समुद्र विज्ञान के विशेषज्ञों ने क्षेत्र में उपग्रह की सतही हवाओं को देखने के बाद सुमात्रा के पास हिंद महासागर में एक नए प्रकार के चक्रवात का खुलासा किया है। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान के विशेषज्ञों की अगुवाई में किया गया है।
हिंद महासागर डिपोल को बढ़ाने वाले तंत्र के लिए विशेषज्ञों की खोज ने दक्षिण-पूर्व उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर (एसईटीआईओ) में बनने वाले नए प्रकार के वायुमंडलीय उष्णकटिबंधीय चक्रवात की खोज की है जिसे वे एसईटीआईओ चक्रवात कहते हैं।
हिंद महासागर डिपोल (आईओडी) उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर से जुड़ा है जो वातावरण और महासागर के संपर्क से विभिन्न देशों की जलवायु और वर्षा में होने वाले बदलाव पर गंभीर असर डाल सकता है।
1988 से 2022 की अवधि के आंकड़ों के मुताबिक बोरियल गर्मी और शरद ऋतु के मौसम में हर साल सामान्य रूप से पांच से नौ एसईटीआईओ चक्रवात बनते हैं। इसके विपरीत, आईओडी के चरणों के रूप में पहचान किए गए सालों में केवल एक या दो चक्रवात की घटनाएं होती हैं।
फ्लिंडर्स के डॉ. अंकित कवि और उनकी पीएच.डी. पर्यवेक्षक एसोसिएट प्रोफेसर जोचेन केम्फ का कहना है कि नए चक्रवातों में सुमात्रा पश्चिमी तट के साथ पश्चिमी भूमध्यरेखीय हवा के झोंके और उत्तर-पश्चिमी हवाएं भी शामिल हैं।
उन्होंने पाया कि एसईटीआईओ चक्रवात छोटे समय की मौसम की घटनाएं हैं जो ऑस्ट्रेलिया की सर्दियों, वसंत के दौरान अक्सर विकसित होती हैं और क्षेत्र में एक गर्म सतह महासागर को बनाए रखने के लिए काम करती हैं।
एसोसिएट प्रोफेसर कैम्फ कहते हैं कि कुछ वर्षों में नाटकीय बदलाव होते हैं जब एसईटीआईओ चक्रवात विकसित करने में असफल होते हैं और परिवेशी हवाएं एक विशाल क्षेत्र में ठंडे समुद्री जल की उपस्थिति को बढ़ाती हैं, जो हवाओं और वर्षा पैटर्न दोनों में गड़बड़ी के लिए जिम्मेवार हैं।
प्रकृति संबंधी विज्ञान में, तथाकथित बढ़ाने या ट्रिगर करने वाली प्रक्रियाओं की पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जैसे कि एसईटीआईओ चक्रवात, जो इसे उतपन्न करने वाले कारणों को इससे होने वाले प्रभाव से जोड़ते हैं।
शोधकर्ता ने कहा यह एक अनोखी और नई खोज है जो आईओडी के कामकाज में नई रोशनी डालती है।
एसोसिएट प्रोफेसर कैम्फ ने कहा उन्हें उम्मीद हैं कि यह काम आईओडी के पूर्वानुमान में सुधार के लिए एसईटीआईओ चक्रवातों के गठन की जांच के लिए भविष्य के शोध को आगे बढ़ाएगा। यह अध्ययन जर्नल ऑफ साउदर्न हेमीस्फेयर अर्थ सिस्टम्स साइंस में प्रकाशित हुआ है।