रिसर्च से पता चला है कि दुनिया भर में 218 करोड़ लोग साल में कम से कम एक दिन जमीन पर धधकती आग से निकले धुंए के संपर्क में आते हैं, जो उनके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। आंकड़ों की मानें तो पिछले एक दशक में प्रभावितों की संख्या में 6.8 फीसदी का इजाफा हुआ है।
हाल ही में ऐसी एक घटना सामने आई थी, जब कनाडा के जंगलों में लगी आग के कारण प्रदूषण ने पूरे उत्तरी अमेरिका को अपने चपेट में ले लिया था। जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे जलवायु में आते बदलावों के चलते आगे की यह घटनाएं गंभीर रूप ले रही हैं।
गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है उसके साथ-साथ जंगलों में आग लगने का सिलसिला भी बढ़ रहा है। इतना ही नहीं यह आग पहले से कहीं ज्यादा विकराल रूप लेती जा रही है। ऊपर से खेतों में जलती पराली और शहरों में लगती आग वायु प्रदूषण की समस्या को कहीं ज्यादा गंभीर बना रही है।
इसका प्रभाव न केवल पर्यावरण पर बल्कि करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। बता दें की यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक और इंसानों द्वारा लगाए जंगलों, झाड़ियों, घास के मैदानों, चरागाहों, कृषि भूमि और शहरी क्षेत्रों में धधकती हर तरह की आग से होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन किया है।
इसमें प्राकृतिक तौर पर लगी आग के साथ-साथ इंसानों द्वारा योजनाबद्ध या नियंत्रित तरीके से लगाई आग जैसे खेतों में जलाई जा रही पराली आदि को भी शामिल किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे 20 सितम्बर 2023 को जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2000 से 2019 के बीच दुनिया भर में लगी हर प्रकार की आग से हर दिन होने वाले वायु प्रदूषण और उसके प्रभावों का जायजा लिया है।
शोधकर्ताओं ने इसके लिए उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के साथ-साथ जमीनी स्टेशनों से प्राप्त जानकारी और केमिकल ट्रांसपोर्ट मॉडल के साथ मशीन लर्निंग आधारित दृष्टिकोण का उपयोग किया है।
रिसर्च के मुताबिक इस आग से निकला धुआं अब पहले से कहीं ज्यादा लोगों को प्रभावित कर रहा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। बता दें कि इस तरह के प्रदूषण के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं जिनमें सांस सम्बन्धी बीमारियां, ह्रदय रोग, के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभाव भी शामिल हैं। इतना ही नहीं इसकी वजह से उच्च मृत्युदर की आशंका भी बढ़ जाती है।
इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार औसतन, दुनिया भर में हर व्यक्ति प्रति वर्ष करीब 9.9 दिन इस प्रदूषण के संपर्क में रहता है, जो पिछले दस वर्षों में 2.1 फीसदी बढ़ गया है।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पीएम2.5 और हानिकारक ओजोन का जोखिम विशेष रूप से मध्य अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका और साइबेरिया में अधिक था। रिसर्च में यह भी खुलासा किया गया है कि आर्थिक रूप से मजबूत देशों की तुलना में कमजोर देशों में यह जोखिम करीब चार गुणा अधिक था।
उत्तरी भारत में भी दर्ज की गई है पीएम2.5 में वृद्धि
यह भी पता चला है कि 2000 से 2019 के बीच, मध्य और उत्तरी अफ्रीका के साथ-साथ उत्तरी अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका के अमेजन क्षेत्रों, साइबेरिया और उत्तरी भारत में आग से होते पीएम2.5 प्रदूषण में वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि अफ्रीका के दक्षिणी हिस्सों, दक्षिण अमेरिका, उत्तर पश्चिम चीन और जापान में इसमें उल्लेखनीय कमी आई है।
ऐसा ही कुछ ट्रेंड ओजोन के मामले में भी सामने आया है। इस दौरान मध्य अफ्रीका, साइबेरिया, पश्चिमी अमेरिका और कनाडा, मैक्सिको, दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी भारत में आग के कारण होते ओजोन में काफी वृद्धि दर्ज की गई थी। हालांकि, उत्तर पश्चिमी चीन, अफ्रीका के दक्षिणी हिस्सों और दक्षिण अमेरिका में इसमें कमी आई है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर यूमिंग गुओ का कहना है कि “अब तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ, जिसने भूदृश्य में लगने वाली आग में वैश्विक वृद्धि के व्यापक परिणामों की जांच की हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि जंगल में लगने वाली आग आम तौर पर दूरदराज के क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जहां सीमित या कोई वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन नहीं होते। यहां तक कि अक्सर कई कमजोर देशों में शहरी इलाकों में भी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन नहीं हैं।“
गुओ के मुताबिक इस आग से होने वाला वायु प्रदूषण, सैकड़ों या हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सकता है। इस तरह यह बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित कर सकता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
ऐसे में इस प्रदूषण की मैपिंग और निगरानी बेहद जरूरी है। साथ ही कितने लोग इस प्रदूषण के संपर्क में हैं इसकी जानकारी भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्वास्थ्य पर पड़ते इसके प्रभावों को समझने के साथ-साथ इससे बचाव के लिए कार्रवाई करने और जलवायु में आते बदलावों को रोकने में मददगार हो सकती है।