आपदा

आंदोलन, कविताओं की जुबानी

यह किताब भोपाल की त्रासदी, केरल की एंडोसल्फान त्रासदी और अन्य पर्यावरण के विनाश की याद ताजा करती है जिनसे लाखों लोग प्रभावित हुए थे।

पर्यावरण के प्रति “हरे-भरे” विचार तब तक नहीं पनपेंगे जब तक काव्य का बीजारोपण नहीं होगा। जी. सत्य श्रीनिवास की पुस्तक पर्यावरण पर कविताओं का संकलन ही नहीं बल्कि यह 26 आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है जो विभिन्न अध्यायों में संकलित है, मसलन, मिट्टी की जड़ें, पर्यावरण आंदोलन, पर्यावरण का विनाश और शहरीकरण की क्रांति। ये निबंध पर्यावरण के प्रति भावनाओं और प्रयासों को अभिव्यक्त करते हैं। लेखक ने विभिन्न संदर्भों में अवधारणाओं और परिस्थितियों का अनुकरण किया है। उन्होंने लेखकों और आंदोलनकारियों की अभिव्यक्ति का ही जिक्र नहीं किया है बल्कि उनकी रचनाओं से वाक्यों का भी अनुवाद किया है।

लेखक का कहना है कि प्राकृतिक पर्यावरण का मतलब है-जीवन की रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्ति, काव्यात्मक सोच और इसे खुद पर लागू करना, बड़े होना और आदिवासी कुटुम्ब की तरह गीतों को पालना-पोसना, जीवन में सत्य और झूठ को आइना दिखाना और अंतिम क्षणों में भी जीवन के गीत को गुनगुनाना। उन्होंने बताया है कि पर्यावरण के काव्य ने मूक घाटी विरोध और अन्य ऐसे ही अभियानों के संदर्भ में कैसे आंदोलन का रूप अपनाया। वह बताते हैं कि इस तरह का काव्य बातचीत के साथ ही बाहरी और भीतरी दुनिया के बीच पर्यावरण जगत संबंधी आवाज बन गया। जंगल उनके लिए आध्यात्मिक पूंजी है। पर्यावरणीय काव्य को वह विहंगम दृष्टि के तौर पर परिभाषित करते हैं। यह उनके लिए पेड़ों, पहाड़ों, पानी, अग्नि, हवा और धरती को समझने के लिए आकाश के रास्ते घूमने जैसा है।

लेखक ने ज्यादातर उदाहरण मूल निवासी संदर्भ में इस्तेमाल किए हैं, चाहे वे भारतीय हों, अफ्रीकन हों या लैटिन अमेरिकन। इन समुदाय के लोगों के साथ प्रकृति के एकीकरण की उन्होंने तारीफ की है। साथ ही उन्होंने देसी कला, औषधि, संस्कृति, जीवनयापन और मान्यताओं को भी सराहा है। उन्होंने पर्यावरण से खिलवाड़ करने की राज्य की मंशा, उनके संरक्षण कार्यक्रमों और विकास के विचार के साथ ही समग्र नीतियों की भी आलोचना की है।

यह किताब भोपाल की त्रासदी, केरल की एंडोसल्फान त्रासदी और अन्य पर्यावरण के विनाश की याद ताजा करती है जिनसे लाखों लोग प्रभावित हुए थे। किताब इतिहास की घटनाओं से सबक लेने और भविष्य में पर्यावरण को संरक्षित और संतुलित रखने की बात कहती है। लेखक ने शहरीकरण और जंगलों के लुप्त होने के परिणाम भी बताए हैं। यह किताब पर्यावरणीय काव्य की मूल्यवान निधि है जिसका पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय आंदोलन से मजबूत संबंध है।   

(लेखिका सेंटर फॉर विमिंस स्टडीज, हैदराबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)