भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसई) ने 2015 से 2022 के बीच 16 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 3,782 प्रमुख भूस्खलनों को दर्ज किया है। सर्वाधिक 2,239 भूस्खलन की घटनाएं केरल में दर्ज की गईं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 376 भूस्खलन दर्ज हुए।
इस अवधि में पांच राज्यों में 100 से अधिक भूस्खलन के मामले सामने आए। इनमें असम (169), हिमाचल प्रदेश (101), जम्मू एवं कश्मीर(184), कर्नाटक (194) और तमिलनाडु (196) शामिल हैं। ये ऐसे भूस्खलन हैं जिनसे आम जनजीवन और आधारभूत ढांचा प्रभावित हुआ। यह जानकारी लोकसभा में मनोज राजोरिया और सुमेधानंद सरस्वती द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने 27 जुलाई को मुहैया कराई है।
राज्यमंत्री ने बताया कि जीएसई 2014-15 से राष्ट्रीय भूस्खलन संभावी मैपिंग (एनएलएसएम) कार्यक्रम चला रहा है। विभिन्न भूस्खलन संभावी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 4.3 लाख किमी क्षेत्रफल की 1:50,000 पैमाने पर भूस्खलन संभावी मैपिंग तैयार की है।
एनएलएसएम के दौरान जीएसआई ने रिमोट सेंसिंग तथा फील्ड आधारित आंकड़ों की मदद से 86,459 भूस्खलन की पॉलीगॉन संबंधी ऐतिहासिक जानकारी हासिल की जिनसें से 29,738 भूस्खलनों को जीएसआई पहले ही प्रमाणित कर चुका है।
उन्होंने आगे बताया कि वर्ष वार एकत्रित किए जाने वाले नए भूस्खलन आंकड़ों से इस विशाल ऐतिहासिक राष्ट्रीय भूस्खलन इन्वेंट्री को नियमित रूप से अद्यतित किया जा रहा है।
भूस्खलन के कारण बताते हुए राज्यमंत्री ने अपने जवाब में कहा कि आपदा के बाद जांच में पता चला कि भूस्खलन का प्रमुख कारण अभूतपूर्व भारी बारिश है। इसके अतिरिक्त टेरेन कैरेक्टर, स्लॉप फार्मिंग सामग्री, जियोमॉरफोलॉजी, भू उपयोग आदि अन्य महत्वपूर्ण कारक रहे।
राज्यमंत्री ने बताया कि बहुत से भूस्खलनों में मानवजनित कारक जैसे अनप्रोक्टेक्टेड स्लॉप कट व नालों को अवरुद्ध किया जाने की भी सूचना प्राप्त हुई।