इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद 
आपदा

कौन है वायनाड त्रासदी का जिम्मेदार?

Sunita Narain

पिछली सरकार के कार्यकाल में मुझे के. कस्तूरीरंगन समिति का सदस्य बनने के लिए कहा गया था, जिसका गठन पश्चिमी घाट के लिए माधव गाडगिल समिति की सिफारिशों की समीक्षा के लिए किया गया था। इसे मैं अपने जीवन का सबसे कठिन असाइनमेंट मानती हूं और मैं आप सबसे यह इसलिए साझा कर रही हूं, क्योंकि हमें इस बात पर चर्चा करने की जरूरत है कि इस क्षेत्र की सुरक्षा हेतु किए उपायों का इतना विरोध क्यों हो रहा है।

यह हालत तब हैं जब  वायनाड के निवासी एक भयानक भूस्खलन से हुई तबाही से गुजर रहे हैं, जिसमें 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। उनका अनुभव यह कहता है कि यह क्षेत्र पारिस्थितिकी रूप से नाजुक है। फिर वे इस क्षेत्र में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगाने के किसी भी कदम का विरोध क्यों करते हैं?

लेकिन पहले, मैं कस्तूरीरंगन समिति के सदस्य के रूप में अपनी दुविधा के बारे में बात करना चाहती हूं। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो इस समूह का गठन गाडगिल समिति की महत्वपूर्ण सिफारिशों को कमजोर करने के लिए किया गया था। पहली बैठक से पहले ही हमने स्वयं को कटघरे में पाया।

गाडगिल रिपोर्ट में (जैसा कि होना भी चाहिए) छह राज्यों में फैले पश्चिमी घाट के बड़े हिस्से को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) घोषित करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन यह किसी भी राज्य सरकार को यह मंजूर नहीं था और रिपोर्ट को अंततः अस्वीकार कर दिया गया। इसलिए, मेरी समझ में यह बात आ चुकी थी कि यह एक कठिन मुद्दा होगा, आखिर क्या समाधान निकाला जाए ताकि संरक्षण हो सके और वह भी तत्काल?

गाडगिल समिति की सिफारिश थी कि पश्चिमी घाट के 1,37,000 वर्ग किलोमीटर (80 प्रतिशत) को ईएसए के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए। कमेटी ने इस संरक्षित क्षेत्र को तीन क्षेत्रों में उप-वर्गीकृत किया और प्रत्येक क्षेत्र के लिए उचित गतिविधियां निर्धारित की।

इससे यह आशंका भी पैदा हुई कि वृक्षारोपण और खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र सरकारी नियंत्रण के अधीन हो जाएंगे। मैं जानती हूं कि गाडगिल ऐसा नहीं चाहते थे। वह एक पारिस्थितिकीविद् होने के साथ ही भूमि और जनता की राजनीति में डूबे हुए व्यक्ति हैं।

वह सामुदायिक अधिकारों और लोगों को संरक्षण में भागीदार बनाने के पक्षधर हैं। दुख की बात है कि रिपोर्ट की इसी तरह से व्याख्या हुई, जिसका मुख्य कारण राजनीतिक रसूख रखने वाले हितधारक हैं जो इस क्षेत्र में लालची “विकास” गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं।

साथ ही, इस तरह की प्रतिबंधित और उचित गतिविधियों के निर्देशों को जमीन पर कैसे उतारा जाता है, इसके खिलाफ लोगों में गहरी नाराजगी है। वैसे अन्य क्षेत्रों में जिन्हें पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) घोषित किया गया है, वहां स्थानीय लोगों, विशेष कर गरीबों का उत्पीड़न हुआ है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया है।  

इन सभी मामलों में, अलग-अलग भूमि उपयोगों के लिए निषिद्ध गतिविधियों को सूचीबद्ध करने और फिर उनकी मंजूरी के प्रबंधन के लिए नौकरशाही प्रणाली स्थापित करने का फॉर्मूला रहा है। इससे स्थानीय समुदायों में नाराजगी पैदा हुई है, जिसके फलस्वरूप वे संरक्षण के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के उपरांत कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें नवंबर 2013 में पर्यावरण संरक्षण (ईपी) अधिनियम की धारा 5 के तहत जारी की गईं। अधिसूचित की गई सिफारिशों ने गाडगिल रिपोर्ट में दो बड़े बदलाव किए। पहला, इसने ईएसए के क्षेत्र को घटाकर 59,940 वर्ग किमी कर दिया।

उपग्रह इमेज का उपयोग करके यह पता चला कि पश्चिमी घाट का 60 प्रतिशत हिस्सा वृक्षारोपण, कृषि या मानव बस्तियों के अधीन था। इन्हें सांस्कृतिक परिदृश्य के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिसके पीछे हमारा तर्क था कि हालांकि यह आवश्यक तो है, लेकिन इस बदले हुए भूमि उपयोग को उलटना मुश्किल होगा।

इसलिए, हमारा प्रयास यह था कि जो इलाके अपनी प्राकृतिक अवस्था में बचे हैं, उन्हें संरक्षित किया जाए। इनमें पहले से संरक्षित वन शामिल थे, लेकिन वे गांव भी थे, जिनका 20 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र प्राकृतिक परिदृश्य के अंतर्गत था। ईपी अधिनियम के तहत निर्देशों में उन गांवों की सूची दी गई है जो पश्चिमी घाट के संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

दूसरा, उचित गतिविधियों की विस्तृत सूची जारी करने के बजाय, रिपोर्ट ने सबसे विनाशकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की। इनमें खदान और रेत खनन सहित सभी खनन शामिल हैं, थर्मल पावर प्लांट सहित सभी प्रदूषणकारी उद्योग, 20,000 वर्ग मीटर से अधिक की निर्माण परियोजनाएं और नई टाउनशिप परियोजनाएं।

यह पर्याप्त नहीं था, लेकिन इसका उद्देश्य सबसे विनाशकारी चीजों को रोकना था और यह सुनिश्चित करना था कि हमारी मौजूदा कमजोर और समझौतावादी नियामक प्रणालियों के बावजूद ऐसा किया जा सके। यह अधिसूचना लागू है और संरक्षित पश्चिमी घाटों में किसी भी प्रतिबंधित गतिविधि को पर्यावरण मंजूरी नहीं दी जा सकती है, केवल एक महत्वपूर्ण बदलाव के साथ, जो केरल राज्य से संबंधित है।

केरल सरकार ने अधिसूचना को लेकर आपत्ति जताई और संरक्षित क्षेत्रों में बदलाव की मांग की, जिसके पीछे यह तर्क दिया गया कि उसकी अपनी समिति ने जमीनी स्तर पर अंतर पाया है। केरल सरकार ने कहा कि प्राकृतिक परिदृश्य (जैसा कि कस्तूरीरंगन समिति द्वारा परिभाषित किया गया है) में गांवों को संरक्षित के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।

इसके विपरीत, गांव की सीमा के भीतर एक क्षेत्र को फिर से परिभाषित किया गया जो संरक्षित होगा और एक ऐसा क्षेत्र भी जो संरक्षित नहीं होगा। इस तरह, कस्तूरीरंगन प्राकृतिक परिदृश्य के तहत अधिसूचित एक गांव का एक क्षेत्र ईएसए के तहत हो सकता है और उसे अपनी सीमाओं के भीतर खनन या उत्खनन करने की भी अनुमति दी जा सकती है। 2018 में केंद्र ने अपने 2013 के निर्देश में संशोधन करते हुए केरल की मांग के अनुसार पश्चिमी घाट के संरक्षित क्षेत्र से 3,115 वर्ग किमी क्षेत्र को बाहर कर दिया था।

दो मुख्य मुद्दे हैं जिन पर मैं आपसे आगे चर्चा करना चाहूंगी। पहला, क्या केरल संशोधन वायनाड की त्रासदी के लिए जिम्मेदार है? और दूसरा, जलवायु परिवर्तन के इस दौर में कौन सा विकास और संरक्षण मॉडल लोकप्रिय समर्थन हासिल करेगा?