आपदा

बाढ़ की नहीं सूखे के लिए योजनाएं बनाने के कारण राजस्थान में बाढ़ की स्थिति भयावह

राजस्थान में बाढ़ से निपटने के इंतजामों को लेकर डाउन टू अर्थ ने राजस्थान पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के पूर्व मेंबर सचिव डीएन पांडे से बातचीत की

Anil Ashwani Sharma

एक बार फिर से राजस्थान में बारिश ने कहर ढाना शुरू किया है। इस बार भी उन्हीं इलाकों में उसका कहर जारी है जिन इलाकों में पिछले डेढ़ दशक हो रहीहैं। राज्य की सरकारें जो योजनाएं बना रही हैं, आज भी सूखे को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं ऐसे में सरकार के पास जब तब आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। इस संबंध में डाउन टू अर्थ ने राजस्थान पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के पूर्व मेंबर सचिव डीएन पांडे से बातचीत की

प्रश्न: राजस्थान में बारिश का पैटर्न क्या अब बदल गया है?

उत्तर: राजस्थान में जहां एक सामान बारिश हो रही है, वहां नंबर ऑफ बरिश के दिन कम हो गए हैं और जहां कम बारिश हो रही है वहां भी नंबर ऑफ बारिश के दिन कम हो गए हैं। यह राजस्थान का ओवर ऑल पिक्चर है। राजस्थान के अंदर भी कई स्तर पर बातचीत हो रही है। नदी बेसिन के अध्ययन के आधार पर अध्ययन कर्ताओं को कहना है कि राज्य के कई इलाकों में बारिश बढ़ेगी। यह भी देखने वाली बात है कि आपकी जमीन मौसम के बदलाव को कैसे लेती है।   

प्रश्न: क्या अब राजस्थान में तापमान और बढ़ेगा?

उत्तर: यह सौ फीसदी सही है कि अब राजस्थान का तापमान बढ़ रहा है और समर के समय तापमान बढ़ गया है, यह भी एक कारण है कि राजस्थान में तापमान में वृद्धि के कारण भी अधिक बारिश का कारण संभव है। यही नहीं बारिश कि शिफ्टींग भी देखने को मिल रही है। जल्दी हो रही बारिश यानी अगस्त से पहले ही अधिक बारिश हो रही है। जब गर्मी में जमीन अधिक गर्म होती है और जमीन गर्मी को पकड़ कर रखती है। गर्मी और बारिश दोनों का बढ़ जाना एक सीमा तक कह सकते हैं कि यह सब कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन के कारण ही संभव हो रहा है। अकेले राजस्थान में ही नहीं देश के अलग अलग भागों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अलग-अलग है। जलवायु परिवर्तन का आधार स्थानीय स्तर पर भी देखने को मिलता है। क्यों कि यह देखना होता है कि उस जगह विशेष पर कितनी बारिश होती है और वहां कितना पेड़-पौधे हैं या कितना पानी, जमीन कैसी है। हम राजस्थान को देश के अन्य भागों से तुलना  नहीं कर सकते हैं लेकिन यह सही है हर जगह जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हो रहा है। और यह प्रभाव उस जगह की प्रकृति के हिसाब से हो रहा है। राजस्थान का मतलब है वहां स्थानीय स्तर पर भी प्रभाव पड़ रहा है। यह सही है कि आपका बारिश का बहुत बड़ा हिस्सा समुद्र से आता है। लेकिन बहुत कुछ बारिश स्थानीय पेड़-पौधों से भी आता है।

प्रश्न: क्या राज्य का एक्शन प्लान राज्य की इलाकों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं?

उत्तर: राज्य का एक्शन प्लान राज्य के इलाकों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं। भविष्य में स्थानीय लोगों की क्या जरूरत होगी, इसका भी ख्याल नहीं रखा गया है। जल संचयन प्रणाली को उस स्थान की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया है।  जो पहले हो चुका है और अब यह हो रहा है। हालांकि हम इस बिना पर किसी की बुराई करना संभव है कि नहीं यह मैं नहीं कह सकता हूं। यदि हम अपने जलवायु को तेजी से बदलते देखेंगे तो क्या सरकारी योजनाओं में भी तेजी से बदलाव की जरूरत है क्या? यदि भविष्य बदल रहा है तो वर्तमान को बलदने की जरूरत है।

प्रश्न: तेजी से बदलते जलवायु परिर्वन का असर राजस्थान पर क्या पड़ेगा?

उत्तर: जलवायु परिवर्तन का असर राजस्थान पर क्या पड़ेगा, अभी तक इस विषय पर हिन्दुस्तान में बहुत अधिक अध्ययन हुए हैं, लेकिन वे स्थानीय नहीं है। इस संबंध में हम इतना ही कह सकते हैं जैसे मध्य प्रदेश में मोटा-मोटी तो ज्ञात हो सकता है लेकिन सतना जिले में क्या असर पड़ेगा, मुझे नहीं लगता इस प्रकार की कोई अध्ययन हुआ है। तापमान कितना बढ़ेगा, रेन फॉल में कितना प्लस और माइनस होगा, ताममान तो बढ़ेगा ही तो मानसून कितना प्लस होगा और कितना माइनस। जलवायु परिवर्तन के साथ जो लोकल चैंज हो रहे हैं जैसे  लैंड यूज चेंज हो रहा है। शहरीकरण हो रहा इन दोनों का सामूहिक रूप से कितना असर होगा इसे देखना होगा। मान लिजिए किसी क्षेत्र में रैन फॉल बढ़ रहा है और शहरीकरण भी बढ़ रहा है। तो उसमें यदि शहरीकरण के बढ़ने से जमीन अधिक उपयोग में लाई जाएगी। इसके लिए फिर जमीन कहीं न कहीं से तो निकलेगी ही या तो खेती से या जंगल से। चूंकि यदि मानूसन बेहतर हुआ है तो हो सकता है उत्पादकता थोडी बढ़े। तो जितनी जमीन आपकी शहरीकरण के कारण बर्बाद हुई, उसके बराबर लाभ मिल सकता है। और यदि रेन फॉल कम हो गया तो उत्पादकता घट गई और फिर आपको और जमीन लेनी पड़ेगी, इस हानि को पूरा करने के लिए।

प्रश्न:  क्या राजस्थान में मानसून पहले के मुकाबले बेहतर हुआ है?

उत्तर: जहां तक मेरी समझ है राजस्थान में मानसून थोड़ा बेहतर हुआ है। लेकिन वह बेहतरी आज भी वह प्रेसराइजरी नोन नहीं है। वह कितना बेहतर हुआ उसे जानना संभव नहीं हुआ। कितना बेहतर हुआ अब तक जानकारी नहीं हुई है। लेकिन एक चीज पक्की है, जलवायु परिवर्तन का असर है। अगर जलवायु परिवर्तन से उपजे खतरे की बात करें तो अभी राजस्थान सबसे अधिक संवेदनशील राज्यों में से है। आज से 20 साल बाद हो या 50 साल बाद, हालात यही रहेंगे। आज का अध्ययन तो यह बात कहता है।

प्रश्न: क्या इस संबंध में कोई और अध्ययन हुआ है?

उत्तर: एक अध्यययन जंगल पर यदि आप देखें तो ग्रिड बाई ग्रिड पर इंडियन इंस्टीटूयट ऑफ साइंस ने कुछ अध्ययन किया है। उन्होंने कुछ ग्रिड लिए और हिन्दुस्तान को पूरे ग्रिड में बांट दिया और किस ग्रिड में क्या चेंज आएगा तो अध्ययन से यह बात निकली है कि बड़ा चेंज आया है। तो इस मामले में राजस्थान निश्चत तौरपर प्रभिवित हुआ है। राजस्थान पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ने के लिए जो काम करने चाहिए वह उसे काम करना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के मामले में राजस्थान बहुत आगे है।

प्रश्न:  क्या बारिश की विभिषिका बढ़ने का करण राज्य सरकार की वे योजनाएं जो कि सूखे को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं?

उत्तर: राजस्थान में अधिकतर योजनाएं सूखे को लेकर नहीं बनाई गई है बलिक वाटर डेफिसिट को लेकर योजनाएं बनाई गई  हैं। इसकी शुरूआत सिंधु नदी में पानी की कमी से शुरू होती है और तब का यह क्लाइमेट चेंज प्राकृतिक था, अब की तरह मानवीकृत नहीं था। आज का क्लाइमेट चेंज पूरी तरह से मानव द्वारा तैयार किया गया है। यह 35 हजार साल पहले की बात है। राजस्थान की दस से बारह फीसदी जमीन आती है, यह देश का सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन जब पानी की बात है तो राज्य में केवल एक फीसदी पानी है। उदाहरण के लिए जब आपकी पानी की बोतल में एक बटे दस पानी रहेगा तो ऐसी हालत में आप क्या करेंगे आप पानी के हिसाब से योजना बनाएंगे। यदि आपकी बोतल में यह राशनिंग कर दी जाए कि आपकी बोतल में प्रतिवर्ष एक बटे दस पानी डाला जाएगा ऐसी हालत में आप क्या करेंगे? आप इसी पानी को पूरे साल भर अपने नहाने खाना की योजना बनाएंगे। आप अपनी सारी योजनाएं उस पानी को ध्यान में रखकर बनाएंगे। हमारे पास पूरे देश के पानी का मात्र एक फीसदी है और जमीन पूरे देश की जमीन का दस फीसदी है। यदि आप राजस्थान के पिछले45 सालों का इतिहास देखते हैं तो जैसे-जैसे मानसून घटा या बढा उसी रफ्तार से जल संचयन की प्रक्रियाएं तेज हुईं। राज्य के लगभग 37 हजार गांवों में तकरीबन सभी गांवों में तालाब और शहरों में झीलें हैं। यह सब क्या है, यह वास्तव में मानसून के घटने बढ़ेने का परिणाम है।

प्रश्न: देश में मानसून तेजी से इरैटिक हो रहा है क्या?

पूरे देश में मानसून इरैटिक होगा, आज तक की साइंस तो यही कह रही है। दूसरी बात साइंस कह रही है उस इरैटिक मानसून का असर कृषि पर,बायोडायवर्सिटी पर, शहरीकरण पर  बड़ा गंभीर असर पड़ने वाला है। इस मामले में भारतीय समाज में स्वीकार्यकता है। इस संबंध में हमें बड़ी संख्या में और वृहद स्तर पर योजनाओं को बनाना होगा। इस संबंध में हमारा देश कई योजनाओं को स्वीकार कर रहा है। मेरा यह मानना है हालांकि यह मेरी राय नहीं है यह तथ्य के आधार पर कह रहा हूं।