राजधानी रांची से 30 किलोमीटर दूर मांडर ब्लॉक के किसान उदय कुमार मंगलवार 22 अगस्त को अन्य किसान मित्रों से बात कर रहे थे. वो आपस में कह रहे थे कि पानी पटा कर धान रोपेने से क्या होगा। लोग जबरदस्ती रोप रहे हैं। गड्ढा वाला खेत में फिर भी थोड़ी बहुत फसल हो जाएगी, लेकिन सीढ़ीनुमा खेतों में तो बिचड़ा अभी से पीला दिखने लगा है।
हालांकि सभी को अब भी उम्मीद है कि कुछ और बारिश होगी, तो हालात चिंताजनक नहीं होंगे। यही नहीं, ये किसान उम्मीद और हकीकत के बीच अभी से ही चर्चा करने लगे हैं कि अगर धान की रोपाई नहीं हो पाई तो फरवरी-मार्च में कौन सी फसल लगाने की जान बच सकती है।
इन सबके बीच रांची स्थिति मौसम विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 23-26 अगस्त के बीच अच्छी बारिश होने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में अब भी 37 फीसदी कम बारिश हुई है। बीते 20 अगस्त तक सामान्य बारिश 689.8 मिमी की तुलना में 422.7 मिमी ही बारिश हुई है।
पूरे झारखंड में धान के रोपाई की बात करें तो राज्य में 18 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की खेती की जाती है। राज्य कृषि विभाग के कवरेज आंकड़ों के अनुसार, 18 अगस्त तक झारखंड में धान की कुल रोपाई 43.66 प्रतिशत दर्ज की गई।
18 अगस्त तक 18 लाख हेक्टेयर लक्ष्य के मुकाबले केवल 7.85 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की रोपाई की गई। राज्य के कुल 24 जिलों में से आठ जिलों में स्थिति गंभीर है।
पलामू जिले में 18 अगस्त तक राज्य में सबसे कम धान रोपाई 2.96 फीसदी दर्ज किया गया है। इसके बाद जामताड़ा में 5.63 फीसदी, दुमका में 7.66 फीसदी, गढ़वा में 8.43 फीसदी, धनबाद में 10.26 फीसदी, गिरिडीह में 11.4 फीसदी, कोडरमा में 12.61 फीसदी और चतरा में 16.35 फीसदी हैं।
धान के अलावा इस साल मक्का 3.12 लाख की जगह 2.21 लाख हेक्टेयर में ही लग पाया है। वहीं दलहन 6.12 लाख हेक्टेयर की जगह 2.99 लाख हेक्टेयर, तेलहन 60 हजार हेक्टेयर की जगह 27 हजार हेक्टेयर, मोटा अनाज 42 हजार हेक्टेयर की जगह 26 हजार हेक्टेयर में ही लग पाया है।
इसका असर भी दिखने लगा है। सूखे की आशंका के बीच लोग धान अभी से स्टॉक करने लगे हैं। जन वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले चावल को कई लोग लोकल बाजार में बेच देते हैं। यह चावल तीन सप्ताह पहले तक बेड़ो प्रखंड के एक लोकल बाजार में 20 रुपए किलो मिल रहा था, जबकि इस वक्त इसका रेट 40 रुपए किलो हो चुका है। यही नहीं, स्थानीय ब्रांड के चावल के रेट में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
इन सब के बीच राज्य सरकार ने केंद्र को बता दिया है कि लगातार दूसरे साल भी सूखे के आसार हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने कई राज्यों के अफसरों को दिल्ली बुलाकर खरीफ खेती की जानकारी ली थी। झारखंड के अफसरों ने बताया था कि 15 अगस्त तक रोपा का समय है।
हालांकि इस अवधि में 40 फीसदी खेतों में तय लक्ष्य के मुताबिक रोपनी नहीं हो पाई है। इस पर केंद्र ने कहा कि मॉनसून देरी से आया है, ऐसे में 30 अगस्त तक इंतजार करें फिर रिपोर्ट भेजें।
राज्य के कृषि सचिव अबु बकर सिद्दीख कहते हैं कि राज्य सरकार लगातार केंद्र सरकार को स्थिति से अवगत करा रही है। हम लोग तैयारी कर रहे हैं कि किसानों को क्या सहयोग हो सकता है।
यही वजह है कि राज्य सरकार सूखा राहत के लिए अभी से फॉर्म भरवा रही है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक फसल राहत योजना 2023-24 के लिए धान और मकई को अधिसूचित किया है। किसानों से कहा गया है कि वो 30 सितंबर तक इस फॉर्म को भरकर जमा कर दें।
झारखंड सरकार ने पिछले साल राज्य के 256 प्रखंडों को सूखा प्रभावित घोषित किया था. इसके लिए केंद्र से 9,682 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की मांग की थी. हालांकि केंद्र सरकार ने आपदा राहत कोष से करीब 500 करोड़ रुपए खर्च करने की अनुमति दी है, लेकिन यह भी किसानों को राहत नहीं पहुंचा पा रहे।
किसान उदय कुमार एक बार फिर कहते हैं कि साल 2018-19 में सूखा राहत के लिए फॉर्म भरा था, उसका पैसा अभी आया है। उनके मुताबिक उन्हें 15 एकड़ खेत के बदले 70 हजार रुपए बतौर सूखा राहत मिला। हालांकि बड़ी संख्या में असली किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाया।
किसान अशरफ खान डाउन टू अर्थ से कहते हैं, "मेरे पास अपनी जमीन नहीं है। मैं किसी और की जमीन पर खेती करता हूं। फसल लगाने से लेकर खाद-बीज, पानी, मजदूरी तक मैं वहन करता हूं, लेकिन जब सूखा राहत वाला पैसा आता है, तो वह जमीन मालिक के खाते में आता है।" उनके जैसे हजारों किसान झारखंड में हैं जो खेती करते हैं, नुकसान उठाते हैं, लेकिन भरपाई का पैसा जमीन मालिक के खाते में चला जाता है।
आशंका और उम्मीद के बीच झारखंड के किसानों का भविष्य 30 अगस्त के बात तय होगा. जब राज्य सरकार सूखे की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजेगी।