आपदा

मसूरी और उसके आसपास के इलाकों पर मंडरा रहा है बड़े भूस्खलन का खतरा

शोध के अनुसार मसूरी के आसपास का 15 फीसदी हिस्सा भूस्खलन की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है, जबकि 56 फीसदी हिस्से में बहुत बड़े स्तर पर भूस्खलन आने की आशंका है

Lalit Maurya

हाल ही में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्लयूआईएचजी) के वैज्ञानिकों द्वारा किये शोध से पता चला है कि मसूरी और उसके आसपास का इलाका भूस्खलन को लेकर अतिसंवेदनशील है| इस शोध में वैज्ञानिकों ने निचले हिमालयी क्षेत्र में मसूरी और उसके आसपास के 84 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का अध्ययन किया है| जिससे पता चला है कि इस क्षेत्र का 15 फीसदी हिस्सा भूस्खलन को लेकर अतिसंवेदनशील है।

उत्तराखंड में बसा मसूरी एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहां पहले भी भूस्खलन की कई घटनाएं हो चुकी हैं| जिसके लिए वैज्ञानिक इस इलाके में अनियंत्रित तरीके से हो रहे विकास को जिम्मेदार मानते हैं। वैज्ञानिकों ने इस इलाके में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को देखते हुए मसूरी और उसके आसपास के इलाकों का  मानचित्रण किया है, जिससे इस क्षेत्र में भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता को समझा जा सके।

शोधकर्ताओं के अनुसार जो क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अतिसंवेदनशील है उसका एक बड़ा हिस्सा भाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्प्टी फॉल, खट्टापानी, लाइब्रेरी रोड, गलोगीधार और हाथीपांव जैसे बसावट वाले क्षेत्रों के अंतर्गत आता है| यह क्षेत्र 60 डिग्री से अधिक ढलान वाला है| जिसमें अत्यधिक मात्रा में खंडित क्रोल चूना पत्थर  है।

56 फीसदी हिस्से पर हो सकता है बहुत बड़े स्तर पर भूस्खलन

यह शोध जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित हुआ है| जिसके अनुसार इस क्षेत्र का 29 फीसदी हिस्से में हल्का भूस्खलन और 56 फीसदी हिस्से में बहुत बड़े स्तर पर भूस्खलन आने की संभावना है। गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र के मानचित्रण और अध्ययन के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) और उपग्रह से प्राप्त हाई-रिज़ॉल्यूशन चित्रों का उपयोग किया है|

वैज्ञानिकों के अनुसार अध्ययन करते समय क्षेत्र में भूस्खलन के विभिन्न संभावित कारकों जैसे लिथोलॉजी, लैंड्यूज-लैंडकवर (एलयूएलसी), ढलान, वक्रता, ऊंचाई, सड़क-कटान, जल निकासी और लाइनामेंट आदि का भी अध्ययन किया गया है| साथ ही शोधकर्ताओं ने भूस्खलन के कारणों के एक विशेष वर्ग का पता लगाने के लिए लैंडस्लाइड ऑक्युवेशन फेवरोबिलिटी स्कोर (एलओएफएस) के आंकड़े भी एकत्र किए हैं| साथ ही जीआईएस प्लेटफॉर्म में लैंडस्लाइड सुसाइड इंडेक्स (एलएसआई) बनाने के लिए भूस्खलन के प्रत्येक कारक और उसके प्रभावों की अलग अलग गणना भी की है।

इस मानचित्र की सटीकता को सक्सेस रेट कर्व (एसआरसी) और प्रिडिक्शन रेट कर्व (पीआरसी) का उपयोग करके सत्यापित किया गया है| जो एसआरसी के लिए एरिया अंडर कर्व (एयूसी) को 0.75 के रूप में और पीआरसी को 0.70 के रूप में दिखाता है। यह डेटा भूस्खलन वाले विभिन्न तरह के अतिसंवेदनशील क्षेत्रों और भूस्खलन की घटना वाले क्षेत्रों के बीच परस्पर संबंधों को दर्शाता है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह के अध्ययन से भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर आने वाले भूस्खलन और उसके जोखिमों की गणना की जा सकती है| साथ ही इससे पर्वतीय इलाकों की संवेदनशीलता का मूल्यांकन करने में काफी मदद मिल सकती है।