आपदा

पंजाब-हरियाणा बाढ़: जब सरकार हो गई फेल, किसानों ने मिल कर बांधे टूटे हुए बांध

घग्घर नदी के किनारे टूटने से पंजाब-हरियाणा के दर्जनों गांव में भारी तबाही मची, लेकिन प्रशासन कोई बचाव नहीं कर पाया

Raju Sajwan

26 साल के हरविंदर सिंह अपने पिता के साथ खेती करते थे, लेकिन इस साल उन्होंने सोचा कि वह खुद अपने दम पर भी कुछ करें। यही सोचकर उन्होंने गांव के ही एक जमींदार से डेढ़ किला (एकड़) खेत ठेके पर लिया और धान की रोपाई कर दी, लेकिन बाढ़ ने उनके इस सपने को ध्वस्त कर दिया। बाढ़ से नुकसान तो हुआ, लेकिन घग्घर नदी के पानी के साथ आई रेत खेत पर इस कदर बिछ गई है कि रेत हटाने के बाद गेहूं की बुआई कर पाएंगे या नहीं, अभी कुछ कह नहीं सकते। 

10 जुलाई 2023 को घग्घर नदी ने अपने किनारे तोड़ने शुरू किए और हरियाणा-पंजाब के कई गांवों की सीमाओं पर बनाए गए लगभग छह फुट ऊंचे बांध तक पहुंच गई। दो जगह से बांध कमजोर होने के कारण नदी के पानी ने बांध को तोड़ दिया और नदी की सीमा पर लगे गांवों में तबाही मच गई। 

सीमा पर लगते पंजाब के पटियाला जिले की तहसील घन्नौर के गांव दड़बा गांव के हरविंदर सिंह के परिवार के पास दस एकड़ खेत हैं, जो पूरी तरह खराब हो चुके हैं। उनकी जमीन घग्घर नदी से सटी हुई है, जिसके चलते उन्हें कभी पानी की कमी महसूस नहीं हुई। उन्होंने पूरे दस एकड़ पनीरी (धान) की रोपाई की थी। 

वह बताते हैं कि उनके यहां जून के पहले सप्ताह में ही रोपाई हो चुकी थी, इसलिए उनकी फसल लगभग दो फुट हो चुकी थी। नौ जुलाई को बारिश का सिलसिला शुरू हुआ और दस जुलाई को उनके खेत से लगभग 100 मीटर की दूरी पर बांध टूट गया और सारा पानी उनके खेतों में आ गया। 

फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। करीब चार दिन बाद पानी उतर गया। सोच रहे थे कि दोबारा पनीरी लगाई जाए, लेकिन टूटे हुए बांध से एक बार फिर से पानी आ गया। 

इस बार पानी के साथ रेत भी खेतों में बिछ गई और फसल के साथ-साथ खेत भी तबाह हो  गया। जसविंदर के चाचा  जसवंत राम  कहते हैं कि खेत में रेत जम गई है, इसलिए अब तो रबी के सीजन में गेहूं भी बोने की स्थिति में नहीं लग रहे हैं। एक एकड़ से रेत हटाने पर लगभग 50 हजार रुपए का खर्च आएगा। 

दरअसल ग्रामीण बांध की व्यवस्था को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि बांध की मरम्मत कभी नहीं हुई, जिसकारण यह घटना घटी। दड़बा की सरपंच के पति तरसेम कुमार कहते हैं कि उनके गांव में लगभग 500 बीघा जमीन पूरी तरह खराब हो गई है। 

तरसेम कहते हैं कि उनकी उम्र 44 साल हो गई है, लेकिन आज तक बाढ़ का पानी घघ्घर नदी के इस बांध को पार नहीं कर पाया, लेकिन इस बार बांध दो जगह से टूट गया। गांव के लोग कई बार पंजाब सरकार से बांध की मरम्मत करने की मांग कर चुके थे, लेकिन सरकार ने अनदेखी की, जिसका खामियाजा आज लोगों को भुगतना पड़ रहा है। 

तरसेम कुमार कहते हैं कि गांव की 500 एकड़ जमीन पूरी तरह से खराब हो गई है। यहां रेत जम चुकी है, जिसे फिर से खेत बनाने में किसानों को 50 से 60 हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च करने पड़ेंगे। इसके बाद भी यह कह पाना मुश्किल है कि खेत की उपजाऊ शक्ति कितनी रह पाएगी। 

अजमेर कौर अपने खेतों को ताकते हुए बताती हैं कि जब तक बारिश नहीं हुई थी, तब तक उनके खेतों में घुटनों के बराबर तक पनीरी (धान की फसल) खड़ी हो गई थी, लेकिन बारिश के बाद जब वह यहां पहुंची तो खेत में पनीरी नहीं थी और लगभग उसी घुटने के बराबर खेतों में मिट्टी जम चुकी थी। 

रुंधे गले से अजमेर कौर बताती हैं कि अब पता नहीं, कब उनके खेत ठीक होंगे और वह दोबारा इन खेतों में फसल  लगा पाएंगी।

गुरुध्यान सिंह का नुकसान बहुत ज्यादा है। वह गांव हरफला के हैं, लेकिन उन्होंने दड़बा में 50 एकड़ ठेके पर लिए हुए थे। इसमें से कुछ हिस्सा जहां रेत नहीं जमी है। वहां वह तीसरी बार धान लगा रहे हैं, क्योंकि जब पहली बार फसल खराब हुई तो उन्होंने तुरंत पौध का इंतजाम किया और धान की रोपाई शुरू कर दी, लेकिन दो दिन बाद ही फिर से बाढ़ का पानी खेतों में घुसा और धान की फसल खराब हो गई। अब वह तीसरी बार धान लगा रहे हैं, लेकिन अभी भी उन्हें इस बात का डर है कि एक बार फिर से बाढ़ आ गई तो उनकी मेहनत पर पूरी तरह पानी फिर जाएगा। 

खेती के साथ-साथ इस गांव को और भी नुकसान हुआ है। गांव का लगभग 60 फीसदी आबादी भूमिहीन है, लेकिन बाढ़ की वजह से उनके घरों को भी नुकसान पहुंचा है। घरों में दरारें आ गई हैं। ट्यूबवेल में बाढ़ का पानी घुस गया है, इसलिए गांव में पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया है। 

गांव में 110 घर हैं। तरसेम बताते हैं कि 40 से 50 घरों में दरारें आ गई हैं। इनमें ज्यादातर गरीब परिवार से हैं। 

गुरदीप कौर के एक कमरे की छत गिर गई है। उन्होंने फिलहाल अपने बचाव के लिए तिरपाल डाली हुई है। गुरदीप कहती हैं कि यदि अब तेज बारिश हो जाएं तो उनका बाकी बचे घर पर भी नुकसान हो सकता है। अभी प्रशासन की ओर से कोई राहत नहीं पहुंचाई गई है। स्वयंसेवी संगठन या संस्थाएं उन्हें पीने का साफ पानी दे रहे हैं। 

डाउन टू अर्थ की टीम मौके पर पहुंची,  उस दिन तक बांध को टूटे हुए 20 दिन से अधिक हो चुके थे। प्रशासन द्वारा नियुक्त ठेकेदार काम तो कर रहा था लेकिन काम इतनी धीमी गति से चल रहा था कि रोजाना ग्रामीण वहां आकर हालात देखते थे। उन्हें इस बात का डर था कि एक बार फिर टूटे हुए बांध की तरफ से पानी आया तो उनकी रही-सही जमीन, फसल, घर, चारा भी समाप्त हो जाएगा।

लोगों की चिंता को देखते हुए भारतीय किसान यूनियन (भगत सिंह) ने एक बैठक बुलाई और निर्णय लिया कि बांध को बांधने का काम किसान अपने हाथ में लेंगे। किसानों ने तय किया कि वे अपने अपने गांव से मिट्टी से भरे बोरे ट्रैक्टरों से लाएंगे और टूटे हुए हिस्से पर बिछा देंगे। यह काम 3 दिन तक चला और आखिरकार जो काम पर शासन नहीं कर पाया था किसानों ने मिलकर वह काम कर दिखाया। 

 सिंहवाला गांव के प्रेम सिंह और हरवंश सिंह ने पंजाब के गांव दड़बा में 21 किला जमीन खरीद कर त्रिलोचन सिंह को जमीन ठेके पर दी थी। वे 27 हजार रुपये प्रति बीघे खर्च कर चुके थे। दो फुट खड़ी हो चुकी थी। लेकिन 10 जुलाई को आई बाढ़ ने बर्बाद कर दिया। खेत में मिट्टी जम चुकी है। सरकार ने मुआवजा दिया तो ठेकेदार को दे देंगे। क्योंकि नुकसान तो ठेकेदार को हुआ है। यूरिया भी लगा चुके थे। एक सार करने पर कम से कम 50 हजार रुपए का खर्च आएगा। 

भाकियू (भगत सिंह) के प्रवक्ता तेजवीर सिंह कहते हैं कि बेशक इस साल बारिश बहुत ज्यादा हुई, लेकिन घग्घर से बांध टूटने की वजह से जो नुकसान हुआ, वह पूरी तरह से प्रशासन की विफलता है। अव्वल तो हर साल मॉनसून से पहले बांध की मरम्मत होनी चाहिए, जो सालों से नहीं हुई। इस बार जब पहली बार बांध टूटा तो प्रशासन तुरंत मरम्मत कर देता तो लोगों का इतना नुकसान नहीं होता। 

सिंह कहते हैं कि तीन बार टूटे हुए बांध से पानी आया, लोग सरकार से मांग करते रहे कि बांध की मरम्मत कराई जाए, लेकिन 20 दिन बाद तक काम नहीं शुरू हुआ। तब किसान यूनियन के आह्वान पर किसानों ने ही बांध को बांधने का काम शुरू केिया। जो लगभग पूरा होने वाला है।

इस क्षेत्र के किसानों के लिए धान का नुकसान का यह दूसरा साल है। पिछले साल धान के बौनेपन की वजह से भी किसानों को नुकसान हुआ था। दड़बा के पूर्व सरपंच जसपाल सिंह कहते हैं कि उनके पास सात एकड़ जमीन है। पिछले साल धान बौना रह गया था और 20 से 25 प्रतिशत का नुकसान हुआ था और इस बार तो पूरा ही नुकसान हो चुका है।

उन्होंने धान की नर्सरी, रोपाई आदि पर लगभग 60 हजार रुपए खर्च किए थे। धान बिकने के बाद जो भी रकम मिलती, उससे गेहूं की बुआई पर लगा देते, लेकिन अब वह गेहूं की बुआई कैसे करेंगे, यही चिंता उन्हें सता रही है।