आपदा

गहराते जा रहे जलवायु परिवर्तन के निशान: 2021 में बाढ़ की 50 से ज्यादा गंभीर घटनाएं की गई दर्ज

Lalit Maurya

2021 के दौरान दुनिया भर में बाढ़ की 50 से ज्यादा गंभीर घटनाएं दर्ज की गई थी। इन घटनाओं में करीब 621,473 करोड़ रुपए (8,200 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था, जोकि वैश्विक जीडीपी का करीब 0.29 फीसदी था। यह जानकारी हाल ही में स्विट्जरलैंड आधारित पुनर्बीमा कंपनी स्विस रे द्वारा जारी रिपोर्ट “सिग्मा: नेचुरल कैटस्ट्रोफेस इन 2021” में सामने आई है। हालांकि इनमें से केवल एक चौथाई नुकसान का ही बीमा था। यानी करीब 454,736.7 करोड़ रुपए का नुकसान ऐसा था, जिसकी भरपाई बीमा से नहीं हो सकती थी।

रिपोर्ट में न केवल बाढ़ बल्कि अन्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान की गणना की गई है, जिसके अनुसार 2021 में इन आपदाओं के चलते करीब  20.5 लाख करोड़ रुपए (27,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान अर्थव्यवस्थाओं को उठाना पड़ा था। जिसमें से केवल 8.4 लाख करोड़ रुपए का ही बीमा था।

मतलब की करीब 60 फीसदी नुकसान का कोई बीमा नहीं था। वहीं यदि 2020 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इन प्राकृतिक आपदाओं में करीब 16.4 लाख करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ था, जिसमें से केवल 6.8 लाख करोड़ का बीमा था।

रिपोर्ट की मानें तो बाढ़ की समस्या दुनिया भर में विकराल रूप ले चुकी है। आज विश्व की करीब 29 फीसदी आबादी पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है, जिनका कुल आंकड़ा करीब 220 करोड़ है।  अनुमान है कि 2011 के बाद से प्राकृतिक आपदाओं के चलते जितनी भी जानें गई है उनमें से करीब एक तिहाई के लिए बाढ़ ही जिम्मेवार थी। इतना ही नहीं बाढ़ की घटनाएं अन्य आपदाओं की तुलना में कहीं ज्यादा थी। 

भारत में आई मौसमी बाढ़ में गई थी 729 लोगों की जान

पता चला है कि 2021 के दौरान दुनिया भर में बाढ़ की जो प्रमुख घटनाएं सामने आई थी उनमें भारत में आई मौसमी बाढ़ भी शामिल थी जिसमें सबसे ज्यादा करीब 729 लोगों की जान गई थी, जबकि करीब 17,432 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था।

वहीं जुलाई 2021 के दौरान मध्य और पश्चिमी यूरोप में आई बाढ़ में सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ था जोकि करीब 3.1 लाख करोड़ रुपए का था, इतना ही नहीं इस बाढ़ के चलते करीब 227 लोगों की जान गई थी। 

इसी तरह जुलाई 2021 में चीन के हेनान क्षेत्र में आई बाढ़ में करीब 302 लोगों की जान गई थी जबकि करीब 1.4 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। चीन में बाढ़ की केवल यही प्रमुख घटना नहीं थी इसी तरह वहां आई मौसमी बाढ़ में भी करीब 103 लोगों की जान गई थी जबकि करीब 44 हजार करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था।

इस तरह 2021 में आई बाढ़ ने कुल 2,580 लोगों की जिंदगियों को लील लिया था। जबकि यदि सभी प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2021 में करीब 11,880 लोग इन घटनाओं का शिकार बने थे। इस तरह 2021 में आई बाढ़ ने कुल 2,580 लोगों की जिंदगियों को लील लिया था।

यदि सभी प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2021 में करीब 11,880 लोग इन घटनाओं का शिकार बने थे। इसमें सबसे ज्यादा जानें एशिया में गई थी जिनका कुल आंकड़ा करीब 4,094 था। इसके बाद दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन में 2,877 और अफ्रीका में 2,554 लोगों की जान गई थी। वहीं उत्तरी अमेरिका में 1,451 जानें गई थी।      

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ता जा रहा है खतरा

देखा जाए तो जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रहे है उसके चलते बाढ़, तूफान जैसी आपदाओं का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि पहले ही एक डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई है।

वहीं संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" में जानकारी साझा की है कि यदि वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो सदी के अंत तक तापमान में होती यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी, जिसके चलते हमें बड़े पैमाने पर विनाश का सामना करना पड़ सकता है। अनुमान है कि इसके चलते दुनिया के कई क्षेत्र रहने लायक नहीं रहेंगें।

ऐसा ही कुछ हाल के दशकों में भारत में भी देखने को मिला है जब मानसून के दौरान होने वाली भारी बारिश में काफी वृद्धि और तीव्रता देखी गयी है। केरल में अगस्त 2018 में भी ऐसी ही भीषण बाढ़ आयी थी, जिसमें 445 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

इसी तरह 2017 में गुजरात, जुलाई 2016  में असम, 2015  में फिर से गुजरात और 2013 में उत्तराखंड में आयी भयंकर त्रासदी को शायद ही कोई भूला होगा। जिस तरह मानसून के दौरान आकस्मिक रूप से भारी बारिश आ रही है वो यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता। देश के कई हिस्सों में कहीं भारी बारिश हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है, निश्चित तौर पर इसके पीछे जलवायु में आते बदलाव ही जिम्मेवार हैं। 

पिछले शोधों से पता चला है कि जिस तरह से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, उसके कारण वैश्विक स्तर पर आने वाले वक्त में 27.5 करोड़ लोगों पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगेगा, जिसका सबसे ज्यादा असर कृषि और ग्रामीण जनजीवन पर पड़ेगा।

ऐसे में यह जरुरी है कि इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए जलवायु अनुकूलन पर जोर दिया जाए। दुनिया भर में ज्यादातर कमजोर देशों को होने वाले नुकसान गैर बीमाकृत होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इंश्योरेंस पर भी ध्यान देना जरुरी है। सबसे महत्वपूर्ण जिस तरह से वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है उसपर लगाम लगाना जरुरी है क्योंकि यदि तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो हम चाह कर भी ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान को नहीं रोक पाएंगे।