केरल देश का पहला अत्यंत गरीबी-रहित राज्य घोषित, 53,239 लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए।
हिमालयी ग्लेशियरों में तेज पिघलाव, ब्रह्मपुत्र बेसिन में सबसे अधिक वापसी दर दर्ज।
मौसम विभाग का जीआईएस आधारित लू या हीटवेव पोर्टल और एटलस, जिला स्तर पर पूर्वानुमान व जोखिम मूल्यांकन उपलब्ध।
पंजाब में 2025 की बाढ़ से भारी नुकसान, 40 लोगों की मृत्यु, 7161 पशुओं की हानि, 14,065 मकानों का नुकसान और 1.93 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचा।
आज तीन दिसंबर, 2025 को संसद के दोनों सदनों - लोकसभा और राज्यसभा में विभिन्न मंत्रियों ने अपनी-अपनी मंत्रालयों से संबंधित योजनाओं, उपलब्धियों और चुनौतियों के बारे में जानकारी दी।
केरल ने गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय सफलता हासिल की
संसद का शीतकालीन सत्र जारी है, इसी बीच सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आज, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने लोकसभा में जानकारी दी कि केरल सरकार ने एक नवम्बर 2025 को, जो ‘केरल पिरवी दिवस’ भी है, राज्य को देश का पहला अत्यंत गरीबी-रहित राज्य घोषित किया। यह घोषणा राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में की गई।
यह उपलब्धि सामाजिक सुरक्षा, जनकल्याण योजनाओं और प्रभावी नीति-कार्यान्वयन का परिणाम मानी जा रही है। सरकार के अनुसार 2015-16 से 2019-21 के बीच राज्य में बहुआयामी गरीबी का अनुपात 0.70 फीसदी से घटकर 0.55 फीसदी रह गया। इस अवधि में लगभग 53,239 लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए।
केरल की यह पहल देश के लिए प्रेरक मानी जा रही है, क्योंकि यह बताती है कि सुनियोजित कल्याणकारी नीतियां, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता और सामाजिक सुरक्षा तंत्र मिलकर कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं।
हिमालय पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव
हिमालय पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में जानकारी देते हुए कहा कि देश के कई वैज्ञानिक संस्थान, जिन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, खनन मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, हिमालयी ग्लेशियरों पर निरंतर अध्ययन कर रहे हैं।
विभिन्न अध्ययनों ने दर्शाया है कि हिमालयी ग्लेशियरों में तेजी से और असमान रूप से बर्फ पिघल रही है। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों की औसत वापसी दर 14.9 ± 15.1 मीटर प्रति वर्ष पाई गई है। जबकि सिंधु बेसिन में यह दर 12.7 मी.प्रति वर्ष, गंगा बेसिन में 15.5 मी.प्रति वर्ष और ब्रह्मपुत्र बेसिन में 20.2 मी. प्रति वर्ष मापी गई है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कराकोरम क्षेत्र के ग्लेशियरों में बहुत कम बदलाव देखा गया, जहां वापसी दर -1.37 ± 22.8 मीटर प्रति वर्ष दर्ज की गई।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हिमालयी क्षेत्र में अत्यधिक गहरा है, जो भविष्य में जल-स्त्रोतों, कृषि, जैव विविधता और आपदा जोखिम पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
लू या हीटवेव का मानचित्रण
एक और सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने यह भी बताया कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने देश में बढ़ती लू या हीटवेव स्थितियों को देखते हुए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विभाग के द्वारा एक वेब-आधारित जीआईएस हीटवेव पोर्टल विकसित किया गया है, जहां लू की मौजूदा स्थिति और पांच दिन की पूर्वानुमान जानकारी जिले तथा उप-शहरी स्तर पर उपलब्ध है। इसके अलावा मौसम विभाग ने 13 प्रमुख मौसमीय आपदाओं को शामिल करते हुए ‘क्लाइमेट हैजर्ड एंड वल्नरेबिलिटी एटलस’ भी तैयार किया है।
यह एटलस जिलेवार आधार पर लू की संवेदनशीलता, खतरों के आसार और जोखिम को दर्शाता है। इससे प्रशासन, स्थानीय निकाय और आम जनता को उचित तैयारी और प्रबंधन में बड़ी सहायता मिलती है। बदलते जलवायु पैटर्न के बीच ऐसी वैज्ञानिक सूचना सेवाएं जनता और सरकार दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मध्य प्रदेश में कुपोषण और एनीमिया
मध्य प्रदेश में कुपोषण और एनीमिया को लेकर सदन में उठे एक प्रश्न के उत्तर में आज, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने राज्यसभा में बताया कि देशभर के पोषण संकेतकों में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
पोषण ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2022 में जहां देश में बच्चों में बौनापन (स्टंटिंग) 39.87 फीसदी, वेस्टिंग 8.61 फीसदी और कम वजन 19.38 फीसदी थी, वहीं अक्टूबर 2025 तक ये आंकड़े क्रमशः 33.54 फीसदी, 5.03 फीसदी और 14.41 फीसदी तक घट गए।
मध्य प्रदेश की स्थिति भी इस दौरान बेहतर हुई है। 2022 में मध्य प्रदेश में बोनेपन की दर 52.37 फीसदी थी, जो 2025 में कम होकर 36.64 फीसदी रह गई। इसी प्रकार वेस्टिंग 9.67 फीसदी से घटकर 8.45 फीसदी हो गई और कम वजन 32.99 फीसदी से घटकर 23.25 फीसदी पर आ गया। ये सुधार दर्शाते हैं कि पोषण अभियान, आंगनबाड़ी सेवाएं, मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रम और सामुदायिक भागीदारी से बच्चों और माताओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आ रहा है।
पंजाब में बाढ़ का आकलन
आज सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि साल 2025 के दौरान पंजाब में आई बाढ़ से हुए भारी नुकसान हुआ। राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 40 लोगों की मृत्यु, 7161 पशुओं की हानि, 14,065 मकानों का नुकसान और 1.93 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचा।
केंद्र सरकार ने स्थिति पर उच्च स्तर से लगातार निगरानी रखी। प्रधानमंत्री ने स्वयं नौ सितंबर 2025 को बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया। राहत और बचाव कार्यों के लिए 35 एनडीआरएफ टीमें तैनात की गईं।
केंद्र ने राज्य से औपचारिक ज्ञापन की प्रतीक्षा किए बिना ही एक सितंबर 2025 को एक अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय दल गठित किया, जिसने तीन से छह सितंबर के बीच प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर नुकसान का विस्तृत आकलन किया। यह राहत कार्य दर्शाता है कि आपदा के समय केंद्र और राज्य मिलकर त्वरित कार्रवाई कर रहे हैं।
माथाभांगा नदी के प्रदूषण का आकलन
मतभंगा नदी, जिसे माथाभांगा नदी के नाम से भी जाना जाता है, के प्रदूषण को लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि केंद्र सरकार देश में नदी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन मतभंगा नदी से जुड़े सामाजिक-आर्थिक नुकसान का कोई अलग अध्ययन नहीं किया गया है।
हालांकि आईसीएआर की केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा 2005 - 2010 और 2024 -2025 के बीच किए गए सर्वेक्षणों में महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार बांग्लादेश के दर्शना क्षेत्र स्थित शुगर मिल से समय-समय पर छोड़े जाने वाले प्रदूषक तत्वों के कारण नदी का घुलित ऑक्सीजन स्तर कम हो जाता है, जिससे बार-बार मछलियों की मृत्यु होती है। साथ ही नदी के गंगा संगम क्षेत्र, जैसे राबोनबोरे, काली नारायणपुर और अरंगहाटा में मछली विविधता में कमी देखी गई है।
भारत ने इस मुद्दे को कई बार भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग की तकनीकी बैठकों और बीएसएफ–बीजीबी डीजी स्तर की बैठकों में उठाया है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय चिंता पैदा करती है, बल्कि स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव डालती है।
उपरोक्त सभी वक्तव्यों से स्पष्ट है कि भारत सामाजिक विकास, जलवायु अनुसंधान, पोषण सुधार, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े क्षेत्रों में निरंतर प्रयासरत है। जहां एक तरफ केरल जैसे राज्य गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय सफलता हासिल कर रहे हैं, वहीं हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौतियां सामने हैं।
सरकार की विभिन्न योजनाएं -चाहे वह पोषण सुधार अभियान हो या बाढ़ राहत कार्य, सकारात्मक परिणाम दिखा रही हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय नदी प्रदूषण जैसी चुनौतियां सामूहिक प्रयासों और कूटनीतिक सहयोग की मांग करती हैं।