आपदा

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर लगाम लगाने से कम हो सकता है बाढ़ का खतरा

भारी संख्या में पेड़ों को काटा जाना अधिक गंभीर, बार-बार आने वाली बाढ़ का कारण बनती है और ऐसी बाढ़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

Dayanidhi

अब दुनिया भर में बढ़ते बाढ़ के खतरों के प्रबंधन में वनों की शक्ति को पहचानने, अधिक टिकाऊ वानिकी प्रथाओं और नीति की ओर बढ़ने का समय आ गया है।

अध्ययन के हवाले से जल विज्ञानी और वानिकी संकाय में प्रोफेसर डॉ. यूनुस अलीला और शोधकर्ता हेनरी फाम ने बताया कि उन्होंने दशकों के जल विज्ञान अध्ययनों को विश्लेषण किया है। जसमें पाया कि कई लोगों द्वारा बाढ़ के खतरों पर जंगलों के प्रभाव को कम करके आंका गया है। इसकी वजह से वन प्रबंधन नीतियों और प्रथाओं का जन्म हुआ जो या तो खराब थी या जानकारी सही नहीं थी।

ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय (यूबीसी) के शोधकर्ताओं द्वारा साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है।

कारण और प्रभाव

डॉ. अलीला ने बताया कि जब यह समझ में आता है कि पेड़ों को काटने से बाढ़ का खतरा कैसे बढ़ सकता है, तो एक निर्धारित करने वाला दृष्टिकोण है। यह केवल पेड़ों का काटे जाने के प्रभाव को देखेगा और इसके प्रत्यक्ष प्रभाव का पता लगाने का प्रयास करेगा।

बाढ़ का खतरा कई चीज़ों से प्रभावित होता है, जैसे जमीन पर कितनी बर्फ है, वह पिघल रही है या नहीं, कितनी बारिश हो रही है आदि। ये कारण समय के साथ जटिल तरीकों से आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

उन सभी को ध्यान में रखना "संभाव्य" दृष्टिकोण कहा जाता है और बाढ़ के खतरे की बेहतर समग्र तस्वीर सामने रखता है। 

यूबीसी के वानिकी कार्यक्रम में मास्टर ऑफ साइंस के शोधकर्ता हेनरी फाम ने कहा, जलवायु परिवर्तन विज्ञान जैसे अन्य विषयों में संभाव्य दृष्टिकोण पहले से ही अच्छी तरह से स्थापित है। यह बाढ़ पर वनों की कटाई के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए यह सबसे सटीक तरीका है।

जंगल बाढ़ के खतरे को कम कर सकते हैं

डॉ. अलीला का कहना है कि संभाव्य रूपरेखा को समझने और पूर्वानुमान लगाने के लिए डिजाइन किया गया है, उदाहरण के लिए, 2021 फ्रेजर वैली बाढ़ के लिए जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग में बदलाव या पेड़ों का काटे जाने को कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को अन्य शहरों और क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे के कारणों की जांच के लिए भी शामिल किया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि दुनिया भर में साल-दर-साल बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है क्योंकि हम बड़े पैमाने पर कटाई और जंगल की आग के कारण जंगलों को खो रहे हैं। यदि हम आपदाओं की लागत को कम करना चाहते हैं तो हमें अपने वन क्षेत्र के प्रबंधन के तरीके को बदलने की जरूरत है। पुनर्योजी प्रथाएं जैसे कि चयनात्मक तरीके से पेड़ों को काटने, छोटे स्तर पर काटने के अन्य विकल्प आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है।

फाम ने कहा कि भारी संख्या में पेड़ों को काटा जाना अधिक गंभीर और बार-बार बाढ़ का कारण बनती है और ऐसी बाढ़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वे नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं, सामुदायिक जलाशयों में पानी की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं और बहाव में अवसादन की समस्या पैदा कर सकते हैं। भारी संख्या में पेड़ों के काटे जाने के निचले प्रवाह में हजारों जिंदगियां और कई पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकते हैं।

डॉ. अलीला ने अपने निष्कर्ष में कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण वैश्विक स्तर पर बढ़ते बाढ़ के खतरे के खिलाफ वन सबसे प्रभावी प्राकृतिक रक्षा के रूप में काम करते हैं। अब समय आ गया है कि जल और वन प्रबंधन नीतियों को सबसे नवीनतम और रक्षात्मक विज्ञान द्वारा निर्देशित किया जाना शुरू किया जाए।