प्रदूषण

झारखंड: कोयला खनन का काम छोड़ना चाहते हैं 85 प्रतिशत मजदूर: रिपोर्ट

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35 फीसदी श्रमिक ऐसे हैं जिनके पास वर्तमान रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई बचत नहीं है

Dayanidhi

दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा 'लाइवलीहुड आपर्टूनिटी फॉर जस्ट ट्रांजीशन इन झारखण्ड' नामक एक नई रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला खनन बंद होने के बाद, इस क्षेत्र से जुड़े श्रमिक अपने जीवन यापन के लिए अन्य तरह के रोजगार अपनाना चाहते हैं। यहां तक की हर तीन में से एक कोयला श्रमिक कृषि को एक वैकल्पिक रोजगार के रूप में देख रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपने नेट जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कोयला आधारित ऊर्जा से हटकर स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रहा है

यह रिपोर्ट पूरे राज्य में खानों और ताप विद्युत संयंत्रों में काम कर रहे 6,000 संगठित और असंगठित कोयला क्षेत्र के श्रमिकों के साथ राज्य स्तरीय सर्वेक्षण पर आधारित है। 

झारखंड में 113 खदानें हैं जो भारत की सभी कोयला खदानों का एक-चौथाई या 26 प्रतिशत से अधिक है। इन खदानों से हर साल 115 मीट्रिक टन से अधिक कोयला निकाला जाता है।

झारखंड में कोयला खनन उद्योग प्रत्यक्ष रूप से लगभग तीन लाख लोगों को रोजगार दे रहा है, जो भारत में ऐसी सभी नौकरियों का 38 प्रतिशत है। अंतत: भारत को अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार को प्राथमिकता देनी चाहिए।

सर्वेक्षण किए गए 6,000 श्रमिकों में से 4,000 कर्मचारी संगठित क्षेत्र यानी थर्मल पावर प्लांट और खान से थे और 2,000 असंगठित श्रमिक, 26 नीति और क्षेत्रीय विशेषज्ञ थे। इसका उद्देश्य झारखंड जैसे कोयले से समृद्ध राज्य में कोयले से हट कर स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की और बढ़ना,अवसरों को समझना था।

उत्तरदाताओं के बीच कम से कम 20 फोकस्ड ग्रुप डिस्कशन (एफजीडी) आयोजित किए गए, जिनका उद्देश्य श्रमिकों की आवाज को सामने लाना था, क्योंकि राज्य कोयले के उपयोग को बंद करने की ओर अग्रसर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35 फीसदी श्रमिक ऐसे हैं जिनके पास वर्तमान रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई बचत नहीं है।

सभी श्रमिकों में से 45 फीसदी का मानना था कि उनके पास अपनी पसंद के वैकल्पिक क्षेत्र में काम करने के लिए जरूरी कौशल नहीं है। 94 फीसदी  श्रमिकों ने बताया कि उन्होंने कभी किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग नहीं लिया।

रिपोर्ट के अनुसार, 85 फीसदी श्रमिकों में से अधिकांश ने रोजगार के वैकल्पिक अवसरों की ओर बढ़ने के लिए स्किलिंग या रीस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला क्षेत्र के 82 फीसदी श्रमिकों ने भी वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की तलाश में झारखंड में रहना पसंद करते हैं।

रिपोर्ट नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा पूरी की जाने वाली अतिरिक्त बिजली की जरूरतों के लिए भारत में बदलावों पर चल रही चर्चा के लिए महत्वपूर्ण है। खानों के बंद होने पर इनसे जुड़े लोगों के सामाजिक-आर्थिक मापदंडों को उजागर करती है।

भारत ने 2070 तक नेट-जीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा है और ऊर्जा के लिए कोयले के उपयोग को बंद करना जरूरी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, कोयले के बंद होने से लाखों श्रमिकों और समुदायों की आजीविका को खतरा है, जो देश के कई राज्यों में अपने भरण-पोषण और आजीविका के लिए कोयला क्षेत्र पर निर्भर हैं।

बड़ी संख्या में खानों और उच्च स्तर के कोयले के उत्पादन वाले झारखंड जैसे राज्यों के लिए इस तरह के कोयले के उपयोग को बंद करने का भारी प्रभाव होगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, राज्य स्तर पर और कोयला उद्योग से जुड़े श्रमिकों के बीच कोयला खदान बंद करने की समय-सीमा और सरकारी योजनाओं पर जागरूकता की कमी है।

इस कमी को दूर करने के लिए, प्रशासन को खुले मंचों और सेमिनारों की सुविधा करनी चाहिए ताकि कोयले के उपयोग को बंद करने की गतिविधियों और अस्थायी समय-सीमा के बारे में बताया जा सके। ताकी रोजगार और आजीविका के नुकसान के बारे में श्रमिकों की चिंताओं को दूर किया जा सके।