प्रदूषण

पराली जलाए जाने की घटना में 50 फीसदी कमी, गंभीर प्रदूषण की जद में उत्तर भारत के शहर

दिल्ली-एनसीआर की हवा में खतरनाक प्रदूषित कण पीएम 2.5 अपने सामान्य मानकों (60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से सात गुना ज्यादा 464 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है।

Vivek Mishra

दीपावली को सिर्फ चार दिन बचे हैं और दिल्ली-एनसीआर में हवा में प्रदूषण आपात स्तर पर है वहीं समेत समूचे उत्तर भारत के प्रमुख शहरो में वायु गुणवत्ता की स्थिति खराब या गंभीर स्तर पर बनी हुई है। मौसम, पराली के धुएं और स्थानीय प्रदूषण के गठजोड़ ने खासतौर में दिल्ली की वायु गुणवत्ता स्थिति को और गंभीर बना दिया है। हालांकि,अनुमान है कि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में धीरे-धीरे कमी होगी और वायु प्रदूषण में उसकी हिस्सेदारी का फीसद कम होता जाएगा। रबी सीजन की खेती के लिए यही वक्त है, ऐसे में खेतों को खाली करने के लिए सरकारी सहायता न मिलने के कारण किसान पराली को जलाना एक बेहतर और सस्ता विकल्प मानते हैं। उत्तर प्रदेश में पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ मुकदमे किए जा रहे हैं, हालांकि अभी शासन की ओर से कहा गया है कि किसानों के साथ किसी तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें जागरुक बनाया जाना चाहिए। 

वहीं, स्थिति और गंभीर न होने पाए इसलिए हाल ही में एनजीटी ने प्रदूषित शहरों में एक दिसंबर तक पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए भी आदेश जारी किया है।  पराली जलाने की समस्या का पीक क्या गुजर चुका है? 

सिस्टम ऑफ एयर क्ववालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के मुताबिक दिल्ली के प्रदूषण में पराली के प्रदूषण की हिस्सेदारी 5 नवंबर, 2020 को जहां 42 फीसदी थी वह 10 नवंबर को घटकर 22 फीसदी रह गई है। वहीं कहा गया है कि पराली से जुड़ी समस्या में कमी तो आने वाले दिनों में जरूर मिलेगी लेकिन हवा की दिशा में बदलाव और मिक्सिंग हाईट के सामान्य होने जैसी चीजें अभी प्रदूषण के प्रतिकूल नहीं बनती दिख रही हैं। 

सफर एजेंसी के मुताबिक 10 नवंबर, 2020 को पंजाब-हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाए जाने की करीब 2000 घटनाएं दर्ज हुई यही 7 से 9 नवंबर, 2020 के बीच फायर काउंट्स 4000 के करीब था। 

सफर एजेंसी के मुताबिक पुणे में वायु गुणवत्ता मॉडरेट स्तर पर है जबकि मुंबई और अहमदाबाद में खराब स्तर पर ही वायु गुणवत्ता बनी हुई है। और आगे तीन दिनों तक इसके खराब रहने का अनुमान है। दरअसल वायु प्रदूषण को खतरनाक बनाने के लिए जिम्मेदार मिक्सिंग हाईट भी जिम्मेदार होती है। 

मिक्सिंग हाईट दरअसल वह स्थान है जहां प्रदूषण के कण जाकर मिश्रित हो जाते हैं। गर्मी के दिनों में सतह से करीब 800 मीटर ऊपर यह मिश्रित लेयर होती है लेकिन ठंडक के दिनों में यह सतह के काफी करीब आ जती है जिससे प्रदूषित कणों को फैलने का मौका नहीं मिल पाता और प्रदूषण घातक बन जाता है। 

एजेंसियों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में मौसम की गतिविधियां और हवाओं का रुख इस प्रदूषण को बढ़ाने वाला साबित होगा। ऐसे में स्थिति और बदतर हो सकती है। दिल्ली और आस-पास शहरों की वायु गुणवत्ता में हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम- महीन प्रदूषण कण) हवा में लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 24 घंटे निगरानी वाले सीसीआर के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर की हवा में सेहत के लिए ज्यादा हानिकारक और आंखों से न दिखाई देने वाले पीएम कणों में सितंबर के बाद से ही बढ़ोत्तरी जारी है।

दिल्ली-एनसीआर की हवा में सात गुना अधिक खतरनाक प्रदूषण 

सीपीसीबी के दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक 24 सितंबर, 2020 के को शाम छह बजे पीएम 2.5 की स्थिति 70 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी, वहीं, 14 अक्तूबर, 2020 को शाम सात बजे तक 118 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज की गई। जबकि 8 नवंबर, 2020 को पीएम 2.5 की स्थित रात आठ बजे के बाद से लगातार आपात स्तर (300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) पर बनी हुई है। हालांकि, पराली और अन्य कारकों के कारण बीते दो दिनों में गिरावट जरूर है लेकिन पीएम 2.5 की स्थित आपात स्तर पर अब भी बनी हुई है। 10 नवंबर, 2020 को दिल्ली-एनसीआर की हवा में शाम सात बजे पीएम 2.5 की स्थिति आपात स्तर पर 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक रिकॉर्ड की गई। यह सामान्य मानकों 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से करीब 7 गुना अधिक स्तर है। वहीं, पीएम 10 यानी अपेक्षाकृत मोटे प्रदूषित कण की स्थिति भी 27 सितंबर, 2020 को 110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 14 अक्तूबर, 2020 को बढ़कर 247 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंचा था जो कि 08 नवंबर, 2020 को आपात स्तर 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पार कर गया और अभी तक आपात स्तर पर है। 10 नवंबर, 2020 को दिल्ली-एनसीआर की हवा में शाम सात बजे पीएम 10 की स्थिति 533 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। 

 पीएम 10 का स्तर 500 और पीएम 2.5 का स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक होने पर आपात स्तर कहलाता है। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर स्तर की 24घंटे निगरानी रखी जाती है। ऐसा कई वर्षों से जांचा-परखा गया है कि 20 सितंबर के बाद नवंबर महीने तक दिल्ली-एनसीआर की हवा में आंखों से न दिखाई देने वाले खतरनाक महीन प्रदूषित कणों (पीएम 2.5 और पीएम 10) का स्तर काफी बढ़ जाता है। क्योंकि पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इसी समान अवधि (20 सितंबर- 15 नवंबर) तक किसानों को जल्द से जल्द खेतों में रबी सीजन के फसल अवशेषों को नष्ट करके आलू और गेहूं की खेती करनी होती है।

विभिन्न शहरों की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई)

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक 10 नवंबर को दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के अन्य शहरों की 24 घंटे वाली औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बहुत खराब और गंभीर स्तर पर ही रिकॉर्ड की गई है।  दिल्ली में 476, फरीदाबाद में 448, फतेहाबाद में 467, गाजियाबाद में 444, ग्रेटर नोएडा में 436, गुरुग्राम में 427, धौरहरा में 467, आगरा में 415, बागपत में 447, भिवाड़ी में 462, बुलंदशहर में 417, चरखी दादरी में 431, अंबाला में 258, हिसार में 469, जींद में 472 एक्यूआई दर्ज किया गया। 

0-50 बेहतर गुणवत्ता, 51 से 100 संतोषजनक, 101 से 200 मॉडरेट, 201 से 300 खराब, 301 से 400 बहुत खराब, 401 से 500 गंभीर, 501 से अधिक आपात स्तर का एक्यूआई स्तर प्रदर्शित करता है। ज्यादातर शहर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं।