प्रदूषण

जाड़ों में वायु प्रदूषण और धुंध का दिख रहा है नया पैटर्न : सीएसई रिपोर्ट

इस साल लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण पीएम 2.5 का स्तर कम रहा, बावजूद इसके सर्दियों की शुरुआत और अनलॉक होने के साथ ही प्रदूषण बढ़ गया

Dayanidhi

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जाड़ों में होने वाले प्रदूषण के नवंबर तक किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि लॉकडाउन और मानसून के दौरान जो हवा साफ हो गई थी, वह लॉकडाउन हटते ही और सर्दियों का मौसम आते-आते फिर से प्रदूषित हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर के निगरानी स्टेशनों से वास्तविक समय के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस साल सर्दियों में होने वाले प्रदूषण के पैटर्न में बदलाव नजर आ रहा है।

सीएसई के कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि भले ही 2020 में 11 महीनों के दौरान पीएम 2.5 का कुल औसत स्तर पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम रहा, लेकिन सर्दियों में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली-एनसीआर में वायु के स्तर को बहुत खराब तथा गंभीर बना सकता है।

उन्होंने कहा कि यह एक विशिष्ट पूर्वानुमान है, जब सर्दियों में स्थानीय स्रोतों से लगातार उत्सर्जन और बायोमास जलने से होने वाले प्रदूषण और मौसम संबंधी परिवर्तनों के कारण यह हो रहा है। लेकिन इस वर्ष, पिछले वर्ष की तुलना में स्मॉग की घटनाओं में कमी दिखाई दी है, जो पैटर्न में एक तरह का बदलाव है, पिछले वर्ष पराली जलने के दिनों की संख्या भी अधिक थी, जिससे प्रदूषण में वृद्धि हुई। ऐसे दिन भी थे, जब बिना बारिश के प्रदूषण का स्तर गिरकर मध्यम स्तर पर पहुंच गया, हालांकि इन दिनों में हवा तेजी से बह रही थी।

सीएसई की सस्टेनेबल सिटीज टीम में प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी का कहना है कि यह इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रदूषण करने वाले क्षेत्रों में सुधार और कार्रवाई करने की जरुरत है, जिनमें वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्रों और अपशिष्ट प्रबंधन आदि शामिल हैं। इनमें तेजी से सुधार करना होगा, ताकि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके।

सीएसई विश्लेषण के मुख्य बिंदु

लॉकडाउन के कारण साल भर पीएम 2.5 का औसत स्तर कम रहा लेकिन यह सर्दियों में होने वाली वृद्धि को रोक नहीं सका। ग्रीष्मकालीन लॉकडाउन और मानसून के दौरान आर्थिक गतिविधियों पर लगी रोक की वजह से इस साल नवंबर तक कुल मिलाकर पीएम 2.5 का औसत पिछले साल की तुलना में काफी कम है, लेकिन सर्दियों में होने वाले प्रदूषण की शुरुआत के साथ अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने से अक्टूबर और नवंबर के दौरान पीएम 2.5 का स्तर फिर बढ़ गया।

अगस्त का महीना सबसे साफ रहा जो कि एक रिकॉर्ड है, प्रदूषण का स्तर बढ़ने से हाल के वर्षों की तुलना में नवंबर माह सबसे प्रदूषित रहा। प्रदूषण के स्तर में दिल्ली में 9.5 गुना वृद्धि हुई, गाजियाबाद में 11 गुना तक वृद्धि हुई, इसके बाद नोएडा (9.2 गुना), गुरुग्राम (6.4 गुना) और फरीदाबाद (6.2 गुना) है। लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदुषण में आई कमी को बरकरार नहीं रखा जा सका,  जब तक वाहनों, उद्योग, बिजली संयंत्रों और कचरे से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रणालीगत बदलाव नहीं किया जाता तब तक ऐसा होता रहेगा।

सीएसई ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के शहरों और कस्बों के वार्षिक औसत की तुलना दिल्ली और चार बड़े शहर (गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद) से की। इससे पता चलता है कि पीएम 2.5 के वार्षिक औसत स्तर के बहुत कम होने पर, एनसीआर के अन्य छोटे शहरों और कस्बों में सर्दियों के दौरान स्तर अधिकतम, लगभग समान होता है, जब पूरे क्षेत्र में हवा बहनी बंद हो जाती है। यहां तक कि दिल्ली, जहां हाल के वर्षों में सालाना आधार पर वार्षिक औसत स्तर में गिरावट देखी गई है। सर्दियों के दौरान यहां प्रदूषण का स्तर अधिक पाया गया है।

सर्दियों की शुरुआत के साथ ही वायु गुणवत्ता अधिक जहरीली हो जाती है, पीएम 10 में सूक्ष्म कणों की (पीएम 2.5) की हिस्सेदारी बढ़ जाती है। पीएम 10 एकाग्रता में महीन कणों का हिस्सा हवा की विषाक्तता को निर्धारित करता है। दिलचस्प बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान, जब सभी कणों ने पीएम 10 के स्तर को कम कर दिया था, जिससे पीएम 2.5 का स्तर भी नीचे आ गया था।  

इस साल स्मॉग की घटना का पैटर्न अलग है। तकनीकी रूप से एक स्मॉग एपिसोड को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत आपातकालीन कार्रवाई के उद्देश्य के रूप में परिभाषित किया जाता है,  जब पीएम 2.5 का स्तर लगातार तीन दिनों तक "गंभीर" श्रेणी में बना रहता है। इस क्षेत्र में इस साल (नवंबर 7-10, 2020) पिछले साल (31 अक्टूबर-नवंबर 3, 2019 और नवंबर 12-15, 2019) की दो घटनाओं की तुलना की गई जिसमें से एक को गंभीर स्मॉग घटना माना गया है।

इस साल दिवाली के पटाखों से प्रदूषण, पराली जलाने और स्थानीय धुएं के मिल जाने से दिवाली के दिन (नवंबर 14, 2020) प्रदूषण स्तर को गंभीर और खतरनाक बना दिया था। लेकिन यह लंबे समय तक नहीं टिक पाया एक छोटी सी बारिश ने इसे जल्दी ही साफ कर दिया।

नवंबर 2020 में ऐसे दिन थे जब बारिश के बिना हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। 2020 में नवंबर की दूसरी छमाही के दौरान तीन दिन ऐसे थे जब दिल्ली में वायु गुणवत्ता के गुणवत्ता सूचकांक श्रेणी में सुधार हुआ था।

रॉय चौधरी ने कहा कि बाकी सर्दियों के दौरान प्रदूषण का स्तर कैसा रहेगा, यह देखना बाकी है। लेकिन प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक बदलाव करने होंगे। पावर प्लांट के मानकों को लागू करना, उद्योग से कोयले को खत्म करना, सार्वजनिक परिवहन और निजी वाहन नियंत्रण उपाय और कचरे का प्रबंधन शून्य अपशिष्ट और शून्य लैंडफिल रणनीति अपनानी होगी।