प्रदूषण

भारत के 48 फीसदी शहरों में डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों से 10 गुना ज्यादा था वायु प्रदूषण का स्तर

2021 के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 96.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जो डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों से करीब 20 गुना ज्यादा था

Lalit Maurya

हाल ही में जारी एक नई रिपोर्ट “2021 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट” के हवाले से पता चला है कि 2021 के दौरान देश के 48 फीसदी शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों से करीब 10 फीसदी ज्यादा था।

गौरतलब है कि 2021 के दौरान देश में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 58.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। जिसकी वजह से वायु गुणवत्ता में पिछले तीन वर्षों से दर्ज किए गए सुधार का भी अंत हो गया था और पीएम 2.5 का वार्षिक औसत दोबारा 2019 के स्तर पर पहुंच गया था।

संगठन आईक्यू एयर द्वारा जारी यह रिपोर्ट 117 देशों के 6,475 शहरों से लिए पीएम2.5 के वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ों पर आधारित है।   

देखा जाए तो 2021 में देश का ऐसा कोई भी शहर नहीं था, जो डब्लूएचओ की गाइडलाइन को पूरा करता हो। गौरतलब है कि वायु प्रदूषण के बढ़ते असर को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सितम्बर 2021 में पीएम2.5 के वार्षिक मानक को 10 से घटाकर 5 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर कर दिया था, जिससे प्रदूषण के बढ़ते असर को सीमित किया जा सके।            

रुझान को देखें तो मध्य और दक्षिण एशिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 11 भारत में ही हैं, जिनमें दिल्ली भी एक है। देखा जाए तो 2021 में दिल्ली के पीएम2.5 के स्तर में पिछले वर्ष की तुलना में 14.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। गौरतलब है कि 2020 के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर  84 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जो 2021 में बढ़कर 96.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया था।    

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा सर्दियों के दौरान (15 अक्टूबर 2021 से 15 फरवरी 2022) देश के अलग-अलग हिस्सों की वायु गुणवत्ता का विश्लेषण किया गया था। जिसके अनुसार सर्दियों में देश के सभी हिस्सों में वायु प्रदूषण के कणों में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई थी।

हालांकि इस बात से संतोष किया जा सकता है कि अधिकांश क्षेत्रों में पीएम 2.5 का कुल क्षेत्रीय औसत पिछली सर्दियों की तुलना में कम था, लेकिन कई क्षेत्रों में सर्दियों में होने वाले धुंध के चरणों में गंभीर वृद्धि दर्ज की गई थी। खासकर उत्तरी और पूर्वी मैदानी इलाकों में क्षेत्रों के बीच बड़ी दूरी होने के बावजूद प्रदूषण का चरम खतरनाक रूप से ज्यादा था।    

सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया का कोई भी देश मानकों पर नहीं है खरा

रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया का कोई भी देश 2021 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा नहीं था। देखा जाए तो वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरण सम्बन्धी खतरों में से एक है जो हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान ले रहा है। इतना ही नहीं यदि 2019 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो धीरे-धीरे उसकी जान ले रही है।  

इतना ही नहीं वातावरण में बढ़ता प्रदूषण अस्थमा, कैंसर और मानसिक रोगों जैसी बीमारियों की जड़ है। जिसका बोझ दुनिया के लाखों लोगों को ढोना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 222 शहरों ने डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों को हासिल किया था जबकि दूसरी तरफ 93 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर तय मानकों से करीब 10 गुना ज्यादा था। 

वहीं यदि इससे होने वाले आर्थिक नुकसान को देखें तो रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण हर रोज 60938 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा रहा है जोकि विश्व के सकल उत्पाद के करीब 4 फीसदी के बराबर है। रिपोर्ट का मानना है कि वायु प्रदूषण समाज के कमजोर तबके को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है।

अनुमान है कि 2021 में पांच वर्ष से कम उम्र के 40,000 बच्चों की मौत के लिए सीधे तौर पर पीएम2.5 जिम्मेवार था। इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि पीएम2.5 के संपर्क में आने से कोविड-19 संक्रमण का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है जिससे मृत्यु भी हो सकती है।