प्रदूषण

लॉकडाउन के बाद एक बार फिर दमघोंटू हो रही है पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में हवा: सीएसई

रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी भारत में शहरों को वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए अपने पीएम 2.5 के वार्षिक औसत स्तर में 50 फीसदी तक की कटौती करने की जरुरत है

Lalit Maurya

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी हालिया विश्लेषण से पता चला है कि पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में महामारी के समय वायु गुणवत्ता में जो सुधार आया था, उसमें एक बार फिर गिरावट आ रही है, जिससे प्रदूषण का स्तर दोबारा बढ़ रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में लॉकडाउन के कारण पीएम2.5 के स्तर में शुरुआती गिरावट देखी गई थी। लेकिन 2021 में अधिकांश शहरों ने पीएम 2.5 के वार्षिक स्तर में वृद्धि दर्ज की है। इतना ही नहीं 2022 के शुरुआती महीने में भी इन शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा है। हालांकि इसके बावजूद कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर 2019 की तुलना में कम है।   

विश्लेषण के अनुसार दुर्गापुर में हवा सबसे ज्यादा दूषित हो चुकी है। 2021 में यहां पीएम2.5 का वार्षिक औसत 80 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था। गौरतलब है कि दुर्गापुर पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र है, जिसे सीपीसीबी द्वारा गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों की श्रेणी में रखा गया है। इसके बाद मुजफ्फरपुर में पीएम2.5 का वार्षिक औसत 78 और पटना में 73 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था।

इतना ही नहीं सर्दियों के दौरान पीएम 2.5 का साप्ताहिक औसत वार्षिक औसत से कई गुना बढ़ जाता है। कई शहरों में तो यह दो गुना तक दर्ज किया गया था। उदाहरण के लिए अपने अधिकतम प्रदूषित समय में दिसंबर 2021 के दौरान मुजफ्फरपुर में पीएम 2.5 का साप्ताहिक औसत 213 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज किया गया था।

इसी तरह जाड़े में दुर्गापुर में यह 171, पटना में 166, हावड़ा में 148, हाजीपुर में 137, कोलकाता में 118 और आसनसोल में 114 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज किया गया था। हालांकि हाजीपुर को छोड़कर अन्य शहरों में यह औसत पिछली सर्दियों की तुलना में इस सर्दियों में मामूली रूप से कम है, जबकि हाजीपुर में यह यह पिछली सर्दियों की तुलना में 1.8 गुना वृद्धि को दर्शाता है।

क्यों सर्दियों में बढ़ जाता है प्रदूषण का स्तर

रिपोर्ट से पता चला है कि नवंबर की शुरुआत में उत्तर भारत को अपनी चपेट में लेने वाली शीतकालीन धुंध दिसंबर के अंत और जनवरी की शुरुआत में पूर्व की ओर बढ़ना शुरू कर देती है। जिसका असर बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा पर पड़ता है। गौरतलब है कि इस समय स्थानीय प्रदूषण जो पहले से ज्यादा होता है, उसमें मिलने वाला यह प्रदूषण स्थिति को और बदतर बना देता है। 

रिपोर्ट के अनुसार 2021 के दौरान देश के पूर्वी शहरों में किसी भी दिन वायु गुणवत्ता का स्तर 'गंभीर श्रेणी' का नहीं था। लेकिन वहां वायु गुणवत्ता के 'खराब' और 'बहुत खराब' दिनों की हिस्सेदारी अधिक थी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे ज्यादा 93 दिनों तक वायु गुणवत्ता बहुत खराब श्रेणी की थी। इसके बाद पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में 71 दिन, पटना में 67 दिन, हावड़ा में 58 दिनों तक वायु बहुत खराब श्रेणी की थी।

वहीं यदि खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की देखें तो उनकी संख्या दुर्गापुर में सबसे अधिक 71 थी, जबकि पटना में 67, कोलकाता में 53 और हावड़ा में 51 दिन वायु गुणवत्ता खराब थी। इन खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या सर्दियों में ज्यादा दर्ज की गई थी। हालांकि लॉकडाउन के समय में 'अच्छे' और 'संतोषजनक' वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या में इजाफा हुआ था।

यदि नवंबर, अक्टूबर और सितंबर 2021 से तुलना की जाए तो दिसंबर 2021 के दौरान पूर्वी राज्यों के सभी शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। जहां इस दौरान ब्रजराजनगर ने मासिक एनओ2 के स्तर में 3.6 गुना वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं कोलकाता में 2.8 गुना, पटना, तालचेर और आसनसोल में 2.5 गुना वृद्धि दर्ज की गई है।

वहीं यदि एनओ2 के मासिक औसत स्तर की बात की जाए तो वो दिसंबर के दौरान पटना में सबसे ज्यादा 51 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया था। इसके बाद कोलकाता में 50, तलचर में 44 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया था। वहीं मुजफ्फरपुर, हावड़ा और हाजीपुर में नवंबर की तुलना में दिसंबर के महीने में एनओ2 की मात्रा में कमी देखी गई थी।   

रिपोर्ट के मुताबिक सभी शहरों में शाम 6 से रात 8 बजे के बीच एनओ2 की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई थी। जो दर्शाता है कि शाम को जब भीड़-भाड़ में इजाफा होता है, तब प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। दोपहर से शाम 7 बजे के बीच सिलीगुड़ी में प्रति घंटा एनओ2 के स्तर में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई थी। इसी तरह मुजफ्फरपुर और आसनसोल में भी दोपहर की तुलना में शाम को इसके स्तर में 3 से 3.5 गुना की वृद्धि दर्ज की गई थी।

वहीं सभी शहरों में सुबह 7 से 8 बजे के बीच एनओ2 का स्तर चरम पर था, हालांकि वो शाम की तुलना में कुछ कम था। वहीं पटना और कोलकाता में एनओ2 का यह उच्च स्तर आधी रात तक रहता है, जो शहर में रात के समय ट्रक की आवाजाही से होने वाले प्रदूषण की ओर इशारा करता है।   

शहरों को कितनी करनी होगी प्रदूषण में कमी

रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे में यदि रियल टाइम डेटा को आधार बनाया तो दुर्गापुर को पीएम2.5 के वार्षिक मानक को हासिल करने के लिए अपने पीएम2.5 के स्तर में करीब 50 फीसदी की कमी करनी होगी। इसी तरह हावड़ा को 34 फीसदी, आसनसोल को 32 फीसदी, सिलीगुड़ी को भी 32 फीसदी और कोलकाता को अपने वर्ष पीएम 2.5 के स्तर में 28 फीसदी की कटौती करनी होगी।

हालांकि हल्दिया ने 2021 में इस स्तर को हासिल कर लिया था। वहीं यदि बिहार की बात करें तो मुजफ्फरपुर को इस मानक को हासिल करने के लिए अपने वार्षिक पीएम2.5 के स्तर में 49 फीसदी, पटना में 45 फीसदी, हाजीपुर में 33 फीसदी और गया को 18 फीसदी की कटौती करनी होगी। यदि ओडिशा को देखें तो बजराजनगर और तलचर ने वार्षिक औसत मानक को हासिल कर लिया था।   

सीएसई ने वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों की कमी और लगातार हासिल होने वाले उच्च गुणवत्ता के आंकड़ों की कमी की और भी ध्यान देने की बात कही है, क्योंकि इन आंकड़ों के आभाव में सही स्थिति की जानकारी हासिल करना मुश्किल होता है। ऐसे में इसपर भी ध्यान देने की जरुरत है। 

क्या है समाधान

इस बारे में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि 2019 से 2021 के दौरान वायु गुणवत्ता के रियल टाइम डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि 2020 में लॉकडाउन के चलते प्रदूषण के स्तर में जो गिरावट आई थी वो 2021 में एक फिर बढ़ रही है और उसमें तेजी से वृद्धि होने की सम्भावना है। हालांकि कई मामलों में प्रदूषण का स्तर 2019 की तुलना में अभी भी कम है। ऐसे में इससे पहले स्थिति और बिगड़े, उसे रोकने के लिए सभी क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई की जरुरत है। 

दिसंबर के अंत और जनवरी की शुरुआत में सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र में धुंध का अनुभव होता है। वहीं सर्दियों की प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते इस क्षेत्र में स्थानीय प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्दियों के दौरान पार्टिकुलेट मैटर के साथ-साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी बढ़ जाता है, जो जहरीले कॉकटेल का काम करता है। 

ऐसे में इससे बचने के लिए सम्बंधित राज्यों और शहरों में समय रहते प्रदूषण को कम करने और वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में  तेजी से ठोस कदम उठाने की जरुरत है। इसके लिए जहां एक तरफ साफ-सुथरी ऊर्जा स्रोतों और खाना पकाने के साधनों को बढ़ावा देना होगा। साथ ही उद्योगों और परिवहन से होते प्रदूषण पर भी लगाम लगानी होगी। इसमें सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने से लेकर पैदल और साइकिल के उपयोग को भी बढ़ावा देना होगा।

पुराने प्रदूषण फ़ैलाने वाले वाहनों को रोकना होगा। साथ ही कचरे के उपयुक्त तरीके से प्रबंधन को भी बढ़ावा देना होगा। कचरे के प्रबंधन और पुनर्चक्रण के लिए बुनियादी ढांचे में भी सुधार करना होगा। इसी तरह निर्माण क्षेत्र से धूल को नियंत्रित करना भी महत्वपूर्ण है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना और हरियाली और वनीकरण रणनीतियों को अपनाना भी जरुरी है।