इसमें कोई शक नहीं कि देश में वायु प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि देश में वायु प्रदूषण का जो स्तर है वो एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन करीब 5.9 वर्ष छीन रहा है। ऐसे में यदि देश पीएम 2.5 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों को हासिल कर लेता है तो इसे टाला जा सकता है।
दिल्ली जैसे कुछ शहरों में तो यह आंकड़ा 9.7 है जिसका मतलब है कि एक आम दिल्लीवासी जितनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहा है उससे उसके जीवन के करीब 9.7 वर्ष कम हो जाते हैं। वहीं यदि उत्तरप्रदेश को देखें जो सबसे प्रदूषित राज्यों में से एक है वहां यह आंकड़ा 9.5 वर्ष है। यह जानकारी हाल ही में दिल्ली स्थित शिकागो विश्वविद्यालय के इनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है। वहीं यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो पीएम 2.5 औसतन हर व्यक्ति की आयु 2.2 वर्ष कम कर रहा है।
यही नहीं अनुमान है कि भारत की करीब 40 फीसदी आबादी जितने प्रदूषण में सांस लेने को मजबूर हैं उतनी दूषित हवा तो दुनिया के किसी कोने में नहीं है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर भारत में रहने वाली करीब 51 करोड़ की आबादी इतनी दूषित हवा में सांस ले रही है जो उनसे उनके जीवन के औसतन साढ़े आठ वर्ष छीन सकती है।
यदि भारत में वायु प्रदूषण के औसत स्तर को देखें तो 2019 में देश में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का औसत स्तर 70.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा पीएम 2.5 को लेकर जारी मानक से सात गुना ज्यादा था। गौरतलब है कि डब्लूएचओ ने हवा में पीएम 2.5 की गुणवत्ता के लिए जो मानक तय किया है वो 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। इसका मतलब है कि इससे ज्यादा दूषित हवा में सांस लेने पर हमारे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। वहीं भारत सरकार ने पीएम 2.5 के लिए 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया है।
इस तरह यदि डब्लूएचओ द्वारा जारी मानक को देखें तो भारत की 130 करोड़ की आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है जो उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। भारत में कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है जो डब्लूएचओ के मानक को पूरा करता है केवल लद्दाख में वायु गुणवत्ता का स्तर 12 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था। वहीं दिल्ली में यह 109, बिहार में 100, और उत्तर प्रदेश में 107 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़ें दिखाते हैं कि 1998 से अब तक पार्टिकुलेट मैटर में करीब 15 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।
मानकों को हासिल करने से कहां कितनी बढ़ जाएगी जीवन प्रत्याशा
यदि उत्तरप्रदेश के शहरों को देखें तो लखनऊ और इलाहाबाद में पीएम 2.5 के वार्षिक औसत स्तर को देखें तो वो 2019 में डब्लूएचओ गाइडलाइन्स से करीब 12 गुना ज्यादा था। जो वहां रहने वाले लोगों की औसत आयु में से 11.1 की कमी कर सकता है। वहीं देश के अन्य राज्यों में वायु गुणवत्ता के लिए डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों को हासिल कर लिया जाता है तो उससे बिहार के लोगों की जीवन प्रत्याशा में 8.8 वर्ष, हरियाणा में 8.4 वर्ष, झारखंड 7.3 वर्ष, पश्चिम बंगाल में 6.7 वर्ष और मध्य प्रदेश में रहने वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा में 5.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है।
इस बारे में एक्यूएलआई के निर्देशक केन ली ने बताया कि “बुरी खबर यह है कि वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर दक्षिण एशिया में केंद्रित है। वहीं अच्छी खबर यह है कि इस क्षेत्र में सरकारें इस समस्या की गंभीरता को अब स्वीकार कर कार्रवाई करना शुरु कर रही हैं।” उन्होंने कहा कि “भारत का राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी), स्वच्छ वायु और बेहतर लंबे जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक नया कमीशन भी स्थापित किया है।“
गौरतलब है कि भारत में दूषित हवा को साफ करने के इरादे से वर्ष 2019 में एनसीएपी कार्यक्रम को शुरु किया गया था। इसका मकसद देश में जीवन प्रत्याशा में 1.8 वर्ष और नई दिल्ली में 3.5 वर्ष की वृद्धि करना था। साथ ही इसका लक्ष्य 2024 तक देश के सबसे दूषित 102 शहरों में 2024 तक वायु प्रदूषण को 20 से 30 फीसदी तक कम करना था। उत्तरप्रदेश और दिल्ली जैसे वायु प्रदूषण के हॉटस्पॉट्स वाले क्षेत्रों में इसका कहीं ज्यादा फायदा होगा। जहां वायु प्रदूषण का स्तर दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में दस गुना अधिक है।
हाल ही में चीन ने इस समस्या से जिस तरह से छुटकारा पाया है वो अपने आप में एक मिसाल है। चीन एक महत्वपूर्ण मॉडल है, जो दिखाता है कि नीतियों के जरिए कम समय में ही प्रदूषण पर तेजी से लगाम लगाई जा सकती है। गौरतलब है कि चीन ने वर्ष 2013 में प्रदूषण के खिलाफ जंग आरम्भ की थी, जिसके बाद से उसके पार्टिकुलेट प्रदूषण में 29 फीसदी की कमी आई है, जोकि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण में आई कमी का तीन-चौथाई है।