आपदा

नए मॉडल से बाढ़ के खतरों का होगा सटीक मूल्यांकन, इससे निपटने में मिलेगी मदद

शहरी विकास किस तरह हो रहा है, यह बदलाव के पैटर्न से जुड़ा हुआ है, जलवायु परिवर्तन के कारण शहरों में बाढ़ के खतरों में वृद्धि हो रही है

Dayanidhi

नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक भूमि में बदलाव नामक मॉडल बनाया है जो शहरी विकास, बढ़ती बाढ़ और इससे निपटने में मदद करेगा। नया मॉडल शहरी योजनाकारों, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधकों और अन्य स्थानीय सरकारी हितधारकों के लिए खतरों का सटीक अनुमान लगाकर मूल्यांकन कर सकता है।

एनसी राज्य के सेंटर फॉर जियोस्पेशियल एनालिटिक्स के शोधकर्ता जॉर्जिना सांचेज कहते हैं कि, पारंपरिक तरीके से खतरों के मूल्यांकन में आम तौर पर खतरे वाले इलाकों की पहचान करने के लिए मौजूदा विकास या जनसंख्या वितरण पर बाढ़ को शामिल करना होता है।

शोधकर्ता सांचेज के मुताबिक, शहरी निवासी और योजनाकार जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते बाढ़ के खतरों के बारे में जागरूक हो रहे हैं, साथ ही इससे निपटने के लिए तैयार हैं। मॉडल के लिए हमारे सामूहिक अनुकूलन प्रयासों पर विचार करना महत्वपूर्ण है, जैसे इमारतों को ऊंचा करना या अधिक खतरे वाले इलाकों से दूर जाना। उन्होंने कहा, हमारा मॉडल गहन जानकारी प्रदान करता है, हमें अनुकूली क्षमताओं को समझने और सीमित संसाधनों वाले समुदायों की पहचान करने में मदद करता है।

मॉडल, फ़्यूचर्स 3.0 जो कि भविष्य में शहरी-क्षेत्रीय पर्यावरण सिमुलेशन है, एक खुला-स्रोत, मापने योग्य मॉडल है जिसमें बाढ़ के खतरों के तीन चीजों को शामिल किया गया हैं: जोखिम, जो शहरी विकास पैटर्न से संबंधित है, खतरा, जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ में वृद्धि शामिल है, क्षेत्र में रहने वाले लोगों की अनुकूली प्रतिक्रिया। मॉडल में जलवायु के आंकड़ों के साथ-साथ जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और बाढ़ से हुए नुकसान के आंकड़े भी शामिल हैं।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस शोध में, शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने परीक्षण के लिए ग्रेटर चार्ल्सटन (एस.सी.) महानगरीय क्षेत्र का उपयोग किया। चार्ल्सटन एक तेजी से विकसित हो रहा शहरी क्षेत्र है जो अटलांटिक महासागर और कई नदियों की सीमा से लगे निचले क्षेत्र में स्थित है।

2020 बेसलाइन और विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेप और प्रतिक्रिया परिदृश्यों के मुकाबले 2035 से 2050 के लिए भूमि में होने वाले बदलावों के अनुमानों की तुलना करके, उन्होंने होने वाले जनसांख्यिकी और जनसंख्या बदलाव की कल्पना की और इस बात की पहचान की, कि किन परिदृश्यों के कारण भविष्य में बाढ़ से सबसे कम खतरे हुए, साथ ही पूरे परिदृश्य में जहां बाढ़ का खतरा सबसे अधिक रहा।

सांचेज ने कहा कि, अध्ययन खतरे और खतरे के मूल्यांकन के लिए सटीक जनसांख्यिकीय बदलाव और शहरी विस्तार के साथ-साथ मानव अनुकूली प्रतिक्रिया को शामिल करने के महत्व को उजागर करता है। सभी निवासियों या समुदायों के पास सुरक्षात्मक उपाय करने के साधन या क्षमता नहीं होगी। क्या-अगर' परिदृश्यों की कल्पना करने से हमें प्रभाव कहां और कब पड़ेगा, इस पर विचार करने और यह समझने में मदद मिलती है कि कौन और कैसे प्रभावित हो रहा है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, उनका अगला कदम संभावित हस्तक्षेपों पर चर्चा करने के लिए समुदायों के साथ जुड़ना है। वे क्षेत्रीय स्तर पर भी अपने अध्ययन का विस्तार कर रहे हैं।

सांचेज कहते हैं, परिदृश्य-आधारित मॉडलिंग के माध्यम से, हम ऐसे प्रश्नों का पता लगाते हैं जैसे कि, समुदाय नुकसान होने पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे, किसके पास उससे निपटने के साधन हैं और सुरक्षा के लिए सीमित संसाधनों वाले लोगों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

सांचेज ने आगे कहा कि, इसके अतिरिक्त, ये परिदृश्य हमें हमारे वर्तमान विकास विकल्पों के लंबे समय के परिणामों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं। अगर हम इस बात का अनुमान लगाते हैं कि, अब से 30 साल बाद एक नए विकसित समुदाय को पीछे हटने के निर्णय का सामना करना पड़ सकता है, तो अब उस क्षेत्र की रक्षा के बारे में क्यों न सोचें?