प्रदूषण

ऑटोइम्यून बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकता है वायु प्रदूषण, जानिए क्या हैं ये बीमारियां

Lalit Maurya

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। गौरतलब है कि लम्बे समय से शोधकर्ता वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को समझने का प्रयास कर रहे हैं।

अब तक किए शोधों में यह पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि प्रदूषण से जुड़े महीन कण जिन्हें पीएम के नाम से जाना जाता है वो कैंसर, स्ट्रोक, गर्भपात और मानसिक विकार जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इसी तरह एक अन्य शोध में सामने आया था कि प्रदूषित हवा शरीर की लगभग हर कोशिका को प्रभावित कर सकती है।

वहीं हाल ही में जर्नल आरएमडी ओपन में प्रकाशित इस शोध से पता चला है लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में रहने से रूमेटाइड अर्थराइटिस यानी गठिया का जोखिम 40 फीसदी तक बढ़ सकता है।

पता चला है कि वायु प्रदूषण क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी आंत सम्बन्धी बीमारियों का खतरा 20 फीसदी, और ल्यूपस जैसी ऊतकों को नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों का जोखिम 15 फीसदी तक बढ़ सकता है। 

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जून 2016 से नवंबर 2020 के बीच फ्रैक्चर सम्बन्धी जोखिम की निगरानी करने वाले इतालवी डेटाबेस से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है जिसमें 81,363 पुरुष और महिलाएं शामिल थी। इस अवधि के दौरान इनमें से लगभग 12 फीसदी में ऑटोइम्यून बीमारी का पता चला था। इनमें से अधिकांश (92 फीसदी) महिलाएं थी, जिनकी औसत आयु 65 वर्ष थी। वहीं करीब 17,866 (22 फीसदी) पहली ही किसी न किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त थे। 

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जून 2016 से नवंबर 2020 के बीच फ्रैक्चर सम्बन्धी जोखिम की निगरानी करने वाले इतालवी डेटाबेस से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है जिसमें 81,363 पुरुष और महिलाएं शामिल थी। इस अवधि के दौरान इनमें से लगभग 12 फीसदी (9,723) में ऑटोइम्यून बीमारी का पता चला था।

इनमें से प्रत्येक रोगी के आवास के आधार पर वायु प्रदूषण के जोखिम की जानकारी ली गई थी, जिसमें शोधकर्ताओं ने पीएम10 और पीएम2.5 जैसे सूक्ष्म कणों के प्रभाव को शामिल किया था। गौरतलब है कि यह सूक्ष्म कण वाहनों और बिजली संयंत्रों द्वारा उत्सर्जित किए गए थे। शोधकर्ताओं की मानें तो पीएम10 की 30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम2.5 की 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा एकाग्रता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।

शोध में सामने आया है कि लम्बे समय तक इससे ज्यादा प्रदूषण के संपर्क में रहने से ऑटोइम्यून बीमारी का जोखिम 13 फीसदी तक बढ़ सकता है। इतना ही नहीं बढ़ते प्रदूषण के साथ यह जोखिम और बढ़ सकता है। शोध में यह भी सामने आया है कि पीएम 10 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि इन बीमारियों के जोखिम में 7 फीसदी का इजाफा कर सकती हैं।     

क्या होती है ऑटोइम्यून बीमारियां

जैसा की हम जानते हैं कि हमारे शरीर को बीमारियों से बचाने का काम प्रतिरक्षा प्रणाली यानी हमारा इम्यून सिस्टम करता है। यह हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी बाहरी तत्व का मुकाबला करता है, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं। लेकिन कई बार हमारा इम्यून सिस्टम गलती से शरीर की कोशिकाओं पर भी हमला कर देता है। इसी विकार को ऑटोइम्यून डिजीज कहा जाता है। रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबिटीज, सोरायसिस और ल्यूपस जैसी बीमारियां ऑटोइम्यून डिजीज के कुछ आम उदाहरण हैं।