शोधकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि समुद्री पक्षी किस कदर प्लास्टिक का शिकार हो रहे हैं।
सात देशों के 18 संस्थानों की एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने दुनिया भर के 32 समुद्री पक्षियों की प्रजातियों के नमूने जमा कर उनका विश्लेषण किया। शोध टीम ने पाया कि 52 प्रतिशत पक्षियों ने न केवल प्लास्टिक निगला था, बल्कि उनके शरीर में प्लास्टिक के केमिकल भी पाए गए।
अध्ययन में चौंकाने वाला परिणाम सामने आया है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक, 99 प्रतिशत समुद्री पक्षी प्रजातियां प्लास्टिक को निगल चुकी होंगी।
टोक्यो कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला में कार्बनिक भू-रसायन विज्ञान (एलओजी) में प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता हिदेशिगे ताकाडा ने कहा दुनिया भर में हर साल लगभग 40 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है और इनमें से एक हिस्सा वातावरण में बचा रह जाता है। अंत में यह बहते हुए महासागरों तक पहुंच जाता है।
समुद्र की सतह पर तैरते समय या समुद्र तटों पर फंसे होने पर, प्लास्टिक सूर्य से यूवी विकिरण के संपर्क में आते हैं और छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं। अत्यधिक महीन टुकड़ों को हम माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जानते हैं।
ये टुकड़े, साथ ही प्लास्टिक फीडस्टॉक के रूप में जलमार्ग में भी अपना रास्ता बनाते हैं। ये नष्ट होने वाले या बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं और न ही वे डूबते हैं। वे आकार में समुद्री पक्षियों के छोटी मछलियों और कीड़ों के प्राकृतिक शिकार जैसे होते हैं और वे तैरने या धाराओं के साथ बहते रहते हैं क्योंकि वे बहुत हल्के होते हैं।
तकडा ने कहा नतीजतन दुनिया के महासागरों में भारी मात्रा में प्लास्टिक उपलब्ध है। 2020 तक, दुनिया भर में समुद्री पक्षियों की कुल प्रजातियों में से आधे, समुद्री पक्षियों की 180 प्रजातियों के बारे में पता चलता है कि उन्होंने प्लास्टिक को निगल लिया था।
जबकि प्लास्टिक को निगलने से शारीरिक को नुकसान पहुंच सकता है और यह समुद्री पक्षी की मृत्यु का प्रत्यक्ष कारण हो सकता है। ताकाडा के मुताबिक, खाद्य पैकिंग, मछली पकड़ने के गियर और अन्य में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायनों के उपभोग के परिणामों के बारे में बहुत कम जानकारी है।
ताकाडा ने कहा कि यह माना जाता था कि जैविक ऊतकों में एडिटिव या योजक आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं क्योंकि वे प्लास्टिक उत्पादन के दौरान पॉलिमर मैट्रिक्स में मिला दिए जाते हैं। हालांकि, यह प्रदर्शित किया गया है कि पाचन तरल पदार्थों में तैलीय घटक एडिटिव के घोल की सुविधा के लिए कार्बनिक सॉल्वैंट्स के रूप में कार्य कर सकते हैं।
ताकाडा ने कहा कि इसका नतीजा यह होता है कि यह समुद्री पक्षी के ऊतकों में प्लास्टिक के एडिटिव या योजक के रूप में जमा हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में, हमने वैश्विक आधार पर समुद्री पक्षियों के लिए केमिकल एडिटिव या योजकों के प्लास्टिक के फैलने के खतरे को समझने का लक्ष्य रखा है।
शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 16 अलग-अलग स्थानों में 145 समुद्री पक्षियों से पूंछ के ठीक ऊपर स्थित प्रीन ग्रंथि के तेल का विश्लेषण किया। इस तेल में रासायनिक सांद्रता की जांच करके, शोधकर्ता पक्षी के आंतरिक वसा भंडार के दूषित बोझ को निर्धारित कर सकते हैं। उन्होंने ग्रंथि को पोंछकर तेल प्राप्त किया, जो पक्षी को नुकसान पहुंचाए बिना किया जा सकता है।
उन्होंने समुद्र तटों पर पाए गए 54 पक्षी शवों की प्रीन ग्रंथि के तेल और पेट की सामग्री की भी जांच की। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल मॉनिटरिंग एंड कॉन्टैमिनेंट्स रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पक्षियों में से 16 में एक एडिटिव जमा हुआ है और 67 पक्षियों में अन्य एडिटिव्स पाए गए थे। ताकाडा ने कहा समुद्री पक्षियों में एडिटिव्स की उच्च सांद्रता का पता चला, जिसमें बड़े, निगला गया प्लास्टिक भी पाया गया।
यह देखते हुए कि पक्षियों को अपने प्राकृतिक शिकार द्वारा शुरू में प्राप्त एडिटिव्स भी प्राप्त हो सकते हैं, इन घटना पैटर्न से पता चलता है कि एडिटिव्स मुख्य रूप से सीधे निगले गए प्लास्टिक से प्राप्त होते हैं।
एडिटिव्स से पता चला है कि दुनिया के समुद्री पक्षी के महत्वपूर्ण हिस्से 10 से 30 फीसदी सीधे प्लास्टिक से केमिकल को जमा करने के आसार हैं, लेकिन इसके स्वास्थ्य पर किस तरह के प्रभाव पड़गें इस बात की पूरी जानकारी नहीं है।