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भारत में बाढ़ के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है पटना, जानिए देश के किन अन्य जिलों को है सबसे ज्यादा खतरा

देश में बाढ़ के प्रति 30 सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों में से 17 गंगा बेसिन में स्थित हैं। वहीं इनमें से तीन जिले ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं

Lalit Maurya

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि देश में बिहार का पटना जिला बाढ़ के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है। इसके बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और फिर महाराष्ट्र के ठाणे में बाढ़ से सबसे ज्यादा खतरा है।

गौरतलब है कि देश में जिलों के आधार पर बाढ़ की संवेदनशीलता को रेखांकित करते हुए इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), दिल्ली, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पुणे और आईआईटी, रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक नया जिला-स्तरीय बाढ़ गंभीरता सूचकांक (डीएफएसआई) विकसित किया है।

यह सूचकांक देश में प्रभावितों की संख्या, बाढ़ के विस्तार और उसकी अवधि के आधार पर बाढ़ की ऐतिहासिक गंभीरता को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसमें 1967 से 2023 के बीच आई बाढ़ की घटनाओं को आधार बनाया गया है। इसके बारे में विस्तृत अध्ययन हाल ही में प्रकाशित हुआ है।

इस सूचकांक के मुताबिक बाढ़ की गंभीरता के मामले में पटना (बिहार) सबसे अधिक प्रभावित जिला बनकर उभरा है। इसके बाद मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) और ठाणे (महाराष्ट्र) दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। इनके बाद बाढ़ के प्रति सबसे संवेदनशील जिलों में उत्तर 24 परगना (पश्चिम बंगाल), गुंटूर (आंध्र प्रदेश), नागपुर (महाराष्ट्र), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), बलिया (उत्तर प्रदेश), पूर्वी चंपारण (बिहार), और पूर्वी मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल) को शामिल किया गया है।

वहीं मुजफ्फरनगर (बिहार) को इस सूचकांक में 11वें पायदान पर जगह दी गई है। साथ ही लखीमपुर (असम), कोटा (राजस्थान), औरंगाबाद (महाराष्ट्र), मालदा (पश्चिम बंगाल), राजकोट (गुजरात), प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), औरंगाबाद (बिहार), बहराईच (उत्तर प्रदेश) को भी सबसे प्रभावित जिलों में शामिल किया गया है। इस सूचकांक में जहां अहमदाबाद (गुजरात) को 21वें स्थान पर रखा गया है। वहीं जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), डिब्रूगढ़ (असम), आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश), चमोली (उत्तराखंड), पश्चिम चंपारण (बिहार), अमरावती (महाराष्ट्र), मेदिनीपुर पश्चिम (पश्चिम बंगाल), और समस्तीपुर (बिहार), 30 सबसे संवेदनशील जिलों की सूची में शामिल हैं। 

56 वर्षों में असम ने बाढ़ की 800 से ज्यादा घटनाओं का किया है सामना

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि देश के सभी नदी घाटियों में से गंगा बेसिन में बसी आबादी सबसे अधिक है। ऐसे में वहां बड़ी आबादी पर भीषण बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। आंकड़ों की मानें तो देश में बाढ़ के प्रति 30 सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों में से 17 गंगा बेसिन में स्थित हैं। वहीं इनमें से तीन जिले ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं।

उत्तराखंड के चमोली को लेकर शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि इस जिले को बार-बार आने वाली बाढ़ का सामना तो नहीं करना पड़ता, लेकिन यहां बाढ़ की कई विनाशकारी घटनाएं घट चुकी हैं, यही वजह है कि इसे शोधकर्ताओं ने 30 सबसे प्रभावित जिलों में 26वें स्थान पर रखा है।

आंकड़ों के मुतबिक 1975 से 2015 के बीच आई बाढ़ ने अब तक 113,390 जिंदगियों को निगल लिया है। मतलब की इस दौरान हर साल औसतन 2,765 लोगों ने बाढ़ की वजह से अपनी जान गंवाई है।

रिसर्च से यह भी पता चला है कि 1967 के बाद से पिछले 56 वर्षों में असम में बाढ़ की सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई है। इस दौरान असम को बाढ़ की 800 से ज्यादा घटनाओं का सामना करना पड़ा है। मतलब की असम में औसतन हर साल बाढ़ की 14 घटनाएं सामने आई हैं।

इसके बाद केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश और बिहार को बाढ़ की सबसे ज्यादा घटनाओं से जूझना पड़ा है। केरल के तिरुवनंतपुरम में बाढ़ किस कदर हावी रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 56 वर्षों में वहां बाढ़ की 231 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं।

यदि बाढ़ की घटनाओं का जिलावार विश्लेषण देखें तो 1967 से 2023 के बीच तिरुवनंतपुरम (केरल) में बाढ़ की 231 से ज्यादा घटनाएं सामने आई है। मतलब की यह जिला हर साल बाढ़ की चार से पांच घटनाओं का सामना करता है।

इसी तरह लखीमपुर, धेमाजी, कामरूप और नागांव में भी बाढ़ का प्रकोप सबसे ज्यादा रहा है। जहां बाढ़ की 178 या उससे अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं। मतलब की इन जिलों में हर साल बाढ़ की औसतन तीन घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा 28 जिलों में पिछले 56 वर्षों के दौरान बाढ़ की 113 या उससे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं।

बदलती जलवायु के साथ बढ़ रहा है खतरा

इन जिलों में तिरुवनंतपुरम, लखीमपुर, धेमाजी, कामरूप, नागांव, मुंबई, बारपेटा, सोनितपुर, नागपुर, दर्रांग, डिब्रूगढ़, कछार, वायनाड, गोलपारा, बक्सा, पुणे, जोरहाट, मोरीगांव, नलबाड़ी, गोलाघाट, शिवसागर, धुबरी, वारंगल ग्रामीण, हमीरपुर, इडुक्की, अलाप्पुझा, कोझिकोड और शिमला शामिल हैं। वहीं देश के 121 जिले ऐसे हैं, जहां बाढ़ की 56 घटनाएं सामने आई है। मतलब की यह जिले हर साल औसतन बाढ़ की एक न एक घटना का सामना करते हैं।

देखा जाए तो जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं, इन चरम मौसमी आपदाओं का कहर बढ़ रहा है। भारत में भी बदलती जलवायु और बढ़ता तापमान बाढ़ पर असर डाल रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसकी वजह से न केवल बाढ़ के आने का जोखिम बढ़ रहा है, साथ ही स्थानीय तौर पर आकस्मिक रूप से आने वाली बाढ़ की आशंका भी प्रबल हो रही है।

भारत में बारिश की बात करें तो देश की 75 फीसदी बारिश मानसूनी महीनों में जून से सितम्बर के बीच होती है। लेकिन जलवायु में आता बदलाव मानसून को भी प्रभावित कर रहा है, जिसकी वजह से कहीं सूखा तो कहीं भारी बारिश हो रही है।

हालांकि जिस तरह से इनके प्रबंधन को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं, उससे देश में इनके कारण होने वाली मौतों में गिरावट जरूर आई है। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे भविष्य में बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव हो सकते हैं। नतीजन स्थानीय तौर पर भारी बारिश और बाढ़ की घटनाओं की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

इतना ही नहीं गर्म होते मौसम में चक्रवातों की संख्या बढ़ जाएगी। नतीजन तटीय इलाकों और आसपास के क्षेत्रों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ की घटनाएं हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी आशंका जताई है कि बाढ़ उन नए क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना सकती है, जहां इसका खतरा बेहद कम है।

ऐसे में न केवल बाढ़ से निपटने और उससे बचाव पर ध्यान देना जरूरी है साथ ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उत्सर्जन की रोकथाम भी महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन एक ऐसी सच्चाई बन चुका है जिसे हम चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते। ऐसे में न केवल अनुकूलन बल्कि इसके शमन से जुड़े प्रयासों पर भी जोर देना जरूरी है।