दुनिया भर में कोरोनावायरस विकराल रूप ले चुका है। आंकड़ें दिखाते हैं कि अब तक इसके 15 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। वहीँ इसके चलते करीब 90,000 लोगों की जान जा चुकी है। ऐसे में एक नए अध्ययन ने इससे जुडी चिंताओं को और बढ़ा दिया है।
इस शोध के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते कोरोनावायरस से मरने वालों की संख्या में इजाफा हो सकता है। शोध के अनुसार जिस शहर में वर्षों पहले भी पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था वहां कोविड-19 के कारण मृत्युदर के अधिक होने का खतरा कहीं ज्यादा है।
अध्ययन के अनुसार प्रति क्यूबिक मीटर में 1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 की वृद्धि, कोविड-19 की मृत्युदर में 15 फीसदी का इजाफा कर सकती है।
अमेरिका में किये गए इस शोध के अनुसार जो लोग पहले से ही वायु प्रदूषण के खतरे को झेल रहे हैं, उनके लिए यह संक्रमण और खतरनाक हो सकता है। यह अध्ययन हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
वायु प्रदूषण के असर को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने अमेरिका की 3,000 कॉउंटीस से करीब 98 फीसदी आबादी के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। जिसमें कोविड-19 के मामलों और वायु प्रदूषण के स्तर का अध्ययन किया गया है।
इस विश्लेषण से पता चला है कि जिन क्षेत्रं में हवा ज्यादा जहरीली है, वहां रहने वालों के साफ़ हवा के क्षेत्रों की तुलना में कोरोनावायरस से मरने की अधिक संभावना है।
वैज्ञानिकों का कहना है वायु प्रदूषकों के महीन कण शरीर के अंदर तक प्रवेश कर जाते है, जिनके कारण ब्लडप्रेशर, सांस लेने की तकलीफ, ह्रदय रोग और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।
वहीँ कोविड-19 से सम्बंधित ज्यादातर मौतों के लिए एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके कारण पहले से ही वायु प्रदूषण का कहर झेल रहे लोगों के लिए यह संक्रमण और खतरनाक हो जाता है।
ऐसा ही एक अध्ययन इटली में किया गया था जिसमें भी यही बात सामने आयी थी। उसमें भी वायु प्रदूषण के चलते कोविड-19 से होने वाली मौतों के मामलों में इजाफे की बात मानी गयी थी।
रिपोर्ट के अनुसार देश के उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के ऊंचे स्तर के कारण, कोविड-19 से मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी। इटली के उत्तरी भाग में कोविड-19 की मृत्युदर 12 फीसदी पायी गयी थी जबकि देश के अन्य हिस्सों में यह 4.5 फीसदी दर्ज की गयी थी।
वैज्ञानिकों ने पाया था कि इसके लिए उत्तर में ज्यादा प्रदूषण का स्तर जिम्मेदार था। आरहुस यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल एनवायर्नमेंटल पोल्युशन में प्रकाशित हुआ था।
हालांकि इन अध्ययनों में भारत के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है, फिर भी आंकड़ें दिखाते हैं कि दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 6 भारत में ही है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर मानकों से कहीं ज्यादा है।
देश में दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, पटना, लखनऊ, जोधपुर, आगरा, वाराणसी, गया, कानपुर, सिंगरौली, पाली, कोलकाता जैसे प्रदूषित शहर हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा है | भारत में हर साल वायु प्रदूषण के चलते 10 लाख से भी ज्यादा मौतें होती हैं। ऐसे में इसके चलते कोविड-19 का खतरा और बढ़ जाता है।
भारत में भी लॉकडाउन के चलते वायु प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया है। हाल ही में छपी ख़बरों के अनुसार पहली बार हिमालय को दूर से ही देखा जा सकता है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि देश की हवा कितने दिनों तक साफ बनी रहती है|
भले ही लॉकडाउन के चलते दुनिया भर में वायु प्रदूषण का स्तर कम हो गया है। पर यह समझना होगा कि जिनका श्वशन तंत्र पहले ही वायु प्रदूषण के चलते कमजोर हो गया है उनके लिए कोविड-19 जैसे खतरे हमेशा ही बने रहेंगे।
दुनिया के 90 फीसदी से ज्यादा लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। हमें इस खतरे को समझना होगा| हमें सीख लेनी होगी, कोविड-19 के इस अनुभव ने हमें संभलने का एक मौका दिया है कि जैसे हमने व्यापक शटडाउन के जरिये वायु प्रदूषण पर लगाम लगायी है। उसे भविष्य में भी जारी रखना होगा।
हमें आज तय करना होगा कि इस महामारी के बाद कैसी दुनिया चाहिए। जिस पर लगातार इस तरह की बीमारियों का खतरा बना रहता हो या फिर ऐसी जहां आने वाली पीढ़ियां साफ़ हवा में चैन भरी जिंदगी बसर कर सकें।