एक नए अध्ययन से पता चला है कि एरोसोल प्रदूषण दुनिया भर में जलवायु और वायु की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है।
एरोसोल छोटे ठोस कण और तरल बूंदें हैं जो स्मॉग को बढ़ाते हैं और औद्योगिक कारखानों, बिजली संयंत्रों और वाहन से निलने वाले धुंए से उत्सर्जित होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन की तुलना में वे वैश्विक पैटर्न में लोगों के स्वास्थ्य, कृषि और आर्थिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों के लिए अहम हैं।
यह अध्ययन ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो के नेतृत्व में किया गया है।
सह-अध्ययनकर्ता गीता प्रसाद ने कहा हालांकि सीओ 2 और एरोसोल अक्सर ईंधन के जलने के दौरान एक ही समय में उत्सर्जित होते हैं, दो पदार्थ पृथ्वी के वायुमंडल में अलग-अलग व्यवहार करते हैं। प्रसाद यूटी ऑस्टिन जैक्सन स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज में सहायक प्रोफेसर हैं।
पर्सड ने कहा कार्बन डाइऑक्साइड का जलवायु पर समान प्रभाव पड़ता है, चाहे कोई भी इसे उत्सर्जित करे। लेकिन इन एरोसोल प्रदूषकों के लिए, वे जहां उत्सर्जित होते हैं, उनके पास केंद्रित रहते हैं, इसलिए जलवायु प्रणाली पर उनका जो प्रभाव होता है, वह बहुत ही कमजोर होता है और इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि वे कहां से आ रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि, जहां एरोसोल उत्सर्जित होते हैं, जो कार्बन की सामाजिक लागत को बिगाड़ सकते हैं। आर्थिक लागत का लगभग 66 प्रतिशत तक ग्रीनहाउस गैसों का समाज पर है असर पड़ता है। वैज्ञानिकों ने आठ प्रमुख देशों को देखा जिसमें ब्राजील, चीन, पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप, भारत, इंडोनेशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे।
यूसी सैन डिएगो स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रैटेजी में ग्लोबल क्लाइमेट पॉलिसी एंड रिसर्च में सह-अध्ययनकर्ता और मार्शल सॉन्डर्स चांसलर के एंडेड चेयर जेनिफर बर्नी ने कहा, यह शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि उत्सर्जन के हानिकारक प्रभावों को आम तौर पर कम करके आंका जाता है।
सीओ 2 ग्रह को गर्म कर रहा है, लेकिन यह अन्य यौगिकों के एक समूह के साथ भी उत्सर्जित होता है जो लोगों और पौधों को सीधे प्रभावित करते हैं और अपने आप में जलवायु परिवर्तन का कारण बनते हैं।
एरोसोल सीओ 2 स्वतंत्र रूप से लोगों के स्वास्थ्य और जलवायु को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। जब हम सांस लेते हैं तो इनका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और तापमान, वर्षा के पैटर्न और पृथ्वी की सतह पर कितनी धूप पहुंचती है, इस पर भी असर डालर जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।
सीओ2 की तुलना में एरोसोल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, टीम ने नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च द्वारा विकसित कम्युनिटी अर्थ सिस्टम मॉडल संस्करण 1 का उपयोग करके जलवायु सिमुलेशन का एक सेट बनाया। उन्होंने सिमुलेशन चलाया जिसमें आठ क्षेत्रों में से प्रत्येक ने समान एरोसोल उत्सर्जन का उत्पादन किया और उसे मापा, जिससे यह पता लगाया गया कि दुनिया भर में तापमान, वर्षा और सतह की वायु गुणवत्ता कैसे प्रभावित हुई।
फिर उन्होंने इन आंकड़ों को आठ क्षेत्रों में जलवायु और वायु गुणवत्ता और शिशु मृत्यु दर, फसल उत्पादकता और सकल घरेलू उत्पाद के बीच ज्ञात संबंधों से जोड़ा। अंतिम चरण में, उन्होंने आठ क्षेत्रों में से प्रत्येक में साथ में उत्सर्जित सीओ 2 की सामाजिक लागत के खिलाफ इन एयरोसोल-संचालित प्रभावों की कुल सामाजिक लागत की तुलना की और एरोसोल और सीओ 2 दोनों के प्रभावों के वैश्विक मानचित्र तैयार किए।
शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन पिछले काम की तुलना में एक बड़ा कदम है, जिसने या तो केवल एयरोसोल के वायु गुणवत्ता प्रभावों का अनुमान लगाया या उनके दुनिया भर में पड़ने वाले अलग-अलग जलवायु प्रभावों पर विचार नहीं किया।
परिणाम एक विविध और जटिल तस्वीर पेश करता है। कुछ क्षेत्रों से उत्सर्जन जलवायु और वायु गुणवत्ता प्रभाव उत्पन्न करते हैं जो अन्य की तुलना में दो से 10 गुना अधिक मजबूत होते हैं। सामाजिक लागतें जो कभी-कभी एरोसोल उत्सर्जन का उत्पादन करने वाले क्षेत्र की तुलना में पड़ोसी क्षेत्रों को अधिक प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, यूरोप में स्थानीय उत्सर्जन के परिणामस्वरूप यूरोप के बाहर चार गुना अधिक शिशु मृत्यु होती है।
लेकिन शोधकर्ताओं ने गौर किया कि एरोसोल उत्सर्जन हमेशा उत्सर्जक और ग्रह दोनों के लिए खराब होता है।
प्रसाद ने कहा कि जबकि हम एयरोसोल्स के बारे में सोच सकते हैं, जो जलवायु को ठंडा करते हैं, जैसे कि सीओ 2 की वजह से होनी वाली गर्मी का मुकाबला करने के इन सभी प्रभावों को एक साथ जोड़कर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि एरोसोल का उत्सर्जन किसी भी क्षेत्र में स्थानीय आधार पर फायदा नहीं पहुंचता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि निष्कर्ष देशों के लिए उत्सर्जन में कटौती के लिए संभावित नई सीमा पैदा करते हैं, अन्य देशों के उत्सर्जन में कटौती की परवाह करते हैं। उदाहरण के लिए, अध्ययन में पाया गया कि कार्बन डाइऑक्साइड की लागत में एरोसोल की लागत को जोड़ने से उत्सर्जन को कम करने के लिए चीन के प्रोत्साहन को दोगुना किया जा सकता है।
यह यूरोप में स्थानीय उत्सर्जन के प्रभाव को शुद्ध स्थानीय लाभ से शुद्ध लागत में बदल देता है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि पूर्वी अफ्रीकी देशों और भारत जैसी कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाओं को उत्सर्जन में कटौती पर सहयोग करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है क्योंकि वे एक-दूसरे के उत्सर्जन से काफी प्रभावित हैं।
इस अध्ययन में विकसित रूपरेखा को नीति निर्माताओं द्वारा विचार की जा रही मौजूदा कम करने की रणनीतियों से सामाजिक लाभ को अधिकतम करने के लिए भी लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने इसे पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित "निष्पक्ष-शेयर" के आधार पर लागू किया। जिसमें सभी देश समान प्रति व्यक्ति सीओ 2 उत्सर्जन को लक्षित करते हैं।
उन्होंने पाया कि जलवायु स्थिरता के लिए फायदेमंद, एरोसोल और सीओ 2 उत्सर्जन से मृत्यु दर और फसल प्रभावों में सुधार नहीं होता है। क्योंकि यह उन देशों में शमन पर गौर करता है जिन पर पहले से ही एयरोसोल का काफी कम प्रभाव हैं। जिसमें अमेरिका तथा यूरोपीय देश शामिल हैं। यह अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।