प्रदूषण

खबरदार! थोड़े समय के लिए भी प्रदूषण के संपर्क से दिल्ली में बढ़ सकती है आपातकालीन मरीजों की संख्या

Lalit Maurya

दिल्ली में नवंबर की शुरूआत के साथ ही प्रदूषण का स्तर आसमान छूने लगता है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक है। हवा में घुला यह जहर सांस के जरिए लोगों के शरीर में पहुंच रहा है, जो उन्हें हर दिन कहीं ज्यादा बीमार बना रहा है। सीपीसीबी द्वारा दिल्ली में आज 12 बजे तक प्रदूषण के स्तर को लेकर जो जानकारी साझा की गई है उसके अनुसार राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में प्रदूषण का स्तर 400 के पार पहुंच चुका है, जो बेहद गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है। 

लेकिन क्या सिर्फ लम्बे समय तक प्रदूषण में रहना ही जानलेवा है और क्या थोड़े समय के लिए भी प्रदूषण का संपर्क स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, यह सवाल सभी के मन में बना रहता है। इसको लेकर हाल ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि थोड़े समय के लिए भी प्रदूषण के बढ़ने से अस्पतालों में सांस की समस्या से पीड़ित आपातकालीन मरीजों की संख्या बढ़ सकती है।

द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज जर्नल के अक्टूबर 2023 अंक में प्रकशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि कुछ घंटों से लेकर सात दिनों के बीच भी नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के संपर्क में आने से इमरजेंसी सेवाओं का दौरा करने वाले मरीजों की संख्या 53 फीसदी तक बढ़ सकती है।

ऐसा ही कुछ प्रभाव पीएम 2.5 के मामले में देखने को मिला है, जिसकी वजह से अस्पताल का दौरा करने वाले मरीजों की संख्या में 19.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। यदि पीएम 2.5 की बात करें तो यह प्रदूषण के अत्यंत महीन कण होते हैं, जिनका व्यास इंसानी बाल के व्यास के केवल 30 फीसदी के बराबर होता है। इतना महीन होने के कारण ही यह कण आसानी से इंसानी सांस के जरिए फेफड़ों और रक्त में प्रवेश कर सकते हैं।

यह अध्ययन दिल्ली के एक मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल का दौरा करने वाले मरीजों के बीच जून 2017 से फरवरी 2019 के बीच किया गया, जिसमें 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वयस्कों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

इसमें शोधकर्ताओं ने विभिन्न वायु प्रदूषकों जैसे पीएम 2.5, पीएम 10, ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के दैनिक स्तर और सांस सम्बन्धी परेशानियों के चलते रोजाना इमरजेंसी सेवाओं का दौरा करने वाले मरीजों के बीच संबंधों को प्रयास किया है। गौरतलब है कि इस दौरान 69,400 लोगों ने आपातकालीन सेवाओं का दौरा किया था, जिनमें से 2,669 लोगों सांस संबंधी परेशानियां थी।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि जिन लोगों को सांस सम्बन्धी परेशानियों के साथ-साथ दूसरी बीमारियां भी थी, अस्पताल में एडमिट होने वाले में उनकी संख्या कहीं ज्यादा थी। रिपोर्ट के मुताबिक सांस संबंधी परेशानियों के साथ दूसरी बीमारियों से पीड़ित 68.2 फीसदी मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी थी।

वहीं जिन लोगों को केवल सांस सम्बन्धी परेशानियां थी, उनमें से केवल  20.3 फीसदी मरीजों को अस्पताल में एडमिट करना पड़ा था। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि सांस के साथ-साथ अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए बढ़ता प्रदूषण कहीं ज्यादा जानलेवा है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी समस्याओं से पीड़ित मरीजों को इससे कहीं ज्यादा खतरा है।

साफ हवा में सांस लेने से दिल्लीवासियों की उम्र में हो सकता है 12 वर्षों का इजाफा

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) के हवाले से पता चला है कि यदि दिल्ली-एनसीआर में लोगों को साफ हवा मिले तो इससे उनकी आयु में औसतन 11.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है। वहीं यदि हर भारतीय साफ हवा में सांस ले तो उससे जीवन के औसतन 5.3 साल बढ़ सकते हैं।

आंकड़ों की मानें तो भारत में रहने वाले 130 करोड़ लोग आज ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जहां प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी दिशानिर्देशों (पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से कहीं ज्यादा है। देश में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) भी लम्बे समय से लोगों को आगाह करता रहा है। साथ ही इससे निपटने के लिए क्या करना चाहिए इस बारे में भी जानकारी साझा करता रहा है।

यदि वायु प्रदूषण से जुड़े मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो न केवल दिल्ली में बल्कि देश के दूसरे शहरों में भी हवा बेहद जहरीली हो चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 02 नवंबर 2023 को जारी आंकड़ों के मुताबिक फतेहाबाद, ग्रेटर नोएडा, हनुमानगढ़, हिसार और जींद में तो प्रदूषण आपात स्थिति में पहुंच गया है। जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 के पार है।

इसी तरह दिल्ली-फरीदाबाद सहित 19 शहरों में प्रदूषण का स्तर बेहद खराब स्थिति में पहुंच गया है। वहीं 44 अन्य शहरों में भी प्रदूषण का स्तर दमघोंटू है, जबकि महज 21 शहरों में हवा बेहतर बताई गई है। हालांकि वो भी डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों से कहीं ज्यादा दूषित है। 

भारत में वायु गुणवत्ता से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।