आपदा

कश्मीर से अच्छी खबर

स्थानीय समुदाय के लोग और सिविल सोसायटी संस्थाओं ने मिलकर बाढ़ से बर्बाद स्कूलों का पुनरुद्धार किया। ऐसे प्रयास घाटी में शांतिपूर्ण भविष्य की उम्मीद जगाते हैं

Surendra Panwar

यह कहानी सुनने में ‘रेनबोज इन द अगली स्टॉर्मस’ की तरह लग सकती है, जिसमें हौसले और निराशा के आसपास बुनी हुई घटनाएं अंततः आशा और विजय की कहानी बन जाती हैं। हम उन 14 स्कूलों को देख सकते हैं जो इसको चरितार्थ कर रहे हैं। ये स्कूल जम्मू और कश्मीर में 2014 में आए भीषण बाढ़ में पूरी तरह तबाह हो गए थे। इनका पुन:निर्माण सिविल सोसाइटी के द्वारा कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत करवाया गया।

पुन:निर्माण की प्रक्रिया में शामिल लोगों के जज्बे की कहानी अभी कही जानी बाकी है। यह सीएसआर द्वारा किए गए कार्य का भी एक बेहतरीन उदहारण है जिसको ऐसी अन्य जगहों पर भी आजमाया जा सकता है, जहां शैक्षणिक संस्थानों को ऐसी स्थिति में नुकसान हुआ हो।

कश्मीर में उस भीषण बाढ़ में लगभग 2,500 से अधिक स्कूलों को नुकसान हुआ था। खासकर भवन और मूलभूत संरचनाओं को। सरकारी आंकड़ों के अनुसार तो केवल कश्मीर क्षेत्र के 1,096 स्कूलों में करीब 90.29 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। लेकिन यदि गैर-सरकारी सूत्रों की माने तो असल नुकसान इससे भी अधिक था। कश्मीर में आई बाढ़ से लाखों बच्चों की शिक्षा अधर में छूट गई क्योंकि सारे स्कूल बंद करवा दिए गए थे।

इसमें सबसे अधिक नुकसान उन स्कूलों को हुआ जो बिना किसी सहायता के चल रहे थे और उनमें गरीब परिवारों के बच्चे खासकर, बिहार से आए प्रवासी मजदूरो के बच्चे पढ़ते थे। इन स्कूलों के पास संसाधन नहीं थे कि फिर से खुद को खड़ा कर सकें।

कश्मीर के स्कूल शिक्षा निदेशालय के एक आंकड़े के अनुसार, बाढ़ की वजह से राज्य में 601 स्कूली इमारत पूरी तरीके से और 495 स्कूल आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। श्रीनगर में ही 200 से अधिक स्कूल लंबे समय तक बंद रहे। कुछ स्कूल किराए के मकानों में शुरू किए गए थे। उस समय में अधिकारियों की सबसे बड़ी चिंता बच्चों की सुरक्षा थी, क्योंकि ज्यादातर इमारतें बहुत बुरी स्थिति में थीं।

अब 30 महीनों के बाद ये 14 स्कूल न सिर्फ सुचारू रूप से चल रहे हैं बल्कि अब उनके पास नए विज्ञान प्रयोगशाला, पुस्तकालय, खेलकूद के सामान, फर्नीचर, व्हाइट बोर्ड, पंखे और वाटर प्यूरीफायर जैसी नई और अच्छी सुविधाएं भी हैं। इनमें से कई स्कूलों को कुछ अतिरिक्त क्लास रूम भी मिले जिसके कारण और अधिक बच्चों को दाखिला मिल पाया।

जब सरकारी संस्थाओं ने गैर-सहायता प्राप्त इन स्कूलों के नुकसान पर ध्यान नहीं दिया, तो सिविल सोसाइटी ने इसके पुन:निर्माण में अहम भूमिका निभाई। डल झील के किनारे बसे इनमें से ज्यादातर स्कूलों, का सीएसआर के तहत पूरी तरह से पुन:निर्माण किया गया। यह सीएसआर पहल, दिल्ली के ही एक गैर-सरकारी संस्था, सोसाइटी फॉर एक्शन इन कम्युनिटी हेल्थ ने की थी। एचडीएफसी बैंक ने इस कार्य में सहायता की। ये स्कूल जून 2016 में स्कूल अधिकारियों को सौंप दिए गए।

एक और बात गौर करने लायक है कि स्कूलों के पुन:निर्माण में सहयोग करने के लिए कश्यप गर्ल्स हाई स्कूल और मॉडर्न एरा पब्लिक स्कूल की तरह ही और भी कई स्कूलों के शिक्षकों ने अपना वेतन तक नहीं लिया।

कश्यप गर्ल्स हाई स्कूल के प्रिंसिपल एमएल पंडिता को बाढ़ के बाद से हमेशा इस बात का डर रहता था कि कहीं स्कूल की दीवारें न गिर जाएं। शिक्षकों के अपना वेतन न लेने को लेकर उनका कहना है कि यह सहायता तो बहुत छोटी थी पर नुकसान इतना बड़ा था कि हम सालों तक इसे सुचारू रूप से चलाने की सोच भी नहीं सकते थे। मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि इस पहल ने कैसे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान वापस ला दी। फर्श के अतिरिक्त स्कूल के छह कमरों का भी पूर्ण रूप से पुन:निर्माण किया गया।

बाढ़ की वजह से ये स्कूल पहले तो हफ्तों तक बंद रहे और बाद में पूरी तरह से बंद होने के कगार पर आ गए थे। कई स्कूल तो किराए के मकानों या टेंट मे चलाए जाने लग गए। स्कूलों को हुए नुकसानों का अनुमान लगाना, स्कूलों के पुनार्निर्माण की योजना में सबसे बड़ी समस्या थी। एसएसीएच और एचडीएफसी बैंक ने मिलकर फरवरी 2015 में शुरू हुई इस पहल की पहली सबसे बड़ी बाधा को दूर करने के लिए जमकर काम किया। यह पता चला कि बाढ़-प्रभावित कई स्कूल बेकार और सुनसान पड़े थे। कई स्कूलों में तो जलजमाव और मकान को हुए नुकसान की वजह से महीनों तक अंदर घुसना भी मुश्किल था। लकड़ी के फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियां, प्रयोगशाला वगैरह या तो बुरी तरह से प्रभावित हुए या पूरी तरह से नष्ट हो गए थे।

एसएसीएच की टीम ने उन स्कूलों को चिह्नित किया जिनमें जल्द से जल्द मरम्मत की आवश्यकता थी। इन सभी स्कूलों के पास फिर से ढांचे को खड़ा करने के लिए पर्याप्त सुविधा या पैसे नहीं थे। इन 14 स्कूलों का चयन मरम्मत के लिए किया गया। इनमें से दो स्कूल छोटे तारे फाउंडेशन और मॉडर्न एरा पब्लिक स्कूल दिव्यांग बच्चों के लिए थे।

एसएसीएच के सेक्रेटरी केपी राजेंद्रन कहते हैं कि इन स्कूलों का पुन:निर्माण बहुत जरूरी था, क्योंकि इनमें पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे दूसरे राज्यों से आए छोटे फुटकर विक्रेताओं, मजदूरों या छोटे उद्योगों के कर्मचारियों के होते हैं। हमारे दिमाग में यह हमेशा चलता रहा कि इस स्कूल और इन विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में है और हमारे ओर से जरा सी भी लापरवाही इन बच्चों का भविष्य खराब कर सकती थी। बाढ़ से प्रभावित स्कूलों में कई ऐसे बच्चे भी थे जो पढ़ाई के मामले में अपने परिवार की पहली पीढ़ी थे। स्कूल पुन:निर्माण योजना की वजह से आज लगभग 4,000 बच्चे फिर से अपनी पढ़ाई जारी रख पा रहे हैं।

एचडीएफसी बैंक की सीएसआर प्रमुख नुसरत पठान कहती हैं, “किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद सबसे बड़ा और कठिन काम पुनर्वास और पुन:निर्माण का होता है।”

इमामिया पब्लिक हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक एमडी गोजावारी कहते हैं, “जब बाढ़ का पानी कम हुआ तो हमारी सबसे बड़ी चिंता थी, विद्यार्थियों और उनके माता-पिता के मन से असुरक्षा का भाव मिटाना और साथ ही जल्द से जल्द कक्षा शुरू करना। इसके पहले कि हम मदद के लिए किसी के पास जाते, एसएसीएच और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड ने हमलोगों से संपर्क किया। उस समय हमें इससे अधिक क्या चाहिए था।”

कुछ इसी तरह का भाव था विजय कौल का जो वसंता गर्ल्स हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक हैं। उनका कहना है कि पुन:निर्माण की वजह से स्कूल जल्दी खोलने और सुचारू रूप से चलाने में मदद मिली। शौचालयों के पुनरुद्धार से तो छात्राओं को बहुत राहत मिली है। अब बच्चों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में कोई दिक्कत नहीं होगी।