आपदा

भारत में मिट्टी के 68.4 फीसदी कटाव के लिए जिम्मेवार है बारिश, लैटकन्स्यू और चेरापूंजी में है सबसे ज्यादा खतरा

आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक नया मानचित्र तैयार किया है जिसकी मदद से देश में बारिश के कारण होने वाले कटाव संभावित क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है

Lalit Maurya

आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक नया मानचित्र तैयार किया है जिसकी मदद से देश में बारिश के कारण होने वाले कटाव संभावित क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। आईआईटी, दिल्ली द्वारा इस सन्दर्भ में की गई रिसर्च से पता चला है कि देश में मिट्टी के होते 68.4 फीसदी कटाव के लिए पानी और बारिश जिम्मेवार है। शोधकर्ताओं के अनुसार बारिश के चलते मिट्टी की गुणवत्ता में आती गिरावट इस कटाव की मुख्य वजह है।

इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि देश में असम और मेघालय के हिस्सों में बारिश के कारण होने वाले कटाव का खतरा सबसे ज्यादा है। इसकी सबसे बड़ी वजह वहां मौजूद दोमट, गाद दोमट, बलुई दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी है जो ढलान वाले इलाकों में पानी के कारण होने वाले कटाव को रोकने में काफी हद तक असमर्थ रहती है।

देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर बारिश से होने वाला कटाव पर्यावरण से जुड़ी एक प्रमुख समस्या है। हालांकि इसके बावजूद भारत में बारिश के कारण होने वाले कटाव का वर्तमान आंकलन जलग्रहण या कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित है। जो भारत जैसे विशाल जलवायु विविधता वाले देश में बारिश के कारण होने वाले भूमि कटाव का आकलन करने के लिए काफी नहीं है।

यही वजह है कि आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने बारिश से होने वाले कटाव का ऐसा पहला मूल्यांकन किया है, जिसमें देश के हर हिस्से को शामिल किया गया है। अपने इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने बारिश के कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय ग्रिडेड डेटासेट का उपयोग किया है। इसमें इंडियन मानसून डेटा एसिमिलेशन एंड एनालिसिस (आईएमडीएए), भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और ग्लोबल क्लाइमेट हैजर्ड ग्रुप इंफ्रारेड प्रेसिपीटेशन विद स्टेशन डेटा  शामिल हैं। इसकी मदद से भारतीय शोधकर्ताओं ने एक हाई रिज़ॉल्यूशन मैप भी विकसित किया है, जिसमें भारत में बारिश के कारण कटाव संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डाला गया है।

लैटकन्स्यू और चेरापूंजी में है कटाव का सबसे ज्यादा खतरा

जर्नल कैटेना में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक भारत में बारिश के कारण होने वाला औसत अनुमानित कटाव 1200 एमजे-मिमी/हेक्टेयर/घंटा प्रति वर्ष है। शोध के मुताबिक, मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स में लैटकन्स्यू और चेरापूंजी में बारिश के कारण होने वाले कटाव का जोखिम सबसे ज्यादा है। जहां आर फैक्टर 23,909.21 एमजे-मिमी/हेक्टेयर/घंटा/वर्ष है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मेघालय दुनिया के सबसे आद्र क्षेत्रों में से एक है।

वहीं दूसरी तरफ लद्दाख के ठंडे और शुष्क शाही कांगड़ी पर्वतीय क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का जोखिम सबसे कम है। इस क्षेत्र का आर फैक्टर 8.10 एमजे-मिमी/हेक्टेयर/घंटा/वर्ष है।

इस बारे में आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मानवेंद्र सहरिया का कहना है कि यह अध्ययन भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मिट्टी के कटाव संबंधी मॉडल के निर्माण की दिशा में उठाया गया एक कदम है।

उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर बारिश के कारण होते कटाव को दर्शाने वाला यह मानचित्र वाटरशेड प्रबंधकों को विभिन्न स्थानों पर बारिश के कारण होने वाले कटाव की पहचान करने के साथ-साथ उसे कम करने के लिए आवश्यक वाटरशेड विकास गतिविधियों सम्बन्धी योजना बनाने और उसे लागू करने में मददगार साबित हो सकता है।