भोपाल त्रासदी के 26 साल बाद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपनी एक टेक्निकल रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट का नाम था “हेल्थ इफेक्टस ऑफ द टॉक्सिक गैस लीक फ्रॉम यूनियन कार्बाइड मिथाइल आइसोसाइनेट प्लांट इन भोपाल।” यह रिपोर्ट 1984 से 1992 तक पैथोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी अध्ययन पर आधारित थी। इस रिपोर्ट में कई तथ्य आधिकारिक तौर पर पहली बार सामने आए। रिपोर्ट के मुताबिक, भोपाल गैस त्रासदी के बाद दिसंबर, 1984 में 731 शवों की ऑटोप्सी हुई। यह पहली बार था जब इतनी बड़ी संख्या में व्यवस्थित ऑटोप्सी और विस्तृत अध्ययन किए गए जिसमें कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। त्रासदी के बाद कंपनी के द्वारा लगातार यह कहा जाता रहा कि एमआईसी साइनाइड (जहर) नहीं बनाती। इसलिए पीड़ितों को तत्काल कोई राहत वाला उपचार नहीं मिला, जिससे कई लोगों की जान बच सकती थी। हालांकि, पीड़ितों का खून “चेरी रेड” रंग का पाया गया, जिसने हाइड्रोजन साइनाइड विषाक्तता का संकेत दिया।
हालांकि, बाद में विषैली एमआईसी और उसके सह उत्पादों में से एक हाइड्रोजन साइनाइड (एचसीएन) को विषाक्तता का मुख्य कारण माना गया और विषाक्तता को कम करने के लिए भोपाल गैस पीड़ितों पर तत्काल सोडियम थायोसल्फेट (एनएटीएस) इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया। एनएटीएस एक चिकित्सकीय यौगिक है जो साइनाइड विषाक्तता के उपचार में प्रभावी है। भोपाल गैस त्रासदी के दौरान इसकी प्रभावशीलता को पहचानना और लागू करना एक महत्वपूर्ण कदम था। दरअसल एनएटीएस साइनाइड के साथ प्रतिक्रिया करके थायोसाइनेट बनाता है जो विषहीन होता है और शरीर से मूत्र द्वारा आसानी से निकल जाता है। एनएटीएस के इंजेक्शन से पीड़ितों में श्वसन और तंत्रिका संबंधी लक्षणों में तत्काल सुधार देखा गया। पहली बार विषाक्तता कम करने के लिए “डबल ब्लाइंड” क्लिनिकल परीक्षण किया गया था। यह परीक्षण एक वैज्ञानिक पद्धति है, जिसका उपयोग किसी दवा या उपचार की प्रभावशीलता और सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण इसलिए “डबल-ब्लाइंड” कहा गया क्योंकि इसमें न तो मरीज और न ही डॉक्टर या शोधकर्ता को पता होता है कि कौन सा उपचार दिया जा रहा है। एनएटीएस थेरेपी के बाद पीड़ितों के मूत्र में थायोसाइनेट के स्तर में वृद्धि देखी गई जिससे यह पुष्टि हुई कि साइनाइड का विषहरण सफलतापूर्वक हो रहा है। यदि पहले ही यह पता होता कि एमआईसी साइनाइड पैदा कर रही है तो एनएटीएस का उपचार तत्काल किया जा सकता था क्योंकि एनएटीएस की प्रभावशीलता तभी उच्चतम होती है जब इसे विषाक्तता के तुरंत बाद दिया जाए। देरी होने पर परिणाम सीमित हो सकते हैं। आईसीएमआर की इस टेक्निकल रिपोर्ट ने यह पहली बार उजागर किया गया कि विषैली गैस एमआईसी ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के रक्त और ऊतकों में एन-कार्बमॉयलेशन और एस-कार्बमॉयलेशन किया। जब मिथाइल आइसोसाइनेट जैसा कोई रसायन शरीर में प्रवेश करता है तो वह शरीर के भीतर मौजूद प्रोटीन और एंजाइम या अन्य जैविक पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया करता है और उन पर एक नया रासायनिक समूह जोड़ देता है। इस प्रक्रिया को कार्बमॉयलेशन कहते हैं। यह नया रसायन समूह शरीर के प्रोटीन और एंजाइम के सामान्य कामकाज को प्रभावित करते हैं।
भोपाल गैस त्रासदी केवल एमआईसी की विषाक्तता का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके गर्मी के विघटन से उत्पन्न यौगिकों का भी असर था
शरीर में प्रोटीन सामान्य रूप से काम करते हैं, लेकिन कार्बमॉयलेशन प्रक्रिया होने पर उनकी संरचना हमेशा के लिए बदल जाती है। यह उनके कार्यों को बाधित कर सकता है, जैसे ऑक्सीजन पहुंचाने वाला हीमोग्लोबिन सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता। शरीर में मौजूद एक अहम एंटीऑक्सीडेंट ग्लूटाथायोन पर भी इसका असर पड़ता है। कार्बमॉयलेशन के कारण यह विषाक्त पदार्थों को बेअसर करने की क्षमता खो सकता है। एमआईसी ने कॉर्बमॉयलेशन के जरिए पीड़ितों के स्वास्थ्य पर दोनों असर डाले। उनके शरीर में जो प्रोटीन और ऊतकों में बदलाव आए वह अब अपनी सामान्य स्थितियों में कभी लौट नहीं पाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकांश गैस पीड़ितों के फेफड़ों में गंभीर सूजन और उनमें खून का रिसाव था। साथ ही दिमाग में सूजन, छोटे रक्तस्राव और अन्य अंगों में भी क्षति पाई गई। इन तात्कालिक असर के अलावा सर्वाइवर लंबे समय तक श्वसन और नेत्र समस्याओं से जूझते रहे। इनमें अस्थमा, आंखों की रोशनी कम होना और संक्रमण का खतरा बढ़ा। गर्भपात, भ्रूण विकास में बाधा और जन्मजात विकार भी रिपोर्ट किए गए। आईसीएमआर की यह टेक्निकल रिपोर्ट स्पष्ट तौर पर बताती है कि कानूनी बाधाओं के कारण वैज्ञानिक निष्कर्ष देरी से प्रकाशित हुए। साथ ही एमआईसी टैंक के अवशेषों में पाए गए कई अज्ञात रसायनों का विषाक्त प्रभाव अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। इस रिपोर्ट ने यह साबित किया कि भोपाल गैस त्रासदी केवल एमआईसी की विषाक्तता का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके गर्मी से विघटन ( प्रायोलाइसिस) से उत्पन्न यौगिकों का भी असर था।