प्रदूषण

एनसीएपी शहरों में केवल दस फीसदी में ही एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग

सीएसई ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत आने वाले शहरों में केवल 10 प्रतिशत शहरों में ही वायु प्रदूषण निगरानी की सुविधा उपलब्ध है

Anil Ashwani Sharma

यूएन इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई दिवस पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने खुलासा किया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत आने वाले शहरों में केवल 10 प्रतिशत शहरों में ही एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग की सुविधा उपलब्ध है।

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी, मैनुअल) और सीएएक्यूएमएस (रियल टाइम) को मिला दिया जाए तो केवल 400 शहरों/कस्बों में पीएम10 क्वालिटी मोनिटरिंग की सुविधा उपलब्ध है।

इनमें से 213 (51 फीसदी) के पास केवल मैनुअल मॉनिटरिंग है, 90 (21 फीसदी) के पास केवल रियल टाइम मॉनिटरिंग है और 97 शहरों/कस्बों (23 फीसदी) में दोनों हैं।

22 शहरों/कस्बों (5 प्रतिशत) में मैनुअल स्टेशन हैं, लेकिन 2015 के बाद से कोई डेटा रिपोर्ट नहीं किया है और उन्हें निष्क्रिय माना जा सकता है। इन शहरों में कुल मिलाकर 1,176 पीएम10 निगरानी स्टेशन (804 मैनुअल स्टेशन और 372 रीयल टाइम स्टेशन) हैं। एनसीएपी शहरों में से केवल आधे में ही रियल टाइम मॉनिटरिंग उपलब्ध है।

2019 में 132 एनसीएपी शहरों में से केवल 51 में ही रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन थे। 2021 में यह संख्या बढ़कर 63 हो गई। 2022 में अब तक छह और एनसीएपी शहरों ने रियल टाइम मॉनिटर लगाए हैं।

रियल टाइम मॉनिटरिंग वाले लगभग एक चौथाई एनसीएपी शहर न्यूनतम डेटा पूर्णता आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं। 2021 में, 63 एनसीएपी शहरों में से 15 (24 प्रतिशत) ने न्यूनतम डेटा पूर्णता आवश्यकता (वर्ष की प्रत्येक तिमाही में 24 घंटे के वैध आंकड़ों के 60 दिन) को पूरा नहीं किया। 2019 में, यह संख्या और भी कम थी: केवल 16 प्रतिशत।

सात शहरों में नगण्य (5 प्रतिशत से कम) परिवर्तन हुआ है। इनमें दिल्ली और गाजियाबाद शामिल हैं। ऐसे 16 शहर हैं, जिन्होंने अपने पीएम 2.5 स्तरों में उल्लेखनीय वृद्धि (5 प्रतिशत या अधिक) दर्ज की है। खन्ना, जयपुर और उदयपुर में हालात सबसे बुरे हैं और उनके वर्ष 2021 के वार्षिक स्तर में 2019 के वार्षिक स्तर की तुलना में 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।

6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ फरीदाबाद शहरों के इस पूल में एकमात्र एनसीआर में स्थित एनसीएपी शहर है जहां हवा की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र शहर उन शहरों की सूची में हावी हैं, जिन्होंने 2019 और 2021 के बीच पीएम 2.5 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है।

चेन्नई, वाराणसी और पुणे एनसीएपी शहरों में सबसे अधिक सुधार दिखाते हैं। लेकिन बढ़ते प्रदूषण स्तर वाले शहरों के विपरीत, जिनका क्षेत्रीय पैटर्न बहुत स्पष्ट है, शहरों में वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार की रिपोर्ट करने वाले शहरों में कोई क्षेत्रीय पैटर्न नहीं देखा गया है।

गैर-एनसीएपी शहरों का प्रदर्शन देखा जाए तो ऐसे 46 शहर हैं जो एनसीएपी के तहत शामिल नहीं हैं, लेकिन 2019 और 2021 दोनों के लिए पर्याप्त रियल टाइम डेटा उपलब्ध है। इस समूह में 15 शहरों ने 2019 और के बीच वार्षिक पीएम 2.5 के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है।

2021 गुजरात में अंकलेश्वर वार्षिक पीएम 2.5 मूल्य में 34 प्रतिशत की वृद्धि के साथ पूल में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला है, इसके बाद सतना (मध्य प्रदेश), वटवा (गुजरात), बहादुरगढ़ (हरियाणा) और भटिंडा (पंजाब) का स्थान है जिनमें से सभी ने 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की है।

2019 और 2020 के बीच वायु प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज करने वाले गैर-एनसीएपी शहरों की सूची में हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात के शहर मुख्य हैं।आंध्र प्रदेश में तिरुपति और पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी वे अन्य दो शहर हैं जो इस समूह में आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से ज्यादातर शहर एनसीआर से बाहर हैं।

दक्षिणी हरियाणा में पलवल ने अपने वार्षिक पीएम 2.5 स्तर में 60 प्रतिशत सुधार के साथ गैर-एनसीएपी शहरों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। वास्तव में, एनसीआर के शहर सबसे बेहतर गैर-एनसीएपी शहरों की सूची मेंआगे हैं।

अधिकांश परिवर्तन (सकारात्मक या नकारात्मक) उत्तर भारतीय शहरों में नोट किए गए हैं। एनसीआर के भीतर के शहरों में सुधार हुआ है जबकि बाहर के शहरों से हालात बिगड़ने के संकेत आ रहे हैं।