आपदा

वैज्ञानिकों ने बनाई नई प्रणाली, महीनों पहले दे देगी सूखे की चेतावनी

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की है, जो महीनों पहले ही सूखे की चेतावनी देती है। यह प्रणाली उन करोड़ों किसानों के लिए वरदान साबित होगी, जो सूखे की वजह से अपनी फसल गवां देते हैं

Lalit Maurya

सूखा दुनिया में सबसे खतरनाक प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। आंकड़ें दर्शाते हैं कि 1900 से लेकर 2010 के बीच, दुनिया भर में करीब दो अरब लोग इससे प्रभावित हो चुके हैं, जबकि इसके प्रभावों के कारण करीब एक करोड़ से भी अधिक लोग अपनी जान गवां चुके हैं। भारत में भी सूखे की समस्या कोई नयी नहीं है, यहां सूखा हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है। जबकि कई किसान इसके चलते आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर हो जाते हैं ।

दुनिया के कई हिस्सों में ग्लोबल वार्मिंग के चलते सूखे की समस्या और विकट होती जा रही है, यही कारण है कि इससे होने वाला नुकसान भी दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। हालांकि दुनिया भर में सूखे के प्रभावों को कम करने के लिए निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की गयी हैं । अभी तक विकसित पूर्व चेतावनी प्रणाली केवल प्राकृतिक खतरे के रूप में ही सूखे की प्रारंभिक चेतावनी देती हैं। लेकिन ये सूखे के प्रभावों, उसकी गंभीरता और खतरे के बारे में सीधे तौर पर कुछ नहीं बताती। हालांकि यह जानकारी जल प्रबंधन और नीति बनाने वालों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसकी सहायता से वे सूखे को बेहतर तरीके से समझकर तैयारी कर सकते हैं।

कैसे काम करती है यह प्रणाली

वैज्ञानिकों द्वारा बनायीं नयी प्रणाली महीनों पहले ही सूखे के प्रभावों को बता सकती है । इसके विषय में विस्तृत अध्ययन जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में छपा है। यह अध्ययन वैगनिंगेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा और उट्रेच और फ्रीबर्ग विश्वविद्यालय के सहयोगियों द्वारा किया गया है। सम्पूर्ण यूरोप पर किये गए इस अध्ययन के अनुसार इस प्रणाली से सूखे के प्रभावों को पता 2 से 4 महीने पहले ही लगाया जा सकता है और यदि पर्याप्त विशेषज्ञता है तो उससे भी अधिक लम्बी अवधि के लिए पूर्वानुमान किया जा सकता है।

इसके लिए उन्होंने जर्मनी में जल परिवहन, जल आपूर्ति, जल गुणवत्ता और पारिस्थितिक तंत्र पर सूखे के पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान लगाया है, जो की इसकी उपयोगिता को दर्शाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूखे से निपटने के लिए वर्षा और तापमान के पूर्वानुमान के बजाय, पानी से जुड़े अन्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए जैसे मिट्टी की नमी, भूजल और नदी के प्रवाह का पूर्वानुमान अधिक महत्वपूर्ण है।

इन क्षेत्रों के पूर्वानुमान से इससे जुड़े कई अन्य क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों को भी समझा जा सकता है। लेकिन ऐसे पूर्वानुमान तभी संभव हो सकता है जब आपके पास पहले पड़ चुके सूखे और उसके प्रभाव के सम्बन्ध में डेटाबेस उपलब्ध हों। जैसे कि यूरोपियन ड्राउट इम्पैक्ट इन्वेंटरी, यूएस ड्राउट इम्पैक्ट रिपोर्टर आदि।

इस तरह के डेटाबेस और उसके आंकड़ें शुद्ध होने चाहिए और इनमें समय के अनुसार स्थानीय जानकारी का भी समावेश होना चाहिए । जिसकी सहायता से दो से चार महीने पहले ही सूखे के प्रभावों का पूर्वानुमान किया जा सकता है, जबकि कुछ मामलों में इससे अधिक अवधि तक की भविष्यवाणी भी की जा सकती है।

भविष्य में इस तरह की प्रणालियां सूखे से निपटने और जल प्रबंधन में अहम भूमिका निभा सकती है। साथ ही यह एशिया और अफ्रीका के उन करोड़ों लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं । जो हर साल सूखे के चलते अपना घर-जमीन और जानवर तक बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।