों को 6 से 7 वर्ष और 13 से 14 वर्ष दो समूह में बच्चों को बांटकर सर्वे के सवाल पर दिए गए जवाब चौंकाने वाले रहे थे।
जर्नल ऑफ अस्थमा में प्रकाशित इस सर्वे में पाया गया कि 6 से 7 वर्ष आयु वर्ग उम्र वाले कुल 44,088 बच्चों में 2405 को अस्थमा, 947 बच्चों को गंभीर अस्थमा पाया गया, जबकि कुल 39.38 फीसदी बच्चों में अस्थमा के लक्षण पाए गए। इसी तरह 13 से 14 वर्ष आयु वाले 48,088 बच्चों के समूह में 2910 और 1788 बच्चों को में अस्थमा व 1365 बच्चों में गंभीर अस्थमा की शिकायत पाई गई। जबकि कुल 46.91 बच्चों में अस्थमा की शिकायत मौजूद रही।
बच्चों में वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा और निचले फेफड़े के संक्रमण को लेकर डॉ शीतू सिंह का कहना है कि यह हो रहा है और गंभीर चुनौती भी बन चुका है। ऐसे में हमें मासूमों की जिंदगी बचाने के लिए गंभीर तौर पर सोचना होगा। क्योंकि धूल और धुंआ दोनों ही ऐसे बच्चों के लिए बेहद घातक हैं। इस बीमारी में पर्यावरणीय कारक भी प्रमुखता से शामिल है।
सर्वे के मुताबिक 6 से 7 वर्ष के बच्चों में अस्थमा का 39.38 प्रतिशत विश्व में अस्थमा के कारण होने वाले औसत 38.5 प्रतिशत से ज्यादा है। इसी तरह से 13 से 14 वर्ष की उम्र में 46.91 फीसदी अस्थमा वैश्विक औसत 43.3 फीसदी से ज्यादा है। ट्रैफिक प्रदूषण खासतौर से डीजल से उत्सर्जित होने वाले कण और माता-पिता से बच्चों तक पहुंचने वाला धुंआ अस्थमा के प्रसार में बड़ा कारक है।
डॉ शीतू सिंह कहती हैं कि ट्रैफिक प्रदूषण और डीजल वाहनों का उत्सर्जन अस्थमा ही नहीं बल्कि बच्चों में निचले फेफड़े के संक्रमण (एलआरआई) के भी प्रमुख कारकों में शामिल हैं। उन्होंने बताया कि यह सही बात है कि नवजात और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एलआरआई की समस्या हो सकती है।
यह देखा गया है कि 6 से 7 वर्ष आयु सूमह के बच्चों में भारी ट्रैफिक के दौरान प्रदूषण का दुष्प्रभाव ज्यादा पड़ता है। भारी ट्रैफिक के दौरान बच्चों में 1.53 गुना ज्यादा अस्थमा पैदा होने का जोखिम होता है।