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हिंद महासागर में 1000 साल पहले आई सुनामी थी ज्यादा खतरनाक: वैज्ञानिक

पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर विटोरियो मसेली के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन ने तंजानिया में 1 हजार साल पहले एक घातक सुनामी की पहचान की है

Dayanidhi

दिसंबर 2004 में आई ट्रांस-ओशन सुनामी, जो सुमात्रा-अंडमान में रिक्टर स्केल पर 9.2 तीव्रता से आए एक भूकंप से उत्पन्न हुई थी। तब से लोगों का समुद्र को देखने का तरीका बदल गया और यह सुनामी विज्ञान में एक खतरनाक मोड़ था। सुनामी का सबसे ज्यादा असर इंडोनेशिया, श्रीलंका, भारत और थाईलैंड में महसूस किया गया जहां 2 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

उसी भूकंप के नौ घंटे बाद, एक छोटी लहर और कम ऊंचाई की टेली-सुनामी आई जो पूर्वी अफ्रीका के समुद्र तट से टकरा गई थी। सोमालिया में लगभग 10 मीटर ऊंचाई वाली लहरें देखी गई, जहां 298 जानलेवा घटनाएं हुई। यह भूकंप के केंद्र से 5 हजार किमी से अधिक दूरी पर था।

दक्षिण-पूर्व में केन्या और तंजानिया के अफ्रीकी तट में कम प्रभाव देखा गया था, हो सकता है कि यहा उस दौरान ज्वार कम रहा हो।

सुनामी के खतरों को समझने, इसके बारे में अधिक जानने के अलग-अलग वैश्विक पहलू हैं - लेकिन दिसंबर 2004 की सुनामी को मुख्य रूप से पूर्वी हिंद महासागर की घटना के रूप में देखा गया है। इसके परिणामस्वरूप, प्राचीन समय में आई सुनामियों को खोजने और ऐसी भयावह घटनाओं के पुन: होने के समय को समझने के लिए बहुत प्रयास किया गया तथा इसके लिए विशिष्ट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया। सुनामी के खतरे पूर्वी अफ्रीकी देशों में अब तक कम माने गए है, इसका मुख्य कारण 2004 की सुनामी से हुआ सीमित नुकसान है।

पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर विटोरियो मसेली के नेतृत्व में हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने तंजानिया में लगभग 1 हजार साल पहले एक घातक सुनामी की पहचान की है। जिसमें सुझाव दिया गया है कि पूर्वी अफ्रीका में सुनामी का खतरा पहले जितना सोचा गया था उससे कही अधिक हो सकते हैं। यह शोध जियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

डॉ. मसेली, एक नेशनल जियोग्राफिक एक्सप्लोरर हैं, उन्होंने 2016 में पहली बार पूर्वी अफ्रीकी में सुनामी में रुचि दिखाई थी। डॉ. मासेली कहते हैं मैं कुछ फील्ड नोट्स पर काम कर रहा था जब मुझे महसूस हुआ कि तंजानिया या किसी अन्य पूर्वी अफ्रीकी तटीय देशों में सुनामी की घटनाओं की जांच के लिए अब तक कोई अध्ययन नहीं हुआ। डॉ. मूर कहते हैं पुरातत्व विभाग तथा दार एस सलाम विश्वविद्यालय की मदद से हमने पैंगानी खाड़ी के करीब एक क्षेत्र स्थल का दौरा किया, जहां हमने पहले आई सुनामी की खोज की।

लगभग 1.5 मीटर की गहराई पर, उन्होंने एक रेत की परत को मानव अवशेषों को ढ़के हुए पाया, जिसमें पारंपरिक अंत्येष्टि दफन के सबूत नहीं थे। हड्डियों पर लड़ाई, बीमारी या आघात के कोई सबूत नहीं थे, जिसने टीम को यह सोचने पर मजबूर किया कि उस क्षेत्र में कुछ विनाशकारी घटनाएं हुई थी। डॉ. मासेली और उनकी टीम ने इन सबूतों को चिह्नित करने और रेडियोकार्बन डेटिंग के साथ इस घटना की समय सीमा और उम्र को निर्धारित करने के लिए कई नमूने एकत्र किए।

इटली के इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन साइंसेज के पेलियोन्टोलॉजिस्ट मार्को तवियानी ने निष्कर्ष निकाला कि रेत की परत के भीतर महाद्वीपीय, एस्टुरीन और समुद्री आवासों के मिश्रित जीवाश्म का संकेत मौजूद था। समुद्री सीप ने इस घटना की परिकल्पना का समर्थन किया कि सुनामी की लहर ने क्षेत्र को प्रभावित किया था।

रेडियोकार्बन डेटिंग ने संकेत दिया कि पैंगानी में रेत की परत जमा करने वाली घटना लगभग 1 हजार साल पहले हुई थी। थाईलैंड, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिणी श्रीलंका और मालदीव से एक ही समय के पेलियो-सुनामी के साक्ष्य सामने आए थे।

शोध टीम के लिए यह सबसे अच्छा सबूत था कि लगभग 1 हजार साल पहले पश्चिमी और पूर्वी हिंद महासागर में भारी सुनामी आई थी, जो 2004 में आई सुनामी की तरह थी। न्यूजीलैंड में जीएनएस साइंस के आदित्य गुसमैन द्वारा की गई सुनामी मॉडलिंग से पता चला कि सुमात्रा सबडक्शन जोन का एक बड़े हिस्से का टूटना पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ दक्षिणी एशिया में भी बड़े, विनाशकारी सुनामी के लिए सबसे बड़ा स्रोत था।

तंजानिया में एक टेली-सुनामी की खोज और इससे जुड़े विनाश और जान-माल का नुकसान, पूर्वी अफ्रीका के तट के साथ दुनिया भर में बेहतर मूल्यांकन और सुनामी के खतरे की तैयारी की ओर इशारा करता है।

सुनामी सिर्फ भूकंप से पैदा नहीं होती अपितु सब्मरीन के भूस्खलन से भी हो सकती है। 1929 के ग्रैंड बैंक्स भूस्खलन-सुनामी के दौरान  अटलांटिक कनाडा में ऐसा ही हुआ था। सब्मरीन भूस्खलन का पता लगाने और उनकी सुनामीजन्य क्षमता का आकलन करने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन के बाथिमेट्रिक डेटा का उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सुनामी को लेकर अभी भी कई अनसुलझे सवाल है जिनका उत्तर खोजना अभी भी जारी है।