अरब सागर जो कि अतीत में विशेष रूप से चक्रवातों के लिए नहीं जाना जाता था लेकिन अब इसका रूप बदल रहा है। लेकिन हिंद महासागर का सीमांत समुद्र भयंकर तूफानों का साक्षी रहा है और निश्चित रूप से शांत नहीं था। यह जानकारी इतिहासकारों ने डाउन टू अर्थ को दी।
अरब सागर इस बार बिपरजॉय चक्रवात का गवाह बन रहा है। समुद्र में जून, 2023 में आए इस चौथे सबसे शक्तिशाली चक्रवात का लैंडफॉल 15 जून, 2023 के आसपास होने की उम्मीद है। यह चक्रवात वायु (2019), चक्रवात निसर्ग (2020) और चक्रवात तौकते (2021) का अनुसरण करता है, जो सभी भारत के पश्चिमी तट से दूर हुए।
अमेरिका में येल विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन परिषद के अध्यक्ष व इतिहास के प्रोफेसर सुनील अमृत ने डाउन टू अर्थ को बताया, “यह निश्चित रूप से मेरी समझ है कि बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर में गंभीर तूफान ऐतिहासिक रूप से दुर्लभ हैं। इसकी पुष्टि भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के मौसम विज्ञानियों के काम और एडम सोबेल के काम से भी हुई है। इन्हीं के काम को अमिताव घोष ने भी उद्घृत किया है।
अनरूली वाटर्स: हाउ रेन्स, रिवर, कोस्ट्स एंड सीज हैव शेप्ड एशिया हिस्ट्री (2018) (अनियंत्रित पानी : कैसे वर्षा, नदी, तटों और बंधो ने एशिया के इतिहास को आकार दिया 2018) के लेखक अमृत ने कहा "मैंने कभी भी एक व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया है, लेकिन प्रभावशाली रूप से यह निश्चित रूप से सच है कि चक्रवातों के पूर्व-आधुनिक और प्रारंभिक आधुनिक खाते लगभग सभी बंगाल की खाड़ी से हैं।"
उन्होंने कहा कि एक साधारण संकेतक यह देखा गया कि बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर में कितने कम जलपोत नष्ट हुए हैं। अमृत ने कहा "कुछ क्लासिक अरब नेविगेशन ग्रंथों में तूफानों का उल्लेख है जैसे (अरब नाविक) इब्न मजीद।"। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि अरब सागर एक 'शांत समुद्र' था। हालांकि बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर शांत था।
विख्यात इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने डीटीई को बताया कि तूफानों के कारण जलपोतों का नष्ट होना बौद्ध जातकों के नौसैनिक साहित्य का एक बड़ा हिस्सा है।
वहीं, सार्वजनिक इतिहासकार अनिरुद्ध कनिसेटी ने भी इस पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा "कई बौद्ध जातक जब व्यापार की चर्चा करते हैं बार-बार जलपोतों के टूटने का उल्लेख करते हैं। बहुत सारे जातक सुवर्णद्वीप या दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापार से संबंधित हैं। तो निश्चित रूप से यह बंगाल की खाड़ी है जिसका वे जिक्र कर रहे हैं।”
लेकिन कुछ संकेत यह भी हैं कि अरब सागर थोड़ा ही सुरक्षित था। कनिसेटी ने कहा उदाहरण के लिए पश्चिमी दक्कन में बहुत सारी गुफाएं थीं जहां विशेष रूप से व्यापारियों और नाविकों द्वारा अवलोकितेश्वर, बौद्ध बोधिसत्व की पूजा की जाती थी। क्योंकि यह माना जाता था कि वह उन्हें जलपोतों से बचाते थे।
कनिसेटी ने कहा "जहां तक मुझे पता है चिंता सिर्फ चक्रवातों के साथ जरूरी नहीं थी बल्कि तूफानों के साथ और जिस तरह से मानसून बहता था, उसके साथ जुड़ी थी। एरिथ्रियन सागर के पेरिप्लस और बहुत सारे अरबी खाते भी अरब सागर में उपयुक्त यात्रा के लिए बहुत सावधान हैं, क्योंकि कुछ बिंदुओं पर मानसून तेजी से और कभी-कभी धीमी गति से चलता है।
यह एक ऐसा समय था जब यात्रा तभी संभव थी जब कोई सही हवा पकड़ सकता था। अन्यथा, कोई अपने माल के साथ बंदरगाह में फंस सकता था। कनिसेटी के अनुसार "यह भी एक समय था जब जहाज अब की तुलना में अधिक नाजुक थे। तो स्पष्ट रूप से नाविक अरब सागर में किसी भी प्रतिकूल मौसम की गतिविधि के बारे में चिंतित होंगे और न केवल आवश्यक रूप से चक्रवात को लेकर।"
उन्होंने मध्यकालीन ग्रीष्मकाल की ओर इशारा किया जो नौवीं शताब्दी में शुरू हुआ और 12 शताब्दी या उसके बाद तक जारी रहा। यही वह समय था जब हिंद महासागर थोड़ा गर्म था जिसके परिणामस्वरूप शुष्क गर्मियां और अधिक निरंतर मानसून थे। लेकिन यह आज ग्लोबल वार्मिंग के पैमाने के आसपास भी नहीं था।
कनिसेटी ने कहा "इससे हिंद महासागर में फातिमिद मिस्र, भारत के चोलों और चीन के सांग राजवंश की वाणिज्यिक गतिविधियों में वृद्धि हुई। सोंग्स ने चोलों के साथ दूतावासों का आदान-प्रदान किया।"
उन्होंने कहा कि यह जानना संभव नहीं है कि प्राचीन और मध्यकालीन दुनिया के लोग चक्रवातों और वास्तव में बड़े तूफानों के बीच अंतर कर सकते थे या नहीं। आज, मौसम विज्ञानी उपग्रह इमेजरी का उपयोग यह देखने और निरीक्षण करने के लिए कर सकते हैं कि चक्रवात कैसे बनते हैं। उन्होंने कहा "लेकिन लोग तब बहुत तेज हवाओं को जबरदस्त गति से बहते हुए देख सकते थे। लेकिन कोई नहीं जानता कि क्या वे एक चक्रवात और एक नियमित तूफान के बीच अंतर कर सकते थे।
कनिसेटी ने बताया कि ऐतिहासिक साहित्यिक स्रोत इस प्रश्न का उत्तर देने में मदद नहीं करेंगे, लेकिन जलवायु अध्ययन से यह हो सकता है। "लेकिन जिस हद तक मुझे पता है, मुझे नहीं लगता कि मध्यकालीन ग्रीष्मअवधि अरब सागर में चक्रवातों का कारण बनी। अगर कुछ भी हो, तो यह लंबे समय तक चलने वाले मानसून का कारण बना जिसने अधिक निरंतर व्यापार की अनुमति दी।"
एक बदलता समुद्र
कभी शांत रहने वाला अरब सागर अब बार-बार आने वाले चक्रवातों का स्थान बनता जा रहा है, जिसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग है। पिछले साल अप्रैल में जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के लेखकों ने डीटीई को बताया कि मुंबई और मस्कट के निकट तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संभावनाओं में मामूली वृद्धि का अनुमान लगाया गया था।
एक साल पहले, 2021 के एक अध्ययन में भारत के पश्चिमी तट पर चक्रवाती तूफानों की आवृत्ति में 52 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। भोपाल में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा पिछले साल अक्टूबर में किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि अरब सागर ने पिछले दो दशकों में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि दर्ज की है। उन्होंने इस प्रवृत्ति को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया।