मंदाकिनी नदी पर रेसक्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है  फोटो: डीआईपीआर
आपदा

वर्ष 2024 की केदारनाथ आपदा: न यात्रियों की सही संख्या पता, न मौसम की चेतावनी का असर, ऐसी लापरवाही कब तक

Varsha Singh

“हमें 2013 की केदारनाथ आपदा की याद आ गई। 31 जुलाई की देर शाम कांवड़िए लौट रहे थे। यात्री पैदल चल रहे थे। गाड़ियां भी चल रही थीं। गौरीकुंड में मेरे होटल पर कुछ लोग अपने बाकी साथियों के लौटने का इंतजार कर रहे थे। ऊपर धाम की ओर बारिश हो रही थी। अचानक नदी का पानी बढ़ने लग गया। जैसे धरती हिलने लगी हो। हमें कंपन जैसा महसूस हुआ। जब तक हम कुछ समझ पाते बहुत पानी नीचे की ओर आया। हम सब जान बचाने के लिए बाहर सुरक्षित स्थान की ओर दौड़े। तकरीबन एक घंटे यह सब चलता रहा। बाढ़ में रास्ता बह गया। 2013 में भी ठीक इसी जगह सड़क बह गई थी और चट्टानें टूटी थीं”।

गौरीकुंड गांव के निवासी और यहां खाने-पीने की चीजों की दुकानें चलाने वाले रोहित गोस्वामी बीते चार दिनों से जान बचाकर सुरक्षित लौटने वाले तीर्थयात्रियों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। कई लोग उनके पास अपने परिजनों की पूछताछ के लिए पहुंच चुके हैं। वह बताते हैं कि आसपास के क्षेत्र से कम से कम 6 लोग लापता हैं। चमोली से भी कुछ लोग अपने परिजन के लिए पूछताछ करने आए।

“प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई डाटा नहीं आया है कि कितने लोग अब भी धाम के आसपास हो सकते हैं। जो यात्री लौटकर आ रहे हैं उन्होंने अपने सामने घटी घटनाओं के बारे में बताया। बुधवार की भारी बारिश के बाद गदेरा पार करते समय कुछ लोगों के हताहत होने की बात कही। इसके अलावा वहां काफी संख्या मजदूर थे। उनकी कोई सूचना नहीं है। घोड़ापड़ाव, जहां से लोग केदारनाथ जाने के लिए घोड़े पर बैठते हैं, वहां से भी लोगों के लापता होने की सूचना है। धाम की तरफ कम से कम 3-4 हज़ार घोड़े-खच्चर भी फंसे हैं। अब तक उनका रसद खत्म हो गया होगा”।

 रोहित कहते हैं “जब तक पैदल आवाजाही का रास्ता तैयार नहीं होता वहां फंसे लोगों और जानवरों दोनों मुश्किल में होंगे”।  

गौरीकुंड में एनिमल शेल्टर चलाने वाले और पीपल्स फॉर एनिमल्स गैर-लाभकारी संस्था से जुड़े शशिकांत पुरोहित और उनकी टीम आज हेलीकॉप्टर के ज़रिये घोड़े-खच्चरों को रसद पहुंचा रही है। डाउन टु अर्थ से बातचीत में पुरोहित कहते हैं “गौरीकुंड से भीमबली के बीच और रामबाड़ा से लेकर केदारनाथ के बीच टूटे रास्तों में जानवर फंसे हैं। हम केदारनाथ और गौरीकुंड में पशुओं के लिए भोजन नीचे गिरा रहे हैं। जब तक रास्ते तैयार नहीं होते इसी तरह उन्हें भोजन पहुंचाया जाएगा”।

सोनप्रयाग से केदारनाथ मंदिर के बीच गौरीकुंड, भीमबली, रामबाड़ा समेत अन्य स्थानों पर भूस्खलन के चलते पैदल मार्ग ध्वस्त हो गए हैं।

31 जुलाई को 10 हजार से अधिक यात्री

केदारनाथ में रुक-रुक कर बारिश हो रही है। बीच-बीच में भूस्खलन भी हो रहा है। आज रविवार को रेस्क्यू ऑपरेशन के साथ सेना की मदद से सर्च अभियान भी शुरू किया गया। यात्रा मार्ग पर लिनचोली के पास दो स्निफर डॉग की मदद से लापता लोगों की खोजबीन की जा रही है। सूचना के मुताबिक कई लोग बारिश के डर से अपनी जान बचाने के लिए जंगलों की तरफ बढ़े। उनके रास्ता भटकने की संभावना है। 

31 जुलाई को करीब 7:30 बजे केदारनाथ में तेज बारिश के बाद भूस्खलन और कटाव हुआ था। आपदा प्रबंधन और पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन के मुताबिक 2 अगस्त तक कुल 7,234 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया। 3 अगस्त को 1,865 यात्री रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाये गये। 3 अगस्त तक कुल 9,099 यात्रियों को रेस्क्यू किया जा चुका था। रविवार को, प्रशासन के मुताबिक करीब 1000 यात्रियों को रेस्क्यू किया जाना है। 

1 अगस्त को रुद्रप्रयाग के ज़िलाधिकारी सौरभ गहरवार के एक्स हैंडल पर करीब 200-300 लोगों के धाम के आसपास होने की जानकारी साझा की थी। 2 अगस्त की शाम तक ये आंकड़ा 7000 पार कर गया।  

31 जुलाई के आसपास केदारनाथ में ठीक-ठीक कितने तीर्थयात्री मौजूद थे। क्या सरकार के पास ये आंकड़े हैं? राज्य सरकार ने इस वर्ष चारों धाम में रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था की थी। रजिस्ट्रेशन के बाद ही यात्रा की अनुमति थी। क्या ये व्यवस्था काम कर रही थी? लापता लोगों की सूचना को स्थानीय प्रशासन भ्रम फैलाने वाली ख़बरें बता रहा है। क्या मृतकों की भी सही-सही संख्या पता है?

 रोहित गोस्वामी आश्चर्य जताते हैं कि इस वर्ष रुद्रप्रयाग प्रशासन ने रात के समय भी यात्रा जारी रखी। जबकि पहले शाम 3-4 बजे तक केदारनाथ धाम से नीचे या गौरीकुंड से ऊपर यात्रियों को रोक दिया जाता था।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हालात पर नजर रख रहे हैं। गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी ने भी क्षेत्र का हवाई निरीक्षण किया। वायुसेना का एक चिनूक और एक एमआई-17 हेलिकॉप्टर रेस्क्यू अभियान के लिए उपलब्ध कराया गया। ताकि फंसे हुए लोगों को एयरलिफ्ट कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके। इसके साथ ही 5 अन्य हेलिकॉप्टर भी रेस्क्यू में जुटे हैं। हालांकि खराब मौसम के चलते हवाई उड़ान में बाधा आ रही है। रेस्क्यू अभियान भी प्रभावित हो रहा है।

एनडीआरएफ के 83 जवान, एसडीआरएफ,  डीडीआरएफ और पीआरडी के 168 जवान, पुलिस विभाग के 126, अग्निशमन के 35 कर्मचारी अलग-अलग स्थानों पर रेस्क्यू के लिए तैनात हैं। 35 आपदा मित्र भी सहयोग दे रहे हैं। 

31 जुलाई की भारी बारिश से राज्यभर में 15 मौतों की आधिकारिक सूचना है। इसमें से 3 रुद्रप्रयाग जिले के हैं। रेस्क्यू अभियान के दौरान की एक तस्वीर स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स यानी एसडीआरएफ ने जारी की थी। जिसमें भारी चट्टानों के नीचे फंसे हुए एक व्यक्ति को सुरक्षित निकाला गया। ये तस्वीर मृतकों और लापता लोगों से जुड़ी आशंकाएं बढ़ाती है।

चट्टानों के भीतर फंसे यात्री को निकालने की कोशिश में एसडीआरएफ। ये तस्वीर घटना की तीव्रता को बताती है। इस तरह और भी लोग फंसे हो सकते हैं।

मौसम की चेतावनी के बावजूद क्यों नहीं रोकी गई यात्रा

मौसम विभाग जुलाई के आखिरी हफ्ते में राज्य में लगातार भारी बारिश की चेतावनी जारी कर रहा था। 31 जुलाई के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया था।

वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक और गढ़वाल विश्वविद्यालय में भू-विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ एसपी सती 2013 की आपदा की स्थिति से इस घटना की तुलना करते हैं। “मौसम विभाग लगातार खराब मौसम की चेतावनी दे रहा था। फिर इतनी बड़ी संख्या में वहां लोग कैसे पहुंचे। उन्हें रोका क्यों नहीं गया। बड़ी संख्या में कांवड़िए भी मौजूद थे। उनका कोई रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाता। अगर वे लापता भी होते हैं तो उनके परिजनों को खबर कैसे लगेगी?”

“आपदा की स्थिति में लोगों को वापस लाने के लिए प्रशासन ने क्या इंतज़ाम किए थे। रेस्क्यू और इमरजेंसी की स्थिति के लिए प्रशासन की क्या योजना थी”, डॉ सती जवाबदेही तय करने की बात कहते हैं।

वर्ष 2013 की आपदा में भी चारों धामों के तीर्थयात्रियों की संख्या का पता नहीं था। 2024 की अपेक्षाकृत कम तीव्रता की आपदा में भी सब कुछ अनुमान पर आधारित है।

2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी हाईपावर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हर एक धाम की आपात स्थिति में बाहर निकालने की योजना  बनाने के लिए कहा था। इस कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ रवि चोपड़ा कहते हैं “धाम में मंदिर तक पहुंचने के लिए हम जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं, रास्ते संकीर्ण होते जाते हैं। हर धाम की एक आपात निकासी योजना होनी चाहिए। राज्य सरकार और प्रशासन पूरी तरह लापरवाह है। रजिस्ट्रेशन की बात कही गई। लेकिन कोई ये चेक नहीं करता कि ये सिस्टम काम कर रहा है या नहीं। जब तक इच्छाशक्ति नहीं होगी कुछ नहीं बदलने वाला। कितनी रिपोर्ट्स चाहिए इन्हें”।

जलवायु परिवर्तन के चलते पहाड़ों में भारी बारिश और इसकी बढ़ती तीव्रता को देखते हुए डॉ चोपड़ा सुझाव देते हैं “भारी बारिश का अलर्ट आने पर जिलाधिकारी जिस तरह स्कूल बंद करते हैं, उसी तरह यात्रा क्यों नहीं रोकी जाती। भविष्य में, मौसमी बदलाव को देखते हुए, यात्रा सीजन में बदलाव करना पड़ेगा”।

जुलाई-अगस्त के महीने बारिश और भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील होते हैं।