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क्या सूखा था माया सभ्यता के पतन की वजह? वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल

माया सभ्यता में भोजन के रुप में उपयोग हो सकने वाले पौधों की 497 प्रजातियां उपलब्ध थी, जिनमें से कुछ तो ऐसी हैं जो भीषण सूखे का सामना कर सकने के काबिल हैं

Lalit Maurya

क्या माया सभ्यता के पतन का कारण सूखा था? हाल ही में इस विषय पर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया - रिवरसाइड द्वारा किए अध्ययन के निष्कर्ष तो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। शोध के मुताबिक माया सभ्यता के पास भोजन के रुप में उपयोग हो सकने वाले पौधों की करीब 497 प्रजातियां उपलब्ध थी, जिनमें से कुछ तो ऐसी हैं जो भीषण सूखे का सामना कर सकने के काबिल हैं।

ऐसे में यह सभ्यता सूखे के कारण पैदा हुई भुखमरी से पूरी तरह कैसे खत्म हो सकती है, यह बात सवाल पैदा करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार साक्ष्य बताते हैं कि हो सकता है कि जलवायु परिवर्तन ने माया राजनीति के विघटन या पतन में योगदान दिया हो। यद्यपि जलवायु परिवर्तन उस अवधि के बहुआयामी, राजनैतिक उथल-पुथल के लिए पूरी तरह से जिम्मेवार नहीं हो सकता।

यह स्पष्ट है कि सूखे की भीषण स्थिति में भी सीमित मात्रा में ही सही मगर खाद्य उपलब्धता हो सकती है। पुरातत्वविद् स्कॉट फेडिक और प्लांट फिजियोलॉजिस्ट लुइस सैंटियागो द्वारा किया गया यह अध्ययन जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।   

अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थित थी। इस सभ्यता की शुरुआत 1500 ईसा पूर्व हुई थी। यह सभ्यता 300 से 800 ईस्वी में काफी फली-फूली थी। इसके बाद 11 वी शताब्दी से इसके पतन की शुरुआत हो गई थी। इस सभ्यता के लोगों को कला, गणित, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष, लेखन और खगोलीय ज्ञान की अच्छी खासी जानकारी थी। इस दौरान लोग खेती करते थे और रहने के लिए शहर का विकास किया गया था।     

हालांकि शोधकर्ताओं के अनुसार इसमें कोई विवाद नहीं है कि नौवीं शताब्दी के अंत में दक्षिणपूर्वी मेक्सिको और उत्तरी मध्य अमेरिका के यूकाटन प्रायदीप पर भीषण सूखा पड़ा था। गौरतलब है कि इसी समय रहस्यमय तरीके से माया सभ्यता की आबादी घटने लगी थी और शहर खाली होने लगे थे। इस बारे में कुछ विद्वानों का मत है कि ऐसा सूखे के कारण हुआ था जो कई सालों तक चला था। वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि इसके लिए विदेशी आक्रमण या विद्रोह वजह थी जबकि कुछ महामारी को माया सभ्यता के पतन की वजह मानते हैं। 

भीषण सूखे का सामना करने के काबिल थी पौधों की 11 फीसदी प्रजातियां

इसमें कोई शक नहीं कि मक्का प्राचीन माया सभ्यता का एक प्रमुख आहार था। लेकिन सूखे के दौरान उपलब्ध होने वाले अन्य खाद्य संसाधनों को भी समझना जरुरी है। शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध में जिन खाने योग्य पौधों की 497 देशी प्रजातियों का अध्ययन किया है, उनमें से 83 फीसदी प्रजातियां थोड़े समय तक रहने वाले सूखे का सामना करने के काबिल थी, जबकि 22 फीसदी प्रजातियां एक साल तक मध्यम दर्जे के सूखे का सामना कर सकती थी। वहीं 11 फीसदी प्रजातियां ऐसी थी जो कई वर्षों तक भी भीषण सूखे का सामना करने के काबिल थी। 

इस बारे में शोधकर्ता लुइस सैंटियागो का कहना है कि "यहां तक की सूखे की सबसे चरम स्थिति में भी माया सभ्यता में खाद्य पौधों की ऐसी प्रजातियां थी जो उसका सामना करने के काबिल थी। इनमें से 59 प्रजातियां ऐसी है जो सूखे की भीषण से भीषण स्थिति का भी सामना कर सकती थी। हालांकि इस बारे में अब तक कोई स्पष्ट सबूत नहीं है कि उस दौरान जो सूखा पड़ा था वो अपने चरम पर था।"  

उनके अनुसार इस सभ्यता में कसावा और ताड़ को भोजन में शामिल किया गया था। इसके साथ ही एक और पौधे छाया को उन्होंने अपने भोजन में शामिल किया होगा। यह पौधा आज भी उनके वंशजों द्वारा खाया जाता है। इसकी पत्तियां प्रोटीन, आयरन, पोटैशियम और कैल्शियम से भरपूर होती हैं। उनके अनुसार छाया और कसावा मिलकर काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकते हैं। 

इसे समझने के लिए पुरातत्वविद स्कॉट फेडिक ने माया सभ्यता के दौरान मौजूद स्वदेशी पौधों की एक सूची तैयार की है, जो माया पौधों के बारे में दशकों के ज्ञान पर आधारित है। उन्होंने ज्ञात सभी 497 पौधों की जांच की है। इस बारे में फेडिक का कहना है कि "एक बात जो हम जानते हैं, वह यह है कि सूखा की वजह से उस दौरान कृषि का पतन नहीं हुआ था। यह शोध जलवायु परिवर्तन और सूखे से बचने के लिए विभिन्न प्रकार के पौधों के उपयोग के महत्व को भी दर्शाता है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक चाहे प्राचीन सभ्यता हो या आधुनिक लोग, यदि वो जलवायु परिवर्तन और सूखे का सामना कर सकने वाली फसलों की विविधता को बनाए रखने में कामयाब रहते हैं, तो वह सूखे का सामना करने और उससे बचे रहने में भी सफल रहेंगें।