प्रदूषण

हवा पर हवाई राजनीति के दिन लदे, अब ठोस कदम उठाए नई सरकार

Anumita Roychowdhury

भारत के लोगों ने अपने लिए नई सरकार चुन ली है। लेकिन क्या शासन का यह बदलाव स्वच्छ हवा और लोगों की सेहत को लेकर काम करने के लिए नई राजनीति का संकेत देता है? जहरीली हवा की चिंता मतदाताओं के एक वर्ग को प्रभावित करता है लेकिन यह चुनावी मुद्दे के तौर पर ठीक से आकार नहीं ले सका।

फिर भी जहरीली हवा के कारण हो रही असमय मौतों और बीमारियों के विरुद्ध जनता की ओर से उठ रही आवाज और कठोर बयानबाजी ने मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों को मजबूर होकर अपने-अपने घोषणापत्रों में स्वच्छ हवा के लिए काम करने का ऐलान करना पड़ा। यह एक अच्छा संकेत है।

यह साबित हो चुका है कि राजनीतिक दलों को घोषणा पत्रों में किए गए वायदों को हिसाब-किताब के समय वास्तविक कार्रवाई में बदलना पड़ता है। किए गए वायदे राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक जनादेश में तब्दील हो जाते हैं। ऐसे वक्त में विपक्ष भी सत्ताधारी पार्टी को पकड़कर उन्हें जिम्मेदारी का बोध कराता रहता है। यदि राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों पर ध्यान दिया जाए तो संसदीय चुनावों में पहली बार प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने वायु प्रदूषण के मुद्दे को छुआ और प्रदूषित हवा के विरुद्ध काम करने का वादा किया। सभी राजनीतिक पार्टियों ने व्यक्तिगत स्तर पर सुधार के लिए कई कदम उठाने की बात कही। मसलन, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राष्ट्रीय स्वच्छ हवा योजना (एनसीएपी) को एक मिशन में तब्दील करने और चिन्हित किए गए 102 वायु प्रदूषित शहरों का प्रदूषण 35 फीसदी तक घटाने का वादा किया।

वहीं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आइएनसी) ने भी अपने घोषणापत्र में वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था। कांग्रेस ने कहा था कि वह राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम को मजबूत करेगी जिसके तहत वायु प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों की पहचान कर उसे नियंत्रित किया जाएगा। आम आदमी पार्टी (आप) ने स्वच्छ हवा के लिए इलेक्ट्रिक बसें चलाने और बसों की संख्या बढ़ाने व मोटर रहित परिवहन को प्रोत्साहित करने का वादा किया था। इसके अलावा आप ने निर्माण और सड़क से उठने वाली धूल को नियंत्रित करने की भी बात कही थी। अब सवाल है कि क्या यह राजनीतिक वादे बदलाव के लिए पर्याप्त हैं?

राजनीतिक जनादेश की आवश्यकता


नई सरकार ऐसे समय में कदम रखा है, जब 2019 में वैश्विक हवा के अध्ययन वाली एक रिपोर्ट यह बताती है कि जहरीली हवा के कारण समयपूर्व 12 लाख लोगों की मौत हो रही है। वहीं, प्रदूषित हवा के कारण भारत में लोगों की स्वाभाविक उम्र से 2.6 वर्ष पहले ही मृत्यु हो जा रही है। सभी राज्यों में एक लाख की आबादी पर समयपूर्व मौतों की संख्या प्रदर्शित हो रही है।

वायु प्रदूषण इस वक्त का सबसे बड़ा हत्यारा है। पांच वर्ष से छोटी उम्र के बच्चे, अस्वस्थ, बड़े और गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। नया राजनीतिक जनादेश न सिर्फ जिंदगियों की रक्षा कर सकता है बल्कि समयपूर्व मौतों को भी टाल सकता है।

स्वच्छ हवा के लिए क्या है नया राजनीतिक एजेंडा?


स्वास्थ्य आपातकाल की पहचान : भले ही राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों में वादों की भरमार रही, लेकिन चुनावी भाषणों में हमेशा वायु प्रदूषण दुष्प्रभावों की समस्या को खारिज करने की ही ध्वनि सुनाई दी। वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से जुड़े अध्ययन और सबूतों पर बीजेपी हमेशा संशय करती रही है। जबकि 'आप' समझती है कि वायु प्रदूषण की समस्या कुछ दिनों की परेशानी का मामला है। आप के मुताबिक जब किसान पंजाब और हरियाणा में फसल अवशेष जलाते हैं तभी सिर्फ वायु प्रदूषण की समस्या होती है। नई राजनीति अब और अधिक इन मुद्दों को खारिज नहीं कर पाएगी।

केंद्र की नई सरकार और मौजूदा राज्य सरकारों को यह समझना होगा कि भारत में बीमारियों का बोझ काफी बढ़ सकता है क्योंकि लोग बेहद उच्च स्तरीय प्रदूषण वाली हवा के जद में हैं। अत्याधिक गरीबी, कुपोषण और खराब स्वास्थ्य की स्थिति, वृहद स्तर पर गंदे ईंधन का इस्तेमाल व निम्न स्तरीय तकनीकी का प्रयोग जोखिम को और बढ़ाएंगे न कि कम करेंगे।

नया अनुपालन मॉडल : हवा में प्रदूषण को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम का नया अवतार सहकारी और भागीदारी की पहल के सिद्धांत पर आधारित नहीं हो सकता। जरूरत होगी कि पर्यावरण संरक्षण कानून अथवा अन्य कानून के अधीन एक मजबूत कानूनी प्रावधान किया जाए ताकि शहर और क्षेत्रों में वायु प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों और योजनाओं को समयबद्ध और प्रभावी तरीके से लागू किया जा सके।

स्थानीय व क्षेत्रीय पहल की जरूरत: केंद्र सरकार को सिर्फ शीर्ष पर नहीं बल्कि राज्यों में स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर भी काम करना होगा। खासतौर से फंडिंग की रणनीति और कठोर नियमों को लागू करने को लेकर। कई शहर और छोटे कस्बों को ज्यादा कठोर नियमों की जरूरत है। ऐसे में राज्य सरकारों को छोटे शहरों में ज्यादा काम करने या राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम से बाहर निकलकर भी काम करने की मंजूरी देनी होगी।

इसके अलावा प्रभावी समाधान पर भी काम करना होगा। वायु प्रदूषण नियंत्रण के काम में लगी एजेंसियों को ज्यादा उत्तरदायी बनाना होगा। एनजीटी के आदेश पर 102 प्रदूषित शहरों ने अपना पहला बेसलाइन एक्शन प्लान बनाना शुरु किया है इसे सभी क्षेत्रों में प्रभावी तौर पर प्रदूषण घटाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

कार्रवाई के लिए एजेंडा तय करने का वक्त : तत्काल बहु-क्षेत्री कार्रवाई को लेकर एजेंडा तैयार किया जाना चाहिए। वाहनों से होने वाले प्रदूषण में कटौती, उत्सर्जन में कटौती के लिए भारत मानक-4 को अप्रैल, 2020 से प्रभावी तौर पर लागू करना। साथ ही सड़कों पर चलने वाले वाहनों के कारण होने वाले उत्सर्जन को घटाने जैसे कदम उठाने होंगे। इसके अलावा एकीकृत सावर्जनिक परिवहन तंत्र को भी सहयोग करना होगा। खासतौर से पैदल टहलने और साइकिल यात्रा की व्यवस्था भी करनी होगी। इसके अलावा जीरो उत्सर्जन प्रावधान, इलेक्ट्रिक वाहनों से गतिशीलता, नए पावर प्लांट के मानक, 34 समूह उद्योगों के जरिए होने वाले सल्फर व नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन के नए मानकों को लागू करने जैसी कई पहल करनी होगी। धूल प्रदूषण, स्वच्छ ईंधन, ईंट-भट्ठों की चिमनियों के लिए नई तकनीकी, स्टोन क्रशर और खनन क्षेत्रों के प्रदूषण पर नियंत्रण व वन संरक्षण और हरित दीवार के लिए वानिकी जैसे उपाय भी करने होंगे।

पारदर्शी और गतिशील फंड की व्यवस्था: केंद्र और राज्य सरकार को राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पारदर्शी तरीके से और वित्तीय सहयोग की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में प्रदूषण कर्ता से हर्जाना और अन्य वित्तीय मॉडल के तहत फंड को पारदर्शी और गतिशील बनाना होगा।

तत्काल करिए: इस चुनाव का संदेश साफ है कि नए शासन को अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा। स्वास्थ्य के आपातकाल की जीरो अनदेखी करनी होगी। वायु प्रदूषण सिर्फ नीतिगत मुद्दा नहीं है यह लोगों की जिंदगियों को बचाने से जुड़ा है।

(लेखिका दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में कार्यकारी निदेशक हैं)