प्रदूषण

जहरीले धुएं की चपेट में आ रहा है वादियों का शहर देहरादून

दिवाली के बाद से दिल्ली की ही तरह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भी वायु प्रदूषण की चपेट में है और लोगों को बाहर निकलने में परेशानी हो रही है

Varsha Singh

दिवाली बीतने के तीसरे दिन तक भी देहरादून में धुंध एक पर्यावरणीय उदासी के रूप में पसरी हुई है। सड़क मार्ग ही नहीं, प्रदूषण के लिहाज से भी देहरादून से दिल्ली अब दूर नहीं है। तमाम जागरुकता अभियानों के बावजूद दूनवासी पटाखे छोड़ने में पीछे नहीं रहे। पटाखों से निकले धुएं का गुबार हवा में प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ रहा है। 

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस वर्ष दिवाली पर देहरादून में दून अस्पताल, रायपुर, नेहरू कॉलोनी और ऋषिकेश के ढालूवाला में प्रदूषण स्तर को माप रहा है। दिवाली के सात दिन पहले से सात दिन बाद तक ये प्रक्रिया चलेगी। इसके बाद आंकड़ों का विश्लेषण कर रिपोर्ट जारी की जाएगी। बोर्ड के दिवाली की शाम को लिए गए प्रदूषण स्तर के आंकड़े बताते हैं कि दून अस्पताल के आसपास पीएम-10 का स्तर 385 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रिकॉर्ड किया गया। रायपुर में ये 249, नेहरू कॉलोनी में 166 और ऋषिकेश के ढालूवाला में 283 दर्ज किया गया। जबकि मानकों के लिहाज से सामान्य तौर पर पीएम-10 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए।

इसके साथ ही पीएम-2.5 का स्तर दून अस्पताल के पास 184, रायपुर में 151, नेहरू कॉलोनी में 72 और ढालूवाला में 152 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई। सामान्य तौर पर पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल कहते हैं कि फिलहाल आंकड़े इकट्ठा किये जा रहे हैं। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में दिवाली के दिन होने वाले प्रदूषण में कुछ कमी आई है। लोग भी जागरुक हो रहे हैं। उनके मुताबिक आतिशबाजी के साथ प्रदूषण की अन्य वजहें जैसे गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य से भी वायु की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

देहरादून में प्रदूषण को लेकर कार्य कर रही संस्था गति फाउंडेशन ने भी इस बार दिवाली से पहले लोगों को पटाखों से दूर रखने के लिए जागरुकता अभियान चलाया। संस्था के रिसर्च हेड ऋषभ श्रीवास्तव के मुताबिक वायु प्रदूषण के मुद्दे पर लोगों को अधिक व्यावहारिक और मानवीय बनाना जरुरी है। वे कहते हैं कि वायु प्रदूषण का मुद्दा अक्सर दिल्ली या बेंगलुरु जैसे महानगरों तक ही केंद्रित रह जाता हैजबकि देहरादून जैसा छोटा शहर भी खराब वायु गुणवत्ता से जूझ रहा है। ऋषभ के अनुसार जो लोग सड़क पर अधिकतम समय बिता रहे हैंवे असली पीड़ित हैं। इस अभियान के माध्यम से ऑटो चालकोंसब्जी विक्रेताओंयातायात पुलिस अधिकारियों के जीवन पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को समझने की कोशिश की गई। उनका कहना है कि क्षेत्र के लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने में प्रत्येक नागरिक की भूमिका होती है।

ऋषभ कहते हैं कि दून घाटी में प्रदूषण की समस्या यहां की भौगोलिक संरचना की वजह से भी गंभीर हो जाती है। बाउल शेप यानी कटोरे के आकार का होने के चलते बाहर से आए हुए प्रदूषणकारी तत्व भी यहां ठहर जाते हैं। सर्दियों में हवा की रफ्तार यूं भी कम होती है इसलिए यहां धुंध जमा हो जाती है। उनके मुताबिक दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी का प्रदूषण में कम योगदान होता है। जबकि ट्रांसपोर्ट, घरों में चल रहे चूल्हे, डीजी सेट्स जैसी वजहों से दून में लगातार प्रदूषण स्तर में इजाफा हो रहा है। हमें इस पर कार्य करना होगा।

देहरादून मौसम विभाग के निदेशक बिक्रम सिंह के मुताबिक पिछले तीन दिनों से छाई धुंध मौसमी वजहों के चलते है, प्रदूषण की वजह से नहीं। मंगलवार से धूप खिलने लगेगी।

लगातार शहरीकरण के चलते देहरादून में प्रदूषण में लगातार इजाफा हो रहा है। डबल्यूएचओ ने भी अपनी रिपोर्ट में देहरादून को 30वां सबसे प्रदूषित शहर बताया था। भौगोलिक संरचना और मौसमी परिस्थितियों के चलते भी यहां से प्रदूषण आसानी से बाहर नहीं निकलता। लोगों की सेहत पर वायु प्रदूषण का असर दिखाई देने लगा है।