आपदा

हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन, विकास कार्यों पर उठी उंगुलियां

हिमाचल प्रदेश में बढ़ती भूस्खलन की घटनाओं को देखते हुए प्रदेश के राज्यपाल ने एक उच्चस्तरीय बैठक की

Rohit Prashar

हिमालयी राज्यों में बरसात के मौसम में भूस्खलन की घटनाएं आम बात हो गई है, लेकिन अब सर्दियों के मौसम में भी ऐसी घटनाएं होने लगी है। 17-18 जनवरी 2022 को हिमाचल और जम्मू कश्मीर में भूस्खलन की तीन घटनाएं दर्ज की गई। हिमाचल में हुए घटना में तीन लोगों की मौत की खबर है। इन घटनाओं के बाद एक बार फिर विशेषज्ञों ने पहाड़ी राज्यों में हो रहे बेतरतीब विकास कार्यों पर ऊंगली उठाई है। 

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िला के पावंटा साहिब शिलाई नेशनल हाईवे पर 17 जनवरी को एक बड़ा हादसा हुआ। पहाड़ से भूस्खलन होने के कारण तीन लोगों की मलबे में दबने से दर्दनाक मौत हो गई। यह घटना तब हुई जब मिनस के पास नेशनल हाईवे 707 में निर्माण कार्य में कुछ मजदूर काम में जुटे हुए थे कि अचानक पहाड़ी से भूस्खलन हो गया। मृतकों में 2 पोकलेन आपरेटरों और टैक्सी चालक जो कि देहरादून का रहने वाला था जबकि दोनों पोकलेन ऑपरेटर राजस्थान के बताए जा रहे हैं।

इससे पहले इसी हाईवे में 30 जुलाई को भूस्खलन की वजह से सड़क का एक हिस्सा पूरी तरह कट गया था जिसकी वजह से यह सड़क कई दिनों तक बाधित रही।

इसके अलावा जम्मू कश्मीर में भी सर्दियों के दिनों में आजकल भूस्खलन की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। जम्मू कश्मीर के जम्मू श्रीनगर हाईवे पर रामसू और सेरी रामबन स्थान पर भूस्खलन की घटना हुई। जबकि उधमपुर क्षेत्र के समोली में भी लैंडस्लाइड होने की वजह से कई घंटों तक यातायात बाधित रहा। 

विशेषज्ञों का मानना है कि सर्दियों के दिनों में भूस्खलन बहुत कम होती है, लेकिन इन राज्यों में हो रहे विकास कार्यों की वजह से पहाड़ कमजोर हो रहे हैं और भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। 

हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले हिमधारा कलेक्टिव की सह-संस्थापक मानसी अशर ने डाउट टू अर्थ को बताया कि ऐसे हादसे इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि किसी भी प्रोजेक्ट के बनने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करना होता है, लेकिन उसे सही तरीके से नहीं किया जाता।

वह कहती हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले स्थानीय लोगों और एक्सपर्ट की राय को भी बहुत ध्यानपूर्वक सूनने और उसे अमल में लाने के बाद ही काम शुरू किया जाना चाहिए, जो कि हो नहीं रहा है। यदि कोई आपदा हो जाती है तो उसके बाद उसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए, ताकि दोषियों पर कार्रवाई हो और साथ ही भविष्य में पूर्व की गलतियों को दोहराया न जा सके।

असर कहती हैं कि हिमालय बेहद संवेदनशील पहाड़ है, जहां कोई भी विकास कार्य अगर पहाड़ काट कर किया जाता है तो उसमें बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता, जिसकारण ये घटनाएं हो रही हैं। 

उधर हिमाचल में बढ़ रही भूस्खलन की घटनाओं को 17 जनवरी 2022 को प्रदेश  के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने विशेषज्ञों के साथ बैठक की। उन्होंने विशेषज्ञों और अधिकारियों से प्रदेश को भूस्खलन और आपदा प्रबंधन के सम्बन्ध में आदर्श राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए एक समय सीमा के अन्दर समग्र समाधान प्रदान करने के लिए कहा।

राज्यपाल ने भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए किन्नौर को पायलट जिला के रूप में चयनित करने के निर्देश दिए हैं। इस बैठक में आपदा प्रबंधन निदेशक सुदेश कुमार मोक्टा, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण कोलकाता के अतिरिक्त महानिदेशक एस. राजु, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केन्द्र नई दिल्ली के सलाहकार एवं निदेशक ओ.पी. मिश्रा, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एके महाजन, हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के लैंडस्लाइड हेजर्ड ग्रुप के वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष विक्रम गुप्ता, राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा़ हिमांशु मित्तल और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भूस्खलन से संबंधित अपने विचार और सूझाव दिए।

हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं और भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में आता है और प्रदेश का 54586 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र लैंडस्लाइड प्रोन एरिया के तहत आता है। इसके अलावा इसमें से 7808 वर्ग किलोमीटर एरिया अति संवेदनशिल केटेगरी में आता है।
आंकड़े बताते हैं कि मॉनसून सीजन 2021 के दौरान ही हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 476 लोगों की मौत हुई थी और 627 लोग घायल हुए थे। इन आपदाओं में प्रदेश के 1151 करोड़ रुपए की संपतियों को नुकसान हुआ।