अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में छपे शोध के अनुसार गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भपात का खतरा 50 फीसदी बढ़ जाता है । हालांकि पिछले अध्ययनों में भी वायु प्रदूषण और गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताओं पर प्रकाश डाला गया था, लेकिन उसके विषय में जानकारी बहुत सीमित ही थी । इससे पहले जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में छपे एक शोध ने इस बात की पुष्टि की थी । जिसमें बेल्जियम में गर्भवती महिलाओं पर किये गए अध्ययन में यह बात सामने आयी थी कि प्रदूषण, मां की सांस से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है और उनको अपना शिकार बना रहा है।
चीनी शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा प्रकाशित इस नए शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषक के संपर्क में आने से गर्भपात होने का खतरा 50 फीसदी तक बढ़ जाता है, जिसमें गर्भवती महिला को इस बात कि भनक भी नहीं लगती कि कब उसके अजन्मे की मृत्यु हो चुकी है । अध्ययन के अनुसार हवा में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सल्फर डाइऑक्साइड की उपस्थिति से गर्भपात का खतरा 41 फीसदी तक बढ़ गया। जबकि वायु में प्रदूषकों की मात्रा के बढ़ने से गर्भपात का खतरा 52 फीसदी तक बढ़ सकता है।
पहली तिमाही में अधिक खतरा
अध्ययन में पाया गया कि हवा में मौजूद प्रदूषकों के कणों के साथ-साथ सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन और कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने से गर्भावस्था की पहली तिमाही में गर्भपात का खतरा कहीं अधिक था । जब भ्रूण अल्पविकसित अवस्था में होता है । वहीं प्रदूषण के बढ़ने के साथ यह खतरा और बढ़ता जाता है । यह तब होता है जब भ्रूण की मृत्यु हो जाती है या गर्भाशय में रहते हुए प्रारंभिक गर्भावस्था में उसका बढ़ना बंद हो जाता है, और अक्सर हफ्तों के बाद नियमित अल्ट्रासाउंड परीक्षणों के दौरान इस बात का पता चलता है।
चायनीस एकडेमी ऑफ साइंसेज ने चार अन्य विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर ने 2009 से 2017 के बीच बीजिंग में करीब 240,000 गर्भवती महिलाओं पर वायु प्रदूषण के पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया था। जिनमें से 17,497 महिलाएं इस बात से अनभिज्ञ थी कि उनका गर्भपात हो गया है । इसके लिए शोधकर्ताओं ने महिलाओं के घरों और कार्यस्थलों के आसपास वायु प्रदूषकों निगरानी करने के लिए लगाए गए स्टेशनों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया, ताकि प्रदूषण के मामलों को उजागर किया जा सके।
अध्ययन में सम्मिलित एक शोधकर्ता ने बताया कि "चीन की आबादी में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, हमारा अध्ययन देश के लिए एक प्रेरणास्रोत हो सकता है ताकि जन्म दर बढ़ाने के लिए वायु प्रदूषण को कम किया जा सके ।" मेलबर्न विश्वविद्यालय के प्रसूति और स्त्री रोग विभाग के प्रोफेसर शॉन ब्रेनके ने बताया कि "हालांकि अध्ययन में प्रदूषण और गर्भपात के बीच एक परिमाणात्मक सम्बन्ध दिखाया गया है । फिर भी इसे पूरी तरह से समझने के लिए एक ऐसे प्रयोगशाला की जरुरत होगी जिसकी सहायता से मानव भ्रूण पर प्रयोग किया जा सके और जो नैतिक रूप से सही भी हो"।
भारत में भी गर्भवती महिलाएं और उनके अजन्मे नहीं हैं सुरक्षित
हाल के वर्षों में चीन की राजधानी बीजिंग में वायु प्रदूषण का स्तर काफी गिर गया है, यहां तक कि प्रदूषकों की मात्रा जगह के अनुसार दिन-प्रतिदिन बदलती रहती है । लेकिन इसके बावजूद वर्तमान में बीजिंग के वातावरण में छोटे वायु प्रदूषकों (पीएम2.5) का स्तर अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित सीमा से चार गुना अधिक हैं। गौरतलब है कि छोटे कण मानव के फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकते हैं । दिल्ली समेत भारत के कई शहरों में भी वायु प्रदूषण की यही स्थिति है, जहां प्रदूषण दिनों दिन बढ़ता जा रहा है, यहां भी वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं समान रूप से खतरा है । हाल ही में छपी रिपोर्ट स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार अकेले भारत में 12.4 लाख लोग हर वर्ष वायु प्रदूषण शिकार बन जाते हैं । हमें यदि भविष्य को वायु प्रदूषण के खतरे से बचाना है तो इससे निपटने के लिए ठोस नीति बनाने की जरुरत है, जिससे अपनी आने वाली नस्लों को प्रदूषण के जहर से बचाया जा सके ।