शुक्रवार, 28 फरवरी 2025 को उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा-बद्रीनाथ क्षेत्र में हुए हिमस्खलन में 02 मार्च 2025 तक 46 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया, जबकि 8 लोगों की दुखद मृत्यु हो गई।
बर्फ से ढके उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन (एवलांच) की घटनाएं आम हैं, लेकिन ये घटनाएं बेहद चिंताजनक हो जाती हैं जब ये मानव जीवन को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ उनकी मूलभूत सुविधाओं और बुनियादी ढांचे को प्रभावित करती हैं। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैले भारतीय हिमालयी क्षेत्र दो विभिन्न प्रकार की जलवायु प्रणालियों से प्रभावित होते हैं—गर्मियों में इंडियन समर मानसून और सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस), जो बारिश और बर्फबारी का प्रमुख कारण हैं।
हालांकि, आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के पैटर्न में बहुत बदलाव देखे गए हैं, जिससे असाधारण घटनाएं (एक्सट्रीम इवेंट्स) जैसे अत्यधिक बारिश (क्लाउड बर्स्ट), बाढ़, समय पर बर्फबारी न होना आदि शामिल हैं।
"क्लाइमेट चेंज ऑवर दी हिमालय" शीर्षक से प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 1951 से 2018 के बीच भारत के मैदानी क्षेत्रों की तुलना में हिमालयी क्षेत्र का तापमान अधिक तेजी से बढ़ा है (0.1 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक)। विशेष रूप से, 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान वृद्धि सर्वाधिक (0.5 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक) देखी गई है।
हर साल हिमालय में एवलांच से भारी मात्रा में जान-माल का नुकसान होता है और वहां रहने वाले लोगों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। वर्ष 2023 में यूरोपियन जियोसाइंस यूनियन की पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, दुनियाभर में हर साल लगभग 250 लोगों की एवलांच के कारण असमय मृत्यु होती है।
हिमालय में 1972 से 2022 के बीच हर साल औसतन 62 लोगों की मौत हुई, जिससे कुल 3100 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसमें सर्वाधिक 1057 मौतें अफगानिस्तान में हुईं और दूसरे स्थान पर भारत रहा, जहां 952 लोग एवलांच का शिकार बने। नेपाल, भूटान और पाकिस्तान में भी एवलांच से मृत्यु के मामले सामने आए हैं।
28 फरवरी 2025, माणा-बद्रीनाथ एवलांच
माणा-बद्रीनाथ समुद्र तल से 3100-3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक ग्लेशियर से बनी ‘यू’ आकार की चौड़ी घाटी है, जो >6000 मीटर ऊंची चोटियों से घिरी हुई है। इस घाटी का निर्माण सतोपंथ और भगीरथ खरक जैसे बड़े ग्लेशियरों के कटाव से हुआ है। घाटी की ढलानें तीव्र हैं और कुछ स्थानों पर ये सीधी खड़ी (वर्टिकल) हैं। साल के 4-5 महीने यह इलाका बर्फ से ढका रहता है, और यहां रहने वाले लोग अपने नीचे के गांवों में शीतकाल के दौरान रहने के लिए चले जाते हैं। इसी कारण बद्रीनाथ मंदिर भी शीतकाल में बंद रहता है। एवलांच के लिहाज से यह घाटी अत्यंत संवेदनशील है और अतीत में यहां कई हिमस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं।
28 फरवरी 2025 की सुबह हुए हिमस्खलन में वहां पर बर्फ हटाने का काम कर रहे 55 मजदूर इसकी चपेट में आ गए थे। लेकिन किसी प्रकार का संपर्क न होने के कारण राहत-बचाव कार्य दोपहर के बाद ही प्रारंभ हो पाया। लगातार हो रही बर्फबारी बचाव कार्य में बाधा बनी रही। 02 मार्च 2025 तक 46 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया, जबकि 8 लोगों की दुखद मृत्यु हो गई। घाटी की संवेदनशीलता और भारी बर्फबारी के पूर्वानुमान के बावजूद मजदूरों को सुरक्षित स्थान पर विस्थापित न करना निश्चित रूप से सवाल खड़े करता है। भविष्य में ऐसी घटनाओं से सीख लेने की जरूरत है ताकि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
माणा-बद्रीनाथ क्षेत्र में हुए हिमस्खलन के बाद जोशीमठ के पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती ने लेखक को बताया कि नीति घाटी (जोशीमठ-मलारी-सुमना) और बद्रीनाथ घाटी (पांडुकेश्वर-लामबगड़-हनुमान चट्टी) में बड़ी संख्या में मजदूर अलग-अलग स्थानों पर अभी भी झोपड़ियां (हट) बनाकर रह रहे हैं, और ये झोपड़ियां अधिकतर एवलांच और भूस्खलन (लैंडस्लाइड) की संवेदनशील जगहों पर स्थित हैं। उन्होंने स्थानीय प्रशासन और ठेकेदारों से मजदूरों को सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराने की मांग की है।
उत्तराखंड में हुए कुछ प्रमुख एवलांच और उनसे नुकसान
गिरथी गंगा- मलारी, चमोली - 23 अप्रैल 2021 - 16 मृत्यु
त्रिशूल पर्वत, बागेश्वर - 1 अक्टूबर 2021 - 6 मृत्यु
हेमकुंड साहिब (अटकोली), चमोली - 18 अप्रैल 2022
द्रौपदी का डांडा (डोकरियानी ग्लेशियर), उत्तरकाशी - 4 अक्टूबर 2022 - 29 मृत्यु
बॉलिंग गांव (दारमा घाटी), पिथौरागढ़ - 7 मार्च 2023 - सड़क अवरुद्ध
केदारनाथ, रुद्रप्रयाग - 3 मई 2023; 9 अप्रैल 2024; 30 जून 2024 - कोई हानि नहीं