यह भोपाल गैस त्रासदी की 38वीं बरसी है। साल-दर-साल बीतते गए और सरकारें भी बदलती रहीं लेकिन पीड़ितों के हालात नहीं बदले । यह भी त्रासदी पूर्ण है कि यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री साइट में घुले-मिले रसायनों की भी अब तक सफाई नहीं की जा सकी है। अदालतों की इस चौखट से उस चौखट तक पीड़ितों की फरियादें दौड़ ही रही हैं। तमाम याचिकाएं और इंसाफ अभी लंबित है। भविष्य के लिए हम अंजान हैं लेकिन वीभत्स भूत और दुख भोगता वर्तमान हमारा पीछा ही नहीं छोड़ता...
हादसे से पहले : यह तस्वीर 1975 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की है। यहां से गैस लीक कांड के कई बरस पहले से ही प्रदूषण की शिकायतें आ रही थीं। 1976 में यूनियनों ने फैक्ट्री के प्रदूषण की शिकायत की थी। 1981 में गैस लीक के कारण एक मजदूर की मौत भी हुई थी। एक ही वर्ष बाद मिथाइल आइसोसाइनेट के लीक होने से कई मजदूर प्रभावित हुए थे।
जानलेवा भंडार : यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का वही टैंक नंबर 610 है जिसमें से जानलेवा मिथाइल आइसो साइनेट का रिसाव हुआ। 2 और 3, दिसंबर, 1984 की मध्य रात्रि थी जब यह महात्रासदी हुई। न ही कोई सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे और न ही तकनीकी व्यक्तियों की मौजूदगी। कुछ ही घंटों में पूरा शहर इसकी चपेट में आ गया। 35 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन अब भी नई पीढ़ी को इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है।
कौन है असली डायन : ऊपर चांदनी बाई की तस्वीर है। इनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती है। उन्होंने इस हादसे में बड़ी बेटी को छोड़कर अपनी हर संतान को खो दिया। इनके पति का निधन 2004 में हो गया। वे कहती हैं कि पहले मुझे डायन कहा जाता था क्योंकि मैंने अपने परिवार के सदस्यों को खा लिया। लेकिन सच्चाई तो यह है कि यूनियन कार्बाइड फैक्टरी ही असली चुड़ैल है।
सर में स्टील की प्लेट टकराती है : यह फरजाना बाई हैं जिन्होंने एक दिव्यांग बच्चे को जन्म दिया है। बच्चे के पैर में खराबी है। फरजाना खुद कई दर्द भरे दौरों को झेल रही हैं। वे कहती हैं कि जब दौरा पड़ता है तो ऐसा लगता है कि मेरे सर में कोई स्टील की प्लेट टकरा रही हो। ऐसा लगता है कि मैं किसी की हत्या कर दूं। मेरे पति के लिए यह बहुत मुश्किल भरा होता है कि वे मुझे नियंत्रित कर पाएं।
न आकलन, न न्याय : गैस हादसे में वास्तविक मृत्यु का कोई दुरुस्त आंकड़ा नहीं तैयार हो सका और नही मरीजों के पर्चों का दस्तावेज तैयार कराया गया।
जहर का टीला : जहरीले कचरों के बोरे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में ही भीतर रखे गए हैं। यह सरकार का एक बेहतरीन आइडिया है कि वह खतरनाक कचरे को फैक्ट्री के भीतर ही रखे। मिट्टी और भूजल में रसायनों का मिश्रण है। रसायनों में ज्यादातर भारी धातु व जैविक रसायन शामिल हैं, जिससे यह स्पष्ट अंदाजा लगता है कि यह कार्बाइड प्लांट के उत्पादन प्रक्रिया का ही रसायन है।
खतरनाक रसायन : यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमटिड की दीवारों के पास जेपी नगर है जहां पशु चरने जाते हैं। यहां तक कि फैक्ट्री के आस-पास खतरनाक रसायन और दूषित मिट्टी का मुद्दा बीते 10-15 वर्षों में काफी बन चुका है। मुआवजे की मांग के साथ इसपर भी आवाज उठ रही है। यही हाल आरिफ नगर के किनारे पर भी कचरे की धुलाई वाला प्लांट का भी है।
किस काम का मेमोरियल : सरकार यहां बिना सफाई के भोपाल गैस त्रासदी का मेमोरियल बनाना चाहती है। यह ऐसी औद्योगिक त्रासदी बन चुकी है कि इसके दुखों का कोई अंत ही नहीं है। असल घाव अभी सूख ही नहीं पाए हैं शायद सरकार अपनी असफलता का मेमोरियल बनाना चाहती है।
फोटो : विकास चौधरी, सूर्य सेन, संयतन बेरा, कुमार संभव श्रीवास्तव, प्रकाश हटवालने, प्रदीप साहा