प्रदूषण

दिल्ली के 700-800 हेक्टेयर क्षेत्र में होगा बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव, हिरंकी गांव से हुई शुरुआत

पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने विकसित किया है बायो डीकंपोजर

DTE Staff

पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार बायो डीकंपोजर के घोल का छिड़काव 13 अक्टूबर से शुरू हो गया है। नरेला क्षेत्र के हिरंकी गांव से इसकी शुरूआत करते हुए सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के करीब 700 से 800 हेक्टेयर जमीन पर इस घोल का निःशुल्क छिड़काव किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की जरूरत नहीं है। सभी राज्य सरकारों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना होगा। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में पिछले 10 महीने से प्रदूषण नियंत्रण में था, लेकिन पड़ोसी राज्यों में जलाई जा रही पराली का धुआं अब दिल्ली पहुंचने लगा है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली सरकार पराली की समस्या पर सभी का सहयोग चाहती है। सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सहयोग करना चाहिए, ताकि दिल्ली के लोगों को प्रदूषण से मुक्ति मिल सके।

केजरीवाल ने कहा कि पूसा इंस्टीट्यूट ने बायो डीकंपोजर तकनीक से घोल बनाने का तरीका खोजा है। इस घोल का पराली पर छिड़काव करने के कुछ दिनों बाद वह गलकर खाद में तब्दील हो जाती है और लोगों को पराली जलाने की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में आज से करीब 10 दिन पहले यह घोल बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। वह घोल अब बनकर तैयार हो गया है। दिल्ली में करीब 700-800 हेक्टेयर जमीन है, जहां गैर बासमती धान उगाया जाता है और पराली निकलती है। इस पराली को जलाने की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए अब यह घोल खेतों में छिड़का जाएगा। सारा घोल दिल्ली सरकार ने बनवाया है और इसके छिड़काव ट्रैक्टर और छिड़कने वालों समेत सभी इंतजाम दिल्ली सरकार ने किया है।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगले कुछ दिन के अंदर पूरे 800 हेक्टेयर जमीन पर घोल का छिड़काव हो जाएगा और उसके 20-25 दिन के अंदर सारी पराली खाद में बदल जाएगी और किसानों को अगली फसल बोने के लिए 20 से 25 दिन में जमीन तैयार हो जाएगी। पिछले 4-5 साल से इस घोल को बनाने का प्रयोग कर रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि दिल्ली सरकार अपने किसानों के 800 हेक्टेयर खेत में घोल का छिड़काव कर सकती है, तो बाकी सरकारें भी कर सकती हैं। जब हमने इस तकनीक के इस्तेमाल की शुरुआत की थी, उस दौरान केंद्र सरकार संपर्क करने की काफी कोशिश की थी। अगर केंद्र सरकार चाहती, तो इस साल कुछ तो कम कर सकते थे। उन्होंने बताया कि पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा ईजाद की गई तकनीक के बारे में हमें देर से जानकारी हुई। इसके बारे में सितंबर महीने में जानकारी हुई और केंद्र सरकार को भी इस बारे में पता था। सभी एजेंसियों को पराली से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर गंभीर होना पड़ेगा। दिल्ली सरकार ने पूसा इंस्टीट्यूट की निगरानी में साउथ वेस्ट दिल्ली स्थिति खरखरी नाहर गांव में डीकंपोजर घोल निर्माण केंद्र स्थापित किया है।