प्रदूषण

59 लाख बच्चों के असमय पैदा होने के लिए जिम्मेवार है वायु प्रदूषण

दुनिया भर में हर साल वायु प्रदूषण के चलते करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है जबकि करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है

Lalit Maurya

दुनिया भर में हर साल करीब 59 लाख नवजातों का जन्म वायु प्रदूषण के चलते समय से पहले ही हो जाता है। यही नहीं वायु प्रदूषण के चलते जन्म के समय करीब 28 लाख नवजातों का वजन सामान्य से कम होता है। गौरतलब है कि एक सामान्य बच्चे का वजन जन्म के समय ढाई किलोग्राम या उससे ज्यादा होता है।

यह जानकारी हाल ही में राकेश घोष के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए शोध में सामने आई है, जोकि 28 सितम्बर 2021 को जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में शोधकर्ताओं ने घर के भीतर और बाहर दोनों जगह मौजूद वायु प्रदूषण के प्रभाव का विश्लेषण किया है।    

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को देखें तो हर वर्ष जन्म लेने वाले करीब 2 करोड़ नवजात बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। वहीं करीब 1.5 करोड़ बच्चों का जन्म समय से पूर्व ही हो जाता है।

वहीं ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) 2019 के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के 34 फीसदी बच्चों की मौत के लिए जन्म के समय कम वजन जिम्मेवार था, जबकि इसी आयु वर्ग के करीब 29 फीसदी बच्चों की मौत के लिए उनका समय से पूर्व जन्म लेना वजह था। 

यह पहला अध्ययन है जिसमें शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण और गर्भावस्था से जुड़ी कुछ प्रमुख समस्याओं पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है, जिसमें जन्म के समय गर्भस्थ शिशु की आयु, जन्म के समय कम वजन और समय से पहले वजन आदि को शामिल किया है।

इस शोध में घर के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण को भी शामिल किया गया है, जो ज्यादातर लकड़ी, कोयले और कंडों से चलने वाले चूल्हों के कारण होता है। अनुमान है कि यह इस समस्या के करीब दो-तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेवार है।

वहीं विशेषज्ञों का मत है कि जन्म के समय जिन बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है या फिर जिनका जन्म समय से पहले ही हो जाता है उनमें जीवन भर गंभीर बीमारियों का खतरा सामान्य बच्चों से कहीं ज्यादा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर है कि दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है, जो धीरे-धीर उन्हें मौत की ओर ले जा रही है। वहीं विश्व की करीब आधी आबादी भी घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण की जद में है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता राकेश घोष ने जानकारी दी है कि देखा जाए तो वायु प्रदूषण का बोझ काफी बड़ा है, फिर भी पर्याप्त प्रयासों से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता राकेश घोष ने जानकारी दी है कि देखा जाए तो वायु प्रदूषण का बोझ काफी बड़ा है, फिर भी पर्याप्त प्रयासों से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। उनके अनुसार शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने से नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को काफी हद तक फायदा होगा। 

भविष्य को बचाने के लिए आज उठाने होंगे कड़े कदम

शोध के अनुसार यदि दक्षिण पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में वायु प्रदूषण को कम कर दिए जाए तो वैश्विक स्तर पर नवजातों के समय से पहले जन्म लेने और जन्म के समय कम वजन के मामलों को करीब 78 फीसदी तक कम किया जा सकता है। गौरतलब है कि इन क्षेत्रों में घरों के भीतर होने वाला प्रदूषण एक आम समस्या है साथ ही यहां जन्म दर भी दुनिया में सबसे ज्यादा है।

हालांकि इन क्षेत्रों में की गई कार्रवाई समस्या को काफी कम कर सकती है पर साथ ही यह भी देखा गया है कि यह समस्या दुनिया के कई विकसित देशों में भी है।  उदाहरण के लिए अमेरिका में घर के बाहर होने वाले वायु प्रदूषण के चलते 2019 में करीब 12,000 बच्चों का जन्म समय से पूर्व हो गया था। इससे पहले इस दल द्वारा किए अध्ययन में सामने आया था कि 2019 में वायु प्रदूषण करीब 5 लाख शिशुओं की मौत के लिए जिम्मेवार था।  

इससे पहले अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में छपे एक शोध से पता चला था कि गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भपात का खतरा करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस शोध के अनुसार हवा में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सल्फर डाइऑक्साइड से गर्भपात का खतरा 41 फीसदी तक बढ़ गया, जबकि वायु में प्रदूषकों की मात्रा के बढ़ने से गर्भपात का खतरा 52 फीसदी तक बढ़ सकता है।

हाल ही में छपी रिपोर्ट स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार अकेले भारत में हर वर्ष 12.4 लाख लोग वायु प्रदूषण शिकार बन जाते हैं । ऐसे में यदि अपने आने वाले कल को वायु प्रदूषण के खतरे से बचाना है तो इससे  निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाने की जरुरत है, जिससे आने वाली नस्लों को प्रदूषण के जहर से बचाया जा सके ।