प्रदूषण

भारत और चीन में समय से पहले भारी संख्या में लोगों को मौत के मुंह में धकेल सकता है वायु प्रदूषण

शोधकर्ताओं ने अधिकांश भविष्य के परिदृश्यों में पाया कि चीन और भारत में सबसे अधिक संख्या में अकाल मृत्यु होने के आसार हैं

Dayanidhi

पेन स्टेट की अगुवाई में शोधकर्ताओं की टीम ने वायु गुणवत्ता और भविष्य में समय से पहले होने वाली मौतों को प्रभावित करने वाले कारणों का पता लगाया। शोध के अनुसार, अधिक उम्र वाली जनसंख्या और आर्थिक विकास में नाकामयाबी, कम वायु प्रदूषण और धीमी जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को होने वाले फायदों से पीछे धकेल सकते हैं।

टीम ने अतीत और अनुमानित आंकड़ों का उपयोग करके भविष्य के पांच परिदृश्यों को मॉडल किया, जिसमें वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों का अनुमान लगाया गया और दुनिया के उन क्षेत्रों की पहचान की गई जो सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता वेई पेंग ने कहा, जब हम भविष्य की आबादी पर प्रदूषण के प्रभावों के बारे में सोचते हैं, तो परिवेशी कण पदार्थ-या वायु प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के कारण दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पेंग, पेन स्टेट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के पेन स्टेट स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल अफेयर्स में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर हैं।

स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बोझ अलग-अलग देशों में असमान रूप से वितरित है और यह ग्लोबल साउथ द्वारा असमान रूप से वहन किया जाता है। भविष्य में दुनिया भर के स्वास्थ्य के विश्वसनीय अनुमानों को बनाने के लिए, हमने एक एकीकृत मॉडलिंग ढांचा बनाया है जो वैश्विक जनसंख्या और आर्थिक विकास जैसे बहुत छोटे स्तर के कारकों के साथ वायु गुणवत्ता सिमुलेशन को जोड़ता है।

शोधकर्ताओं द्वारा नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) जियोफिजिकल फ्लुइड डायनेमिक्स लेबोरेटरी के साथ वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम के परिदृश्य मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट के आंकड़ों को एक साथ जोड़ा गया। ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि बदलते सामाजिक आर्थिक रुझान और जलवायु शमन प्रयास वैश्विक जीवाश्म ईंधन के उपयोग और परिणामी वायु गुणवत्ता को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

परिणामी मॉडल ने 2015 से 2100 तक प्रदूषण नियंत्रण, सामाजिक आर्थिक प्रवृत्तियों और बदलती जलवायु में बढ़ते तापमान के विभिन्न पहलुओं के साथ प्रदूषण के खतरे के स्तर और समयपूर्व मौतों की संख्या का अनुमान लगाया। सभी पांच परिदृश्यों में, शोधकर्ताओं ने ऐसे देशों और क्षेत्रों को पाया जो सीमित उत्सर्जन और जहां जीवाश्म ईंधन उपयोग में गिरावट आई थी जिससे वहां प्रदूषण की मात्रा कम हुई थी।

हालांकि केवल प्रदूषण की कमी जरूरी मौतों की अनुमानित संख्या को कम नहीं करती है। पेंग के अनुसार, बुढ़ापा और घटती आधारभूत मृत्यु दर - वायु प्रदूषण से संबंधित प्राकृतिक मृत्यु दर, केवल वायु प्रदूषण के संपर्क में आने की तुलना में समय से पहले होने वाली मौतों के बेहतर पूर्वानुमान थे।

सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग में पेन स्टेट डॉक्टरेट छात्र हुई यांग ने कहा, चीन और भारत जैसे उभरते बाजार वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में आधे से भी कम योगदान देते हैं, लेकिन वे वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में  स्वास्थ्य के 60 प्रतिशत तक नुकसान से पीड़ित हैं। यह आंशिक रूप से है क्योंकि उनके पास पर्याप्त या प्रभावी नियम नहीं हैं जो यह नियंत्रित कर सकें कि उद्योग कितना उत्सर्जन हवा में जारी कर सकते हैं

शोधकर्ताओं ने अधिकांश भविष्य के परिदृश्यों में पाया कि चीन और भारत में सबसे अधिक संख्या में अकाल मृत्यु होने के आसार हैं। पेंग ने कहा कि यह संभवत: नियंत्रण की कमी के कारण खतरे की उच्च दर का परिणाम है, जो एक बढ़ती उम्र वाली आबादी के साथ जुड़ा हुआ है जो प्रदूषण को लेकर अधिक खतरे में हैं।

पेंग ने कहा, असंतोषजनक सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच वाले क्षेत्रों में उच्च आधारभूत मृत्यु दर होती है। यदि आप कहते हैं कि उम्र बढ़ने की आबादी के साथ, मृत्यु दर बढ़ जाती है। यदि हम हवा को साफ करने और उत्सर्जन पर रोक लगाते हैं, तो हमारे पास स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के खिलाफ लड़ने के लिए एक अलग मौका है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में लैमोंट सहायक अनुसंधान प्रोफेसर, सह- अध्ययनकर्ता डैन वेस्टरवेल्ट ने कहा कि उनका मॉडलिंग ढांचा वायु प्रदूषण के प्रभावों को कम करने के लिए आबादी के अगले कदमों को जानकारी दे सकता है।

उन्होंने कहा कि भविष्य के वायु प्रदूषण के संभावित रास्ते और पृथ्वी प्रणाली मॉडल का उपयोग करके संबंधित स्वास्थ्य बोझ को समझना प्रभावी तरीके से निपटने की रणनीतियों को तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण है।

यह कार्य वायु प्रदूषण से भविष्य के स्वास्थ्य बोझ को निर्धारित करने में उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन, जोखिम स्तर और सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों के प्रभावों को सुलझाने पर नई रोशनी डालता है। यह अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।