भारत के उभरते ई-कॉमर्स उद्योग पर्यावरण पर भारी पड़ रहे हैं, और ई-कॉमर्स में उपयोग होने वाले पैकेजिंग की मात्रा और इससे उत्पन्न कचरे के निपटारे के बारे में कोई अनुमान नहीं है। ई-कॉमर्स कंपनियो द्वारा प्लास्टिक और अन्य कचरे के उपयोग करने तथा उत्पन्न करने के बारे में बहुत कम अध्ययन हैं। 2017 में ई-कॉमर्स ने 23.24 ट्रिलियन डॉलर वैश्विक खुदरा बाजार में से यूएस 2.3 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार किया था। यूएस एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार ई-कॉमर्स पैकेजिंग में उपयोग की गई सामग्री अमेरिका में उत्पन्न ठोस कचरे का 30 प्रतिशत है। 2015 में भारत का ई-कॉमर्स पैकेजिंग उद्योग 32 अरब अमेरिकी डॉलर था जिसके 2020 तक तेजी से 73 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है। उदाहरण के लिए, फ्लिपकार्ट हर महीने करीब 8 मिलियन शिपमेंट करता है।
लेकिन ई-कॉमर्स पैकेजिंग से उत्पन्न कचरे का निपटारा करने के बारे में कोई अनुमान नहीं है, क्योंकि किसी भी संगठन ने इसकी जांच करने की आवश्यकता नहीं समझी। ई-कॉमर्स पैकेजिंग और कचरे को निपटाने में भारी पर्यावरणीय कीमत चुकानी होती है। वर्तमान में ई-कॉमर्स पैकेजिंग कई प्रकार की होती है जैसे प्लास्टिक, पेपर, बबल रैप, एयर पैकेट, टेप और कार्डबोर्ड से बने डिब्बे आदि है। हालांकि इनमें से अधिकतर पैकेजिंग सामग्री पुनर्नवीनीकरण योग्य हैं, लेकिन भारत में यह देखने को मिलता है कि इन सामग्रियों का एक बड़ा हिस्सा हमारी नालियों को बंद कर देता है तथा लैंडफिल में पड़ा पाया जाता है।अत्यधिक पैकेजिंग की समस्या प्राथमिकता वाले ग्राहक सेवाओं के कारण बढ़ जाती है जिसमें तीव्र गति से समान पहुचाने के कारण सामान को एक साथ पैक नहीं किया जाता है।
ऐसा कई व्यक्तिगत रूप से पैक की गई डिलीवरी के कारण हो रहा है जिससे कचरे में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत में उत्पन्न कचरे को बढ़ाने के अलावा, अत्यधिक पैकेजिंग की बढ़ती प्रवृत्ति निश्चित रूप से जगंलों के लिए काफी नुकसान का कारण बन जाएगी, क्योंकि पैकेजिंग कार्डबोर्ड बनाने के लिए लकड़ी की लुगदी का मुख्य रुप से उपयोग किया जाता है। मिसाल के तौर पर हर साल अमेरिका को165 बिलियन पैकेज भेजे जाते हैं, और इसमें इस्तेमाल होने वाले कार्डबोर्ड के लिए लगभग 1 बिलियन पेड़ों को काटा जाता है। इसके अलावा इन पैकेजिंग सामग्रियों के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले जहरीले रसायन मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते है, क्योंकि वे हमारे भोजन चक्र में प्रवेश कर जाते हैं। इनमें से कुछ रसायनों में जलन पैदा करने वाले रेटरदंतस, पॉलीविनाइल क्लोराइड और बिस्फेनॉल ए ब्रोमिनेटेड हैं, जो एक अंतःस्रावी विघटनकर्ता है।
कई कंपनियां स्टायरोफोम नामक संभावित कैंसरजन का उपयोग करती हैं, जिसका उपयोग सामान के आस-पास भराव के रूप में किया जाता है। स्टायरोफोम की छोटी मात्रा लंबे समय तक थकान, घबराहट और नींद न आना आदि रोगों को जन्म दे सकता है। विनील क्लोराइड, जिसका उपयोग पीवीसी के निर्माण के लिए किया जाता है,जो सिरदर्द और चक्कर आने के कारण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। विनाइल क्लोराइड के लंबे समय तक संपर्क में रहने के परिणामस्वरूप कैंसर और जिगर की क्षति हो सकती है। हांलाकि इसको स्थापित करने के लिए अभी तक कोई अध्ययन नहीं है।
कानून की आवश्यकता है
वर्तमान में भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो ई-कॉमर्स पैकेजिंग को नियंत्रित करता है और यह स्पष्ट है कि इसके निर्माण और कड़े कार्यान्वयन की तत्काल आवश्यकता है। इस तरह का कानून लाया जाना चाहिए जिसमें एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) जो यह अनिवार्य करे कि कचरे को उत्पन्न करने वाला ही उसके पुनर्नवीनीकरण और निपटान के लिए जिम्मेदार होगा।