प्रदूषण

दंगों और युद्ध से कई गुणा अधिक मौतों का कारण बना वायु प्रदूषण

Lalit Maurya

दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक महामारी के रूप में फैल चुका है। जिससे भारत भी अछूता नहीं है। जबकि राजधानी दिल्ली तो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। वैश्विक स्तर पर किये गए इस अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण दुनिया में अब विकराल रूप लेता जा रहा है। जिसके चलते हर साल करीब 90  लाख लोग असमय काल के गाल में समां जाते हैं। जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रतिव्यक्ति तीन साल छीन रहा है। इसका खतरा कितना बड़ा है इस बात का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज यह तंबाकू की तुलना में कहीं अधिक लोगों के जीवन को लील रहा है। यह अध्ययन मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री और द यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर मेंज के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। जोकि कार्डिवस्कुलर रिसर्च नामक जर्नल में छपा है।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता थॉमस मुंजेल ने बताया कि दुनिया भर में असमय होने वाली दो-तिहाई मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। उसमे भी मुख्य रूप से फॉसिल फ्यूल्स की एक बड़ी भूमिका है। उनका मानना है कि यह आंकड़ा उच्च आय वाले देशों में 80 फीसदी तक है। उनके अनुसार यदि वैश्विक रूप से फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन को ख़त्म कर दिया जाये तो इससे वायु की गुणवत्ता में आने वाले सुधार से जीवन प्रत्याशा 1 वर्ष तक बढ़ सकती है और मानव द्वारा किये जा रहे हर प्रकार के उत्सर्जन को ख़त्म कर दिया जाये तो इंसान दो और सालों तक जी सकेगा। शोधकर्ताओं के अनुसार आमतौर पर उम्र के बढ़ने के साथ असमय होने वाली मौतों का खतरा और बढ़ता जाता है। पर अफ्रीका और दक्षिण एशिया सहित कुछ क्षेत्रों में यह छोटे बच्चों के लिए अधिक घातक सिद्ध हुआ है। 

इसके अनुसार यदि अन्य कारको के साथ वायु प्रदूषण को तुलनात्मक रूप से देखें तो धूम्रपान से औसतन 2.2 वर्ष के बराबर जीवन घट रहा है। वहीं इसके चलते हर वर्ष करीब 72 लाख लोग मारे जाते हैं। जबकि यदि एचआईवी / एड्स को देखें तो इसके चलते हर साल लगभग 10 लाख लोग मारे जाते हैं। जबकि इसके कारण जीवन प्रत्याशा में 7 महीने की कमी आ रही है। जबकि मलेरिया और अन्य वेक्टर जनित रोग लगभग 600,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है। जिससे जीवन प्रत्याशा में करीब 6 महीने की कमी दर्ज की गयी है। वहीं दूसरी और युद्ध और अन्य हिंसा के मामलों में हर साल करीब 530,000 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। और जीवन प्रत्याशा के रूप में देखें तो इसके चलते उसमें तीन महीने की कमी आ रही है| वहीं हर साल दिमाग और दिल से जुडी बीमारियों से दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा पर सबसे ज्यादा असर डाल रही हैं।

अनुमान है कि दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा में आ रही कमी के 43 फीसदी हिस्से के लिए यही बीमारियां जिम्मेदार हैं। जबकि फेफड़ों के कैंसर, सांस और फेफड़ों से जुडी अन्य बीमारियों के चलते हर साल करीब 26 लाख लोगों की मौत हो जाती है और यह सभी बीमारियां आउटडोर एयर पोल्लुशन से जुडी हुई हैं।

शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं। साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेदार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

पिछले अध्ययन के अनुसार गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में पार्टिकुलेट मैटर का पाया जाना इस बात का सबूत है कि यह अजन्मों को भी अपना शिकार बना रहा है। साथ ही इसके चलते भ्रूण का विकास भी बाधित हो रहा है| यह माताओं के स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। वहीं एक अध्ययन में इसके चलते हड्डियों के कमजोर होने की बात को भी माना गया है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही आगाह कर चुका है कि दुनिया के 90 फीसदी से अधिक लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं।

भारत पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है| 2017 में दुनियाभर में प्रदूषण के चलते होने वाली असामयिक मौतों में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी रही। 2017 में होने वाली 83 लाख असामयिक मौतों में से 49 लाख प्रदूषण के चलते हुईं। इन मौतों में से तकरीबन 25 फीसदी मौतें भारत में हुईं। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और ग्रीनपीस द्वारा जारी नयी रिपोर्ट के अनुसार इसके चलते हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 15,000 करोड़ डॉलर (1.05 लाख करोड़ रुपए) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जिससे कोई नहीं बच सकता और न ही कोई इससे भाग सकता है। ऐसे में इससे बचने का सिर्फ एक तरीका है, जितना हो सके इसे कम किया जाये और इससे बचने के लिए जितना ज्यादा हो सकें पेड़ लगाएं। अनावश्यक यात्रा से बचें और इसके लिए पैदल और साइकिल जैसे प्रदूषण रही साधनों का प्रयोग करें। उद्योगों और अन्य स्रोतों से हो रहे उत्सर्जन को रोकने के लिए भी व्यापक कदम उठाने की जरुरत है। साथ ही इसकी रोकथाम हमारी नीतियों का एक मुख्य हिस्सा होना चाहिए।