प्रदूषण

लॉकडाउन के कारण वैश्विक ओजोन प्रदूषण में दर्ज की गई 2 फीसदी की गिरावट

Lalit Maurya

हाल ही में नासा द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि लॉकडाउन के कारण वैश्विक ओजोन प्रदूषण में 2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी| मई और जून 2020 के दौरान वैश्विक स्तर पर क्षोभमंडल में मौजूद कुल ओजोन में आई यह गिरावट करीब 6 टीजीओ3 थी| जिसकी सबसे बड़ी वजह एशिया और अमेरिका में उत्सर्जन में आई कमी थी| विशेषज्ञों के अनुसार ओजोन प्रदूषण में आई यह गिरावट इतनी है, जिसे यदि नियमों और नीतियों की मदद से कम करने की कोशिश की जाती तो इसमें करीब 15 साल का समय लगता|

कोविड-19 ने पूरी दुनिया पर असर डाला है| इस महामारी के कारण 2020 की शुरुवात में वैश्विक स्तर पर व्यापार की गति धीमी हो गई थी| जिसका असर नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन पर भी पड़ा था| नासा का अनुमान है कि इसके कारण वैश्विक स्तर पर इसमें करीब 15 फीसदी की कमी आई थी जबकि स्थानीय स्तर पर इसमें आई गिरावट को 50 फीसदी तक दर्ज किया गया था|

नाइट्रोजन ऑक्साइड हमारे स्वास्थ्य और जलवायु के लिए बड़ा खतरा है| यह गैस वातावरण में प्रतिक्रिया करके ओजोन बनाती है| नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में आई गिरावट का असर ओजोन प्रदूषण पर भी पड़ा था, जिसके कारण उसके स्तर में भी गिरावट आ गई थी|

ओजोन हमारे लिए बड़ी अलग तरह से काम करती है| जब यह ऊंचाई पर समताप मंडल में होती है तो यह हमें सूर्य के विनाशकारी विकिरण से बचाती है| वहीं जब यह सतह के नजदीक होती है तो यह स्वास्थ्य को प्रभावित करती है| 2019 में सतह पर मौजूद ओजोन प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 365,000 लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था| जिसका सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों, अस्थमा के मरीजों के फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था|

यह गैस पौधों के श्वसन तंत्र को भी नुकसान पहुंचाती है| इससे उनके प्रकाश संश्लेषण की क्षमता पर भी असर पड़ता है जिससे उनकी वृद्धि और फसलों की पैदावार गिर जाती है| वहीं जब यह गैस क्षोभमंडल के शीर्ष पर होती है तो यह एक शक्तिशाली ग्रीनहॉउस गैस होती है जो वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि को बढ़ाने में सहयोग देती है|

शोध के अनुसार जिस देश में जितना सख्त लॉकडाउन था वहां उत्सर्जन में उतनी ही ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है| उदाहरण के लिए फरवरी 2020 की शुरुआत से चीन में लगाए लॉकडाउन के कारण कुछ हफ्तों में ही कुछ शहरों के नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में 50 फीसदी की गिरावट आ गई थी| वहीं बसंत में अमेरिकी राज्यों में इसके उत्सर्जन में 25 फीसदी की कमी आ गई थी|

सतह से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी दर्ज की गई ओजोन में गिरावट

इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता जेसिका न्यू जोकि जेपीएल में वैज्ञानिक भी हैं, ने बताया कि वो वैश्विक ओजोन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को देख कर आश्चर्यचकित थी कि यह प्रभाव कितना बड़ा था| उन्हें ज्यादा उम्मीद थी कि इसका असर स्थानीय पैमाने पर सतह के पास देखने को मिलेगा| लेकिन नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में आई गिरावट के चलते दुनिया भर में सतह से करीब 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी ओजोन में कमी देखने को मिली थी|

गौरतलब है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड को ओजोन में बदलने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है| इसके साथ ही यह कई अन्य कारकों जैसे कि मौसम और हवा में अन्य केमिकलों पर भी निर्भर करता है| यह सभी कारक इतने तरीकों से परस्पर प्रतिक्रिया करते हैं कि कुछ परिस्थितियों में  नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आने के बावजूद ओजोन में वृद्धि होने लगती है। यही वजह है कि शोधकर्ता केवल नाइट्रोजन ऑक्साइड से जुड़े आंकड़ों के आधार पर ओजोन के बढ़ने या घटने की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें इस तरह के विस्तृत विश्लेषण की आवश्यकता पड़ती है।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन और अन्य वायुमंडलीय गैसों को मापने के लिए नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, ईएसए के पांच उपग्रहों की मदद ली है| इनके विश्लेषण के लिए नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में आंकड़ों के विश्लेषण के लिए विकसित प्रणाली का उपयोग किया है| इससे उन्हें लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद में उत्सर्जन में आने वाली कमी और वृद्धि का पता चला है|

हालांकि यह शोध वैश्विक स्तर पर ओजोन प्रदूषण में गिरावट की बात कहता है पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि 1 जनवरी से 31 मई 2020 के बीच भारत के 22 बड़े शहरों में ओजोन प्रदूषण का स्तर मानक से अधिक था। आंकड़ों के विश्लेषण से ये बात सामने आई है कि जब लॉकडाउन के कारण शहरों में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और नाइट्रोजन डाई-आक्साइड का स्तर जब काफी कम हो गया था, तब देश के कई शहरों में ओजोन प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया था

नासा द्वारा किए अध्ययन से संकेत मिले हैं कि एक बार जैसी ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा, उससे नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन और ओजोन के स्तर में फिर से वृद्धि हो जाएगी| ऐसे में जर्नल साइंस एडवांसेज में छपे इस शोध के मुताबिक यदि स्थानीय स्तर पर नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को कम करने के लिए नई तकनीकों और अन्य समाधानों को अपनाया जाए तो उनकी मदद से वैश्विक स्तर पर वायु की गुणवत्ता और जलवायु में सुधार किया जा सकता है|