अध्ययन के मुताबिक, हर साल दो करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक पर्यावरण में समा जाता है, जिसमें से ज्यादातर माइक्रोप्लास्टिक में टूट जाता है जो मनुष्यों और वन्यजीवों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जैविक सामग्री से बने बायोडिग्रेडेबल और बायो-आधारित प्लास्टिक को अक्सर अधिक टिकाऊ विकल्प के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन अब तक वैज्ञानिकों के पास बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के प्रभाव का आकलन करने के लिए उपकरण नहीं थे, जिनका उचित तरीके से निपटान नहीं किया जाता है।
येल स्कूल ऑफ एनवायरमेंट में सेंटर फॉर इंडस्ट्रियल इकोलॉजी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने हाल ही में प्राकृतिक वातावरण में बायोडिग्रेडेबल माइक्रोप्लास्टिक के जलवायु परिवर्तन और जहरीले प्रभावों को मापने के लिए एक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन विधि विकसित की है।
नेचर केमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि केवल 50 फीसदी बायो-प्लास्टिक वास्तव में बायोडिग्रेडेबल हैं और कई बायोडिग्रेडेबल विकल्प जीवाश्म ईंधन आधारित हैं। कचरे के प्रबंधन की सुविधा की नियंत्रित स्थितियों के बाहर, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के कुछ प्रभाव पारंपरिक प्लास्टिक जैसे ही हो सकते हैं, जिसमें छोटे टुकड़ों में टूटना शामिल है। जबकि उन्हें टूटने में कम समय लगता है, वे ग्रीनहाउस गैसों को भी छोड़ते हैं।
शोध के मुताबिक, बहुत से लोग बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के जीवन चक्र का आकलन कर रहे हैं, लेकिन वे उस प्लास्टिक के प्रकृति में प्रवेश करने पर होने वाले प्रभावों को मापने में सक्षम नहीं हैं। इसके लिए अभी तक कोई प्रणाली उपलब्ध नहीं है।
अध्ययन के लिए टीम ने जलीय वातावरण में बायोडिग्रेडेबल माइक्रोप्लास्टिक के समाने का मॉडल बनाने के लिए मौजूदा उपकरणों में बदलाव किया, जिससे एक अधिक गतिशील विधि बनाई गई जो प्लास्टिक के टूटने के रूप में उत्सर्जन में उतार-चढ़ाव को ध्यान में रख सकती है। उन्होंने दुनिया भर के बाजारों पर हावी होने वाले पांच प्रकार के बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग करके इनका परीक्षण किया, जिनमें से दो पेट्रोलियम से और तीन कार्बनिक पदार्थों से बने थे।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि यह एक आम धारणा है कि बढ़ते बायोमास में इतनी कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित हो जाती है कि उसे नष्ट किए गए बायो-आधारित बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से होने वाले उत्सर्जन की भरपाई करनी पड़ती है। हालांकि शोध दल ने पाया कि प्राकृतिक वातावरण में इन माइक्रोप्लास्टिक के टूटने से होने वाले मीथेन का उत्सर्जन बायोमास वृद्धि से कार्बन अवशोषण की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने की अधिक क्षमता रखता है।
अध्ययन ने यह भी दिखाया कि प्लास्टिक के टूटने की दर और माइक्रोप्लास्टिक के आकार पर निर्भर करता है। पारंपरिक विकल्पों से ऐसे विकल्पों की ओर स्थानांतरित होना जो तेजी से विघटित होते हैं, वातावरण में जहरीले पन को कम कर सकते हैं, लेकिन इसके कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अधिक हो सकता है। परीक्षण किए गए सबसे छोटे आकारों के लिए, एक इंच से दस लाख गुना छोटे कण, कम बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक में सबसे अधिक उत्सर्जन और विषाक्तता पाई गई।
जब प्लास्टिक इंजीनियर प्लास्टिक को डिजाइन करने की कोशिश करते हैं, तो वे अक्सर सोचते हैं कि ये अधिक बायोडिग्रेडेबल या आसानी से नष्ट होने वाले होंगे। जबकि शोध के परिणाम बताते हैं कि ऐसा नहीं है। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि अध्ययन आगे चलकर टिकाऊ प्लास्टिक और कचरे के प्रबंधन प्रणालियों के डिजाइन करने में मदद करेगा।
शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, इस तरह का बड़े पैमाने पर विश्लेषण करना वास्तव में महत्वपूर्ण है, ताकि यह बेहतर ढंग से समझा जा सके कि यदि प्लास्टिक उद्योग इन सभी पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना चाहते हैं तो उद्योग क्या रणनीति अपना सकते हैं।