प्रदूषण

दिल्ली और यूपी समेत 23 राज्य लगा रहे हैं मोदी के स्वच्छता अभियान पर बट्टा

देश की राजधानी दिल्ली अकेले 689.52 टन प्लास्टिक कचरा पैदा करती है लेकिन अन्य 24 राज्यों की तरह उसके पास भी प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन का एक्शन प्लान नहीं है।

Vivek Mishra

एक तरफ पर्यावरण और लोगों की सेहत के लिए प्लास्टिक कचरा बड़ा खतरा बन चुका है वहीं, दूसरी तरफ राज्य सरकारें इसको लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास 30 मई, 2019 तक सभी राज्यों को प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन और निपटारे को लेकर एक्शन प्लान सौंपना था। हालांकि, चार राज्यों को छोड़कर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत 24 राज्य सीपीसीबी को एक्शन प्लान सौंपने में विफल रहे हैं।

सीपीसीबी के पूर्व अतिरिक्त निदेशक एसके निगम ने डाउन टू अर्थ को बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के मुताबिक 30 मई तक ही राज्यों को अपना प्लान सौंपना था। अभी तक राज्यों के एक्शन प्लान नहीं आए हैं। इस संबंध में स्थिति रिपोर्ट शीघ्र ही एनजीटी में दाखिल की जाएगी। आंध्र प्रदेश, पुदुचेरी, सिक्किम, पश्चिम बंगाल को छोड़कर किसी ने अपना एक्शन प्लान सीपीसीबी को नहीं दिया है।

12 मार्च, 2019 को एनजीटी ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि यदि 30 मई तक राज्य अपना एक्शन प्लान नहीं सौंपते हैं तो संबंधित राज्यों पर एक करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया जाएगा।  एसके निगम ने बताया कि वे स्थिति रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं मियाद भले ही खत्म हो गई हो लेकिन 31 मई तक वे राज्यों के एक्शन प्लान का इंतजार करेंगे।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पहली बार सितंबर, 2017 में जारी की गई प्लास्टिक कचरे से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इस कचरे में अकेले राष्ट्रीय राजधानी 689.52 टन की हिस्सेदारी करती है। वहीं देश के 60 प्रमुख शहर 4059.18 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन पैदा करते हैं। देश भर के कुल पैदा होने वाले प्लास्टिक कचरे में 94 फीसदी कचरे को दोबारा इस्तेमाल लायक बनाया जा सकता है। इसके बावजूद न तो प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन है और न ही इसका सही से निपटारा हो रहा है। प्लास्टिक जलाए जाने के कारण जबरदस्त वायु प्रदूषण होता है। जबकि हमारे देश में वायु प्रदूषण के कारण 2017 में 12.5 लाख मौते हुईं हैं।

प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन न होने के कारण जलस्रोत, हवा और समूचा वातावरण प्रदूषित हो रहा है। इन बातों की अनदेखी कर देश में 25 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन कानून, 2016 के तहत अपने यहां प्लास्टिक कचरे के निपटारे को लेकर कोई एक्शन प्लान नहीं बनाया है। 18 मार्च, 2016 में नया प्लास्टिक कचरा प्रबंधन कानून लागू किया गया था। 27 मार्च, 2018 को इसका संशोधन करने के बाद फिर से अधिसूचित किया गया। प्लास्टिक कचरे को संग्रहण के दौरान स्रोत बिंदु से ही अलग करना और उसका निपटारा करने के लिए राज्यों को एक्शन प्लान बनाना है। जबकि अभी तक राज्यों की ओर से ऐसा कोई प्लान नहीं तैयार हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) कई बार अपने आदेशों में केंद्र और राज्य सरकारों को यह समझा चुके हैं कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ हवा, साफ पानी और सेहतमंद वातावरण देश के प्रत्येक नागरिक का बुनियादी अधिकार है। इसके बावजूद अभी तक राज्य संजीदा नहीं हैं। लोगों के बुनियादी अधिकारों का हनन जारी है।